
सपा-बसपा के गठबंधन में कांग्रेस की एंट्री मुश्किल, अब बचा केवल ये ऑप्शन
प्रशांत श्रीवास्तव, लखनऊ. अगले लोकसभा चुनाव के लिए यूपी में बीजेपी को चुनौती देने के लिए तैयार हो रहे महागठबंधन में कांग्रेस की एंट्री मुश्किल लग रही है। दरअसल सूत्रों की मानें तो सपा-बसपा कांग्रेस को रायबरेली-अमेठी के अलावा कोई भी सीट देने के पक्ष में नहीं, वहीं कांग्रेस को ये बिलकुल स्वीकार नहीं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस भी तीन-चार सीटों के अलावा हर सीट पर अपना उम्मीदवार उतारने के पक्ष में है। सपा-बसपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि यूपी में लगातार कांग्रेस की कमजोर होती पकड़ के कारण उसे महागठबंधन में शामिल करने के पक्ष में नही है। ऐसे में कांग्रेस के सामने अब चुनौती ये है कि वे कैसे क्षेत्रीय दलों के बीच पक रही खिचड़ी में खुद को शामिल करेगी।
पहले बसपा, अब सपा भी पक्ष में नहीं
अक्सर बसपा सुप्रीमो मायावति कांग्रेस पर प्रहार करती दिखी हैं। सूत्रों की मानें तो वे पहले से ही कांग्रेस को महागठबंधन में शामिल करने के पक्ष में नहीं थीं। अब अखिलेश को भी ये बात समझ आ गई है। मौजूदा परिस्थितियों में सपा के लिए बसपा का साथ बेहद जरूरी है। ऐसे में वे किसी भी कीमत पर 'बुआ जी' को नाराज करना नहीं चाहते। वे कांग्रेस से अच्छे संबंध होने की बात तो करते हैं लेकिन गठबंधन को लेकर अक्सर चुप्पी साध लेते हैं। कांग्रेस व सपा के नेता (नाम न छापने की शर्त पर) कहते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद दोनों पार्टियों के संबंधों मे खटास आई थी।
कांग्रेस की लगातार हार भी है कारण
यूपी में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र सात सीटें ही जीत पाई थी। वहीं नगर निकाय चुनाव और फिर फूलपुर-गोरखपुर उपचुनाव में भी उसकी स्थिति बेहद खराब रही थी। ऐसे में कांग्रेस यूपी में लगातार कमजोर हो रही है। पार्टी की ओर से संगठन को मजबूत करने के लिए फिलहाल कोई बड़ा कदम भी नहीं उठाया गया। सपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के नेताओं में हार के बावजूद खुद को बड़ा मानना भी तल्खी की एक वजह है।
रनर-अप फॉर्मुला में भी पीछे है कांग्रेस
सपा-बसपा में सीटों के बंटवारे को लेकर एक आधार ये भी तय हुआ कि दूसरे नंबर पर जो जिस सीट पर रहा उसे वहां मौका मिलेगा। इस लिहाज से देखें तो 2014 लोकसभा चुनाव में बसपा 34 सीटों पर रनर अप रही थी, जबकि सपा 31 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही. कांग्रेस छह सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो सपा को 22.2 और बसपा को 19.6 प्रतिशत वोट मिले। बसपा ने पश्चिम उत्तर प्रदेश, अवध क्षेत्र और पूर्वांचल में बीजेपी को कई सीटों पर कड़ी टक्कर दी. सपा के साथ भी यही स्थिति रही। बुंदेलखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ पश्चिम यूपी की कई सीटों पर वह बहुत ही कम अंतर से हारी।
कांग्रेस के पास अब ये है समाधान
जानकारों की मानें तो कांग्रेस के पास अब यूपी में दो समाधान ही बचे हैं। पहला ये कि वे सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे(रायबरेली-अमेठी के बदले कन्नौज-मैनपुरी छोड़कर)। वहीं दूसरा समाधान ये है कि कांग्रेस के बड़े नेता खुद पहल करके अखिलेश-मायावती को अधिकतर सीटों पर साझा उम्मीदवार उतारने की बात करें। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों की मानें तो अगर सोनिया गांधी प्रयास करें तो ये संभव है।
ये भी हो सकता है समाधान
मौजूदा परिस्थितियों में अंतिम उपाय ये भी दिख रहा है कि 'दोस्ती' के नाम पर अखिलेश कांग्रेस के लिए पांच-छह सीटें छोड़ सकते हैं। राहुल, सोनिया की सीट के अलावा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी, आरपीएन सिंह, सलमान खुर्शीद, जितिन प्रसाद जिस सीट से लड़ेंगे उस पर सपा-बसपा अपना उम्मीदवार न उतारे लेकिन ऐसा एक ही स्थिति में होगा जब ये सभी नेता अखिलेश-मायावती से इस मुद्दे को लेकर बात करें। इसके अलावा मध्यप्रदेश, राजस्थान में भी सपा को गठबंधन में कुछ सीटें दी जाएं। मौजूदा स्थितियों में ये आसान नहीं दिख रहा।
Published on:
18 Jun 2018 08:28 pm
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