
Kargil war Vijay Divas : कैप्टन मनोज पांडे के पिता बिफरे सरकार पर, कहा- कोई वादा पूरा नहीं हुआ
रुचि शर्मा
लखनऊ. जवान बेटे को कंधा देने का गम वहीं पिता बता सकता हैं, जिसने ये दर्द सहन किया हो। रूह कांप जाती है जब बेटे को गोद में खिलाकर एक पिता बड़ा करता है अौर उस बेटे की अर्थी भी अपने कंधे पर ले जाना पड़ता है। जबकि पिता की ये अाखिरी इच्छा होती है कि उसकी अर्थी को कंधा उसका बेटा दे। गोपी चंद्र भी एक एेसे ही पिता है जिसने अपने जवान बेटे की अर्थी के लिए अपने कंधे मजबूत करने पड़े। वो बेटे थे शहीद कैप्टन मनोज पांडे। परमवीर चक्र विजेता मनोज पांडे, मात्र 24 साल की उम्र में ही देश के लिए अपने प्राण न्योछावर कर गए, लेकिन अपनी शहादत से पहले वो करगिल जंग की जीत की बुनियाद रख चुके थे।
बचपन से ही वीर बलिदान की कहानी सुना करते थे मनोज
मनोज पांडे के पिता गोपी चंद्र पांडे से बेटे के बारे में बात की गई तो उनका गाल रुंध गए और उनकी आंखों से आंसुओं का सैलाब निकलने लगा। भरी अवाज में वे बोले कि मनोज का सपना बचपन से ही सेना में जाने का था। मनोज बचपन से ही देश के वीरों के बलिदान की कहानी सुना करते थे। देश के महान वीरों को ही उन्होंने अपना आदर्श बनाया था। देशभक्ति की भावना ही उन्हें सेना में देश की सेवा करने के लिये ले गई। 12वीं के बाद उन्होंने सेना को ही चुना। पढ़ाई पूरी करने के बाद मनोज ने प्रतियोगी परीक्षा पास करके पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में दाखिला लिया था।
आखिरी सांस तक लड़ते रहे मनोज
कारगिल युद्ध भारत के लिए बेहद तनाव भरी स्थिति थी। सभी सैनिकों की आधिकारिक छुट्टियां रद्द कर दी गईं थीं। महज 24 साल के कैप्टन मनोज पांडेय को आॅपरेशन विजय के दौरान जुबर टॉप पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई थी। हाड़ कंपाने वाली ठंड और थका देने वाले युद्ध के बावजूद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की हिम्मत ने जवाब नहीं दिया। युद्ध के बीच भी वह अपने विचार अपनी डायरी में लिखा करते थे। उनके विचारों में अपने देश के लिए प्यार साफ दिखता था। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था,”अगर मौत मेरा शौर्य साबित होने से पहले मुझ पर हमला करती है तो मैं अपनी मौत को ही मार डालूंगा।
ये जवाब सुनकर चौंक गए अाफिसर
पिता गोपी पांडे बताते हैं कि एनडीए में दाखिले के लिए मनोज पांडेय को एसएसबी के इंटरव्यू की बाधा पार करनी थी। वह इंटरव्यू का आखिरी दिन था। इंटरव्यू पैनल सामने बैठा था। मनोज से सवाल पूछा गया, ‘आर्मी क्यों जॉइन करना चाहते हो?’ मनोज ने जो जवाब दिया उसे सुनकर वहां मौजूद हर शख्स चौंक गया था। बेटे ने जवाब दिया ‘मुझे परमवीर चक्र चारिए।’ इसके बाद मनोज को एनडीए में दाखिला मिल गया।
सरकार से जताई नाराजगी
सरकार से नाराजगी जताते हुए गोपी पांडे कहते हैं कि सीतापुर जिले के रुढा गांव में 25 जून 1975 को जन्मे मनोज कुमार पांडेय का बचपन तो गांव में बीता, मनोज पांडेय की शहादत पर केंद्र और राज्य सरकार ने गांव के विकास के लिए कई वादे किये थे। लेकिन 19 साल बाद भी आज तक शाहिद का गांव कस का तस है। कैप्टन मनोज पांडेय की स्म्रति में बनाया गया पार्क जीर्ण शीर्ण हो चुका है तो शाहिद की जन्म स्थली विकास की बाट जोह रही है। वही गांव में अब तक उच्च शिक्षा की व्यवस्था तक नहीं हो सकी है। उन्होंने कहा आज सरकार अौर अफसरों के पास मिलने का भी समय है। सरकार आती है चले जाती है पर शहीदों के लिए कोई खास काम नहीं करती।
Published on:
26 Jul 2018 01:44 pm
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