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42 साल पहले आज के दिन शुरु हुई थी ‘संपूर्ण क्रांति’, मिला था ‘आपातकाल’

आज से ठीक 42 साल पहले 18 मार्च 1974 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में छात्र आंदोलन की शुरूआत हुई थी।

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Kaushlendra Singh

Mar 18, 2016

jayaprakash narayan

jayaprakash narayan

लखनऊ। आज से ठीक 42 साल पहले 18 मार्च 1974 को जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना में छात्र आंदोलन की शुरूआत हुई थी। इस आंदोलन ने केवल बिहार का नहीं बल्कि पूरे देश की राजनीति को बदल दिया था। करीब एक साल चले इस आंदोलन के चलते ही देश को लोकतंत्र का सबसे काला समय कहे जाने वाले 'आपातकाल' का सामना करना पड़ा। आपको याद दिला दें कि देश में 26 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए देश में आपातकाल घोषित कर दिया था।

इस आंदोलन की शुरुआत यूं तो बिहार को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने के लिए गांधीवादी नेता जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 में हुई थी। लेकिन अंत में इस छात्र आंदोलन ने ऐसी रफ्तार पकड़ी कि उसने सीधे केन्द्र में तत्कालीन इंदिरा गांधी की सरकार को निशाने पर ले लिया। इतिहास में दर्ज हो चुके इस आंदोलन को आज लोग संपूर्ण क्रांति और जेपी आंदोलन के नाम से भी जानते हैं। इस आंदोलन का असर पूरे देश की राजनीति पर पड़ा और बाद में जनता पार्टी की सरकार का गठन हुआ।

क्या थी संपूर्ण क्रांति

संपूर्ण क्रांति जयप्रकाश नारायण का विचार व नारा था जिसका आह्वान उन्होंने इंदिरा गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिये किया था।

लोकनायक ने कहा था कि संपूर्ण क्रांति में सात क्रांतियां शामिल हैं- राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति होती है।

पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आहवान किया था। मैदान में उपस्थित लाखों लोगों ने जात-पात, तिलक, दहेज और भेद-भाव छोड़ने का संकल्प लिया था। उसी मैदान में हजारों-हजार ने अपने जनेऊ तोड़ दिये थे। नारा गूंजा था...

जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो।
समाज के प्रवाह को नयी दिशा में मोड़ दो।

संपूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। जय प्रकाश नारायण के हुंकार पर नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। बिहार से उठी सम्पूर्ण क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। जेपी के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे। लालू यादव, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान और सुशील कुमार मोदी, आज के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे। इसके अलावा देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी इस आंदोलन में बढ़ कर हिस्सा लिया था।

"संपूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है।"
- लोकनायक जय प्रकाश नारायण

जेपी आंदोलन से डर गई थीं इंदिरा गांधी

जयप्रकाश नारायण द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बेहद डर गई थीं। उन्हें डर था कि अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए जेपी की मदद से उनको सरकार से बेदखल करना चाहती है। इस बात का जिक्र बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इमरजेंसी के चालीस साल पूरे होने पर दिए एक साक्षात्कार में किया था।

बताया जाता है कि जैसे-जैसे देश में जेपी का आंदोलन बढ़ रहा था, वैसे-वैसे इंदिरा गांधी के मन में एक अजीब-सा भय पैदा हो गया था। देश के हालत जिस तरह के हो गए थे उससे उन्हें लगने लगा था कि विदेशी ताकत की मदद से देश में आंदोलन चलाए जा रहे हैं और उनकी सरकार का तख्ता पलट कर दिया जाएगा।

अपनी सरकार के तख्तापलट से डरी इंदिरा गांधी ने 1975 में आपातकाल की घोषणा कर दी। जेपी सहित 600 से भी ज्यादा सत्ता विरोधी नेताओं को बंदी बना लिया गया था। कुछ दिन बाद जेपी की तबीयत ज्यादा खराब होने लगी जिसे देखते हुए सात महीने बाद उनको जेल से छोड़ दिया गया। उन्होंने हार नहीं मानी। 1977 में सत्ता विरोधी लहर में उन्होंने इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा। जेपी की वजह से ही इंदिरा गांधी रोने पर मजबूर हो गईं थीं।

इन छात्र संगठनों ने निभाई थी महती भूमिका

उस दौर में जनसंघ से संबंधित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), समाजवादी पार्टी और लोकदल के साथ जुड़ी समाजवादी युवजन सभा (SYS) जैसे कई राजनीतिक छात्र संगठनों ने जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी। इसके अलावा भाकपा के साथ जुड़ा हुआ ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISF) भी शामिल हुआ था।

Source: इंटरनेट