लखनऊ

कोरोना ने बदला इकोलॉजी सिस्टम : महुआ खाकर बौराए भालू और हिरन, जंगल छोड़ पहुंच रहे गांव

- फूल गिरने का सीजन खत्म होने को, अब इसकी मादक मिठास की तलाश बना रही वन्य जीवों को पागल- लॉकडाउन की वजह से न तोड़ा गया तेंदूपत्ता न ही ग्रामीणों ने की महुआ बिनाई- महुआ खाकर लती बने वन्यजीव

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Apr 21, 2020
कोरोना ने बदला इकोलॉजी सिस्टम : महुआ खाकर बौराए भालू और हिरन, जंगल छोड़ पहुंच रहे गांव

महेंद्र प्रताप सिंह

लखनऊ. कोरोना वायरस के संक्रमण और लॉकडाउन ने पारिस्थिकीय तंत्र को भी प्रभावित किया है। बुंदेलखंड और विंध्याचल रेंज के जंगलों में पहली बार तेंदूपत्ता की तुड़ाई न होने से जंगलों में मानव की चहलकदमी थम गयी। इसका सीधा असर वन्यजीवों पर दिख रहा है। भालू, तेंदुआ और हिरन जैसे तमाम वन्य जीव जंगलों से गांवों की ओर रुख कर रहे हैं। इनके हमले बढ़ गये हैं। भालू और हिरन तो महुआ के लती बन गए हैं। अब जब महुआ खत्म होने को है वे इसकी तलाश मेे गांवों तक खिंचे आ रहे हैं।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के गांवों और यहां के जंगलों में महुआ का पेड़ बहुतायत में मिलता है। 15 मार्च से लेकर 15 अप्रेल तक इसमें पीले रंग के रसभरे फूल आते हैं। पौष्टिक तत्वों से भरपूर यह फूल ग्रामीण अर्थ व्यवस्था के आधार हैं। लेकिन, लॉकडाउन की वजह से इस बार ग्रामीण इन फूलों को नहीं चुन पाए। जंगलों में फूल चुनने का ठेका होने के बावजूद इन्हें चुनने कोई नहीं पहुंचा। जमीन पर पड़े इन फूलों को जंगली जीवों ने पहली बार जमकर स्वाद लिया। और वे इसके लती बन गए।

महुआ से बनती है देशी शराब

महुआ से ग्रामीण देशी शराब भी बनाते हैं। इसके रस में मादकता भरी मिठास होती है। जो हल्का-हल्का नशा करती है। इसे खाकर भालू और हिरन इसके लती हो गए हैं। अब महुआ के फूल गिरना बंद हो रहे हैं। तब अब महुआ की खूशबू इन वन्य जीवों को जंगल से गांवों की तरफ खींच रही है। इस वजह से वन्य जीवों और इंसानों के बीच हमले बढ़ गए हैं।

पहली बार नहीं हुई तेंदू पत्ता की तोड़ाई

लॉकडाउन की वजह से चित्रकूट, विध्यांचल और बुंदेलखंड के जंगलों में पहली बार तेंदू पत्ता की तोड़ाई नहीं हुई है। तेंदूपत्ता जंगलों में पेड़ से गिर गया है। अब इन्हें बटोरना आसान नहीं है। हालांकि, अब तेंदूपत्ता की तुड़ाई के लिए लॉकडाउन में आंशिक छूट मिली है लेकिन मजदूरों के न मिलने से ठेकेदार परेशान हैं। तेंदूपत्ता न मिलने से बीड़ी निर्माता कंपनियां भी परेशान हैं। विध्यांचल और बुंदेलखंड इलाके में कम से कम 50 हजार लोगों की आजीविका सीधे तौर पर तेंदूपत्ता से जुड़ी है। इनमें से अधिकतर महुआ बीनने का भी ठेका लेते थे। अब इनके समक्ष रोजी रोटी का संकट है।

क्या कहते हैं जिम्मेदार

लॉकडाउन की वजह से जंगलों में इंसानों की आवाजाही बंद है। ऐसे में वन्य जीवों को खुला वातावरण मिला है। इसलिए वह सहज भाव में इधर से उधर भोजन, पानी की तलाश में आ जा रहे हैं।
-जीपी सिंह, प्रभागीय वनाधिकारी, कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग

लॉकडाउन होने के चलते मानवीय गतिविधियां बेहद सीमित हो गई हैं ऐसे में वन्य जीव मानव बस्तियों की ओर भी रुख कर रहे हैं। ग्रामीणों को सतर्क किया गया है।
-रमेश यादव, क्षेत्राधिकारी, मारकुंडी वन क्षेत्र

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वन्य जीवों की बढ़ गई चहलकदमी

पीलीभीत में जीना मुहाल

पीलीभीत टाइगर रिजर्व से भटकर बाघ इंसानी बस्तियों की ओर आ गए हैं। इनके हमले में अब तक दो इंसानों की जान गयी है। एक तेंदुए की हाइवे पर अज्ञात वाहन से कुचल कर मौत भी हुई है। माला रेंज की रिछोला चौकी के ग्रामीण दहशत में हैं।

चित्रकूट में बाघों के बीच संघर्ष, टाइगर की मौत

चित्रकूट के जंगलों में आवाजाही बंद होने से वन्य जीवों में आपसी संघर्ष बढ़ गया है। मझगवां वन क्षेत्र में करिया बीट के जंगल में दो बाघों के संघर्ष में एक की मौत हुई है।

तेंदुए के हमले में दस घायल

बहराइच के मुर्तिहा कोतवाली क्षेत्र में जंगल से गांव में घुसे तेंदुए ने पृथ्वीपुरवा के कई घरों में छलांग लगा दी। हमले 10 लोग घायल हो गए। इसके पहले कतर्निया जंगल में बाघ ने एक वनकर्मी को ही अपना शिकार बना लिया।

सडक़ पर घूम रहे जंगली जीव

नेपाल से सटे बहराइच जिले के तकरीबन 550 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग में पर्यटकों की आवाजाही लॉकडाउन की वजह से बंद है। ऐसे में बाघ, तेंदुआ, चीतल, हिरन, पाढ़ा समेत कई अन्य दुर्लभ जीव-जंतु जंगल से निकलकर मुख्य मार्ग सहित खुले इलाकों में बेखौफ विचरण करते नजर आ रहे हैं।

Updated on:
24 Apr 2020 11:57 am
Published on:
21 Apr 2020 03:10 pm
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