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स्मृति का अमेठी दौरा: कहीं यूपी की बागडोर सौंपने की तैयारी तो नहीं

स्मृति ईरानी के अलावा और भी बड़े नाम हैं, जिन पर भाजपा दांव लगा सकती है। आइए जानते हैं प्रदेशाध्यक्ष की दौड़ में लगे नेताओं के मजबूत और कमजोर पक्ष के बारे में

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Hariom Dwivedi

Jan 16, 2016


हरिओम द्विवेदी
लखनऊ.
मानव संसाधन विकास मंत्री स्‍मृति ईरानी दो दिवसीय अमेठी दौरे पर हैं। अटकलें हैं कि स्मृति यूपी में भाजपा का नया चेहरा हो सकती हैं। राजनीतिक जानकार इसे बड़े सियासी हलचल के तौर पर देख रहे हैं। ऐसा भी माना जा रहा है कि भाजपा आलाकमान स्मृति को यूपी की बागडोर सौंपने के मूड में है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद यह पहला मौका है, जब वह एक बार फिर चुनावी गतिविधियों में शामिल हुई हैं। स्मृति ईरानी के अलावा और भी बड़े नाम हैं, जिन पर भाजपा दांव लगा सकती है। इनमें पूर्व भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेई भी शामिल हैं।

स्मृति ईरानी
मजबूत पक्ष: करीब पौने दो लाख शिक्षामित्रों का साथ मिल सकता है। क्योंकि स्‍मृति की कोशिशों के बाद एनसीटीई ने शिक्षामित्रों को शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) से छूट दे दी थी। इससे उनके शिक्षक बनने का रास्‍ता साफ हो गया था। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा उन्हें किसानों का भी साथ हासिल है। बीते लोकसभा चुनाव के बाद स्‍मृति ने अमेठी में किसानों की उस 65 एकड़ जमीन का मुद्दा भी उठाया था।

कमजोर पक्ष:
उत्तर प्रदेश से जमीनी जुड़ाव नहीं है, जिसके चलते संगठन खड़ा करने में दिक्कत आ सकती है।

डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेई
मजबूत पक्ष: मौजूदा अध्यक्ष के तौर पर लोक सेवा आयोग अध्यक्ष, अवैध खनन समेत कई मामलों में प्रदेश सरकार को घेरने में कामयाब रहे। अपना एक और कार्यकाल पूरा करने वाले बाजपेई को पार्टी संविधान के मुताबिक, अगला कार्यकाल मिलने में कोई बाधा नहीं है।

कमजोर पक्ष: विधानसभा उपचुनाव में पार्टी की हार के बाद पंचायत चुनाव में हार के बाद नेतृत्व पर सवाल

डॉ. दिनेश शर्मा
मजबूत पक्ष: पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और गुजरात भाजपा के प्रभारी के तौर पर केंद्रीय नेतृत्व के साथ बेहतर तालमेल। संगठन के लिए काम करने वाले निर्विवादित नेता की छवि। कार्यकर्ताओं और जनता के बीच रहने वाले नेता के तौर पर पहचान। दो बार लखनऊ के महापौर का चुनाव जीते।

कमजोर पक्ष: माया, मुलायम के मुकाबले संयमित भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं दिनेश शर्मा।

धर्मपाल सिंह
मजबूत पक्ष:
संगठन में मजबूत पकड़। पांच बार से विधायक धर्मपाल सिंह को कल्याण सिंह के बाद राज्य के चार फीसदी लोध मतदाताओं के बीच पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा माना जाता है। लंबा राजनीतिक अनुभव और निर्विवाद छवि उनके फेवर में जाती है।

कमजोर पक्ष: पश्चिम और मध्य यूपी के मुकाबले पूर्वांचल समेत राज्य अन्य कमजोर पकड़।

स्वतंत्र देव सिंह
मजबूत पक्ष:
यादव के बाद प्रदेश में सबसे सशक्त कुर्मी समाज से आते हैं स्वतंत्र देव सिंह। प्रदेश भाजपा के महामंत्री के तौर पर कार्यकर्ताओं के बीच मजबूत पकड़। विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि के कारण युवाओं में अच्छी पैठ। काम करने वाले तेजतर्रार नेता की छवि। एक बार एमएलसी रहे हैं।

कमजोर पक्ष:
विधानसभा की राजनीति और संगठन चलाने का कम अनुभव।

संतोष गंगवार
मजबूत पक्ष:
पार्टी में कुर्मी समाज का चेहरा। पढ़े-लिखे अनुभवी नेता की छवि। संघ के साथ अन्य सहयोगी संगठनों में भी अच्छी पकड़। प्रदेश स्तर बेहतर पहचान। मध्य और पश्चिमी यूपी के साथ पूर्वांचल में भी प्रभाव। 16वें लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिदवंदी से तकरीबर ढाई लाख वोटों से जीत हासिल की थी।

कमजोर पक्ष: शांत रहने और अन्य दावेदारों के मुकाबले उम्रदराज नेता।

रामशंकर कठेरिया
मजबूत पक्ष:
आगरा से भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया पार्टी का पढ़ा-लिखा दलित चेहरा हैं। लंबे समय तक संघ के प्रचारक रहे। कठेरिया की छवि संगठन के लिए कामकाज करने वाले खांटी भाजपाई की है। मायावती और मुलायम को उन्हीं की शैली जवाब देने का माद्दा। टुकड़ों में बटी दलित जातियों के बीच लंबे समय तक काम करने का अनुभव। मौजूूदा समय में केंद्र में स्टेट एचआरडी मिनिस्टर हैं।

कमजोर पक्ष:
कठेरिया समाज के मतदाताओं की संख्या एक फीसदी से कम।

योगी आदित्यनाथ
मजबूत पक्ष:
जुझारू पार्टी नेता। गोरखपुर लोकसभा सीट पर पहली बार 1998 में पहली बार पार्टी सांसद चुने गए। तब से लेकर अब तक यानी पांच बार से गोरखपुर सीट भाजपा के पास ही है। हिंदुओं के बीच खासे लोकप्रिय नेता। पार्टी कार्यकर्ताओं को एक धड़ा उन्हें काफी पसंद करता है।

कमजोर पक्ष: कट्टर हिंदूवादी नेता की छवि।

वरुण गांधी
मजबूत पक्ष:
यूपी में बीजेपी के फायर ब्रांड नेता के तौर पहचान। युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय। राष्ट्रीय मुद्दों पर बयानबाजी करने में पीछे नहीं रहते। यूपी बीजेपी में कार्यकर्ताओं का एक धड़ा चाहता है कि यूपी में वरुण गांधी को सीएम के तौर प्रोजेक्ट किया जाए

कमजोर पक्ष: विवादित बयानबाजी। 2009 के चुनाव में मुस्लिम विरोधी बयान दिया था। याकूब मेमन को फांसी की सजा का विरोध कर भाजपाइयों के निशाने पर आए।