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Asad Encounter: कब और किन परिस्थितियों में किया जा सकता है एनकाउंटर, क्या कहता है कानून?

Atiq Ahmed Son Asad: उत्तर प्रदेश में हाल के दिनों में लगातार एनकाउंटर की खबरें आई हैं। इसके लिए यूपी पुलिस अपनी पीठ भी थपथपाती रही है।

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लखनऊ

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Rizwan Pundeer

Apr 13, 2023

Encounter News

पुलिस एनकाउंटर पर अदालतें और मानवाधिकार संगठन समय-समय पर नाराजगी जताते रहे हैं

उमेश पाल हत्याकांड में आरोपी पूर्व सांसद अतीक अहमद के बेटे असद को STF ने एनकाउटंर में मार गिराया है। सरकार में बैठे लोगों और पुलिस के आला अफसरों ने इसके लिए एसटीएफ की टीम की पीठ थपथपाई है। हालांकि कानूनी तौर पर देखा जाए तो भारत का कानून एनकाउंटर की इजाजत लगभग नहीं देता है।


एनकाउंटर की इजाजत नहीं देता कानून
पुलिस का जब अपराधियों या किसी गिरोह से आमना-सामना होता है और इसमें गोलियां चलती हैं तो इसे एनकाउंटर कहा जाता है। देश के कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो एनकाउंटर की इजाजत देता हो या इसे वैध ठहराया हो। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

CRPC की धारा 46 पुलिस को अपराधी के गिरफ्तारी से भागने या पुलिस पर हमला करने की हालत में कार्रवाई का अधिकार देता है। किसी भी एनकाउंटर के बाद पुलिस कहती है कि उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई। सीआरपीसी की धारा 46 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल किया है।

सुप्रीम कोर्ट और मानवाधिकार आयोग की है एनकाउंटर पर गाइडलाइन

पुलिस एनकाउंटर पर सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग कई बार चिंता जता चुके हैं। दोनों ने इस पर गाइडलाइन भी बनाई हुई है।

सितंबर, 2014 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आर एम लोढा और जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन की बेंच ने एनकाउंटर के मामलों में कई नियमों का पालन करने के पुलिस को निर्देश दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन कहती है कि अगर पुलिस की गोलीबारी में किसी की मौत होती है यानी कोई एनकाउंटर होता है। तो इस पर तुरंत प्रभाव से धारा 157 के तहत FIR होनी चाहिए। एनकाउंटर की जांच सीआईडी से या सीनियर पुलिस अफसर की निगरानी में होना चाहिए।

SC की गाइडलाइन कहती है कि धारा 176 के अंतर्गत पुलिस फायरिंग में हुई हर एक मौत की मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिए।इसकी रिपोर्ट न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास भेजी जानी चाहिए। अगर ये साबित होता है कि गोलीबारी जरूरी नहीं थी और मरने वाले को पुलिस बचा सकती थी तो फिर मुकदमा दर्ज कर केस होगा।

असद को झांसी में पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया है। IMAGE CREDIT:


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश
मानवाधिकार आयोग की स्पष्ट गाइडलाइन है कि किसी एनकाउंटर पर शक हो तो उसकी जांच करना जरूरी है। जांच में पुलिस अधिकारी दोषी पाए जाते हैं तो मारे गए लोगों के परिजनों को उचित मुआवजा मिलना चाहिए।

राज्य में पुलिस की कार्रवाई के दौरान हुई मौत के सभी मामलों की रिपोर्ट 48 घंटें के भीतर एनएचआरसी को सौंपनी चाहिए। इसके तीन महीने बाद पुलिस को घटना की पूरी जानकारी देते हुए भी आयोग के पास रिपोर्ट भेजना जरूरी है इसमें पोस्टमार्टम रिपोर्ट, जांच रिपोर्ट और मजिस्ट्रेट जांच की रिपोर्ट अटैच होनी चाहिए।

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12 मई 2010 को भी एनएचआरसी के तत्कालीन अध्यक्ष जस्टिस जीपी माथुर ने स्पष्ट कहा था कि पुलिस को किसी की जान लेने का अधिकार नहीं है। जीवन संविधान में दिया गया सबसे अहम अधिकार है।