
कोर्ट के इस फैसले ने लिखी थी आपातकाल की पटकथा, इतिहास में दर्ज है 12 जून की यह घटना
लखनऊ. 12 जून उत्तर प्रदेश ही नहीं भारतीय राजनीति के लिए अहम तारीख है। 44 साल पहले यानी 12 जून 1975 को आये एक फैसले की वजह से ही देश को आपातकाल झेलना पड़ा था और जिस मुकदमे में यह फैसला आया था उसे ‘राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ के नाम से जाना जाता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला अगर इंदिरा गांधी के खिलाफ न जाता तो शायद ही देश में आपातकाल लगाने की नौबत आती। गौरतलब है कि 25 जून 1975 की आधी रात के वक्त आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लागू रही। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान की धारा 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी।
12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'राजनारायण बनाम उत्तर प्रदेश’ मामले में बड़ा फैसला सुनाया था। फैसले में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली चुनाव के दौरान सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया गया था। इसके बाद उनकी सदस्यता खारिज कर दी गई। इतना ही नहीं जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा की कोर्ट ने उन्हें अगले छह वर्ष तक कोई भी चुनाव लड़ने या फिर किसी तरह के पद संभालने पर रोक लगा दी थी। दरअसल 1971 में रायबरेली लोकसभा सीट से इंदिरा गांधी से चुनाव हारे राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंदिरा गांधी की जीत को चुनौती दी थी।
...और कर दी आपातकाल की घोषणा
23 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए फैसले पर पूर्ण रोक लगाने की मांग की। 24 जून को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश को बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री पद पर बने रहने की इजाजत दे दी। उधर, जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग करते हुए देश भर में प्रदर्शन का आह्वान किया। इसके बाद उत्तर प्रदेश सहित देश भर में हड़तालें शुरू हो गईं। लोकनायक कहे जाने वाले जयप्रकाश नारायण पूरे विपक्ष की अगुआई कर रहे थे। जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई समेत कई नेताओं के नेतृत्व में विरोध-प्रदर्शन व्यापक हो गया था। लोगों ने भी बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लिया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर बने रहने की इजाजत दे दी थी, लेकिन समूचा विपक्ष सड़कों पर उतर चुका था। प्रतिकूल हालातों को देखते हुए इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लागू करने का फैसला लिया। 25 जून की आधी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने आपातकाल की घोषणा कर दी।
इंदिरा गांधी का राष्ट्र के नाम संबोधन
26 जून 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा, 'आपातकाल जरूरी हो गया था। एक ‘जना’ सेना को विद्रोह के लिए भड़का रहा है। इसलिए देश की एकता और अखंडता के लिए यह फैसला जरूरी हो गया था।’
पहली बार बनी गैर-कांग्रेसी सरकार
1977 में लोकसभा चुनाव कराये गये, इसमें कांग्रेस पार्टी 153 सीटों पर सिमट गई और जनता पार्टी को जीत मिली। इस चुनाव में खुद इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गईं। 23 मार्च 1977 को देश में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरार जी देसाई देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने। आजादी के 30 साल बाद देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार सत्ता में आई।
क्या है आपातकाल और कब होता है लागू?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत युद्ध, बाहरी आक्रमण और राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार पर आपाताकाल लागू किया किया जा सकता है। इमरजेंसी के दौरान सरकार के पास असीमित अधिकार होते हैं, लेकिन आम आदमी के सारे अधिकार छीन लिये जाते हैं। केंद्रीय कैबिनेट की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल लागू किया जाता है। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत किसी राज्य में जब राजनीतिक और संवैधानिक व्यवस्था फेल हो जाती है तो राष्ट्रपति आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है। इस स्थिति में सिर्फ न्यायिक कार्यों को छोड़कर केंद्र सारे राज्य प्रशासन अधिकार अपने हाथों में ले लेता है। आपातकाल की सीमा कम से कम दो महीने और अधिकतम तीन साल तक हो सकती है। अनुच्छेद 360 के तहत आर्थिक आधार पर भी राष्ट्रपति आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है। लेकिन वह तब जब लगे कि भारत की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर है। ऐसी स्थिति में आम नागरिकों के पैसों और संपत्ति पर देश का अधिकार हो जाएगा।
Updated on:
12 Jun 2019 05:20 pm
Published on:
12 Jun 2019 05:13 pm
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