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सीता के बहे रक्त का बदला लेने के लिए जब राम ने कौवे की फोड़ी आंख

रामघाट से दो किलोमीटर की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे जानकी कुंड स्थित है जो काफी खूबसूरत है। कहा जाता है कि वनवास के दौरान सीता यहीं पर स्नान करने के लिए आती थी। आज भी सीता के पदचिन्ह यहां पर मौजूद है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु सीता माता के पदचिन्ह देखने के लिए यहां पहुंचते हैं। जानकी कुंड के पास ही रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर स्थित है जिसकी दिव्यता देखने लायक है।

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लखनऊ

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Prashant Mishra

Nov 15, 2021

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लखनऊ. मंदाकिनी नदी के तट पर बसा चित्रकूट धाम अपने ऐतिहासिक महत्व और प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर स्थित चित्रकूट धाम को पर्वत मालाएं और प्राकृतिक सुंदरता खास बनाती है। ऐतिहासिक धार्मिक मान्यताएं भगवान राम के भक्तों को चित्रकूट खींच ही लाता हैं। माना जाता है कि राम ने अपने बनवास का सबसे ज्यादा समय 11 साल 11 माह 11 दिन राम ने सीता व लक्ष्मण के साथ यहीं पर बिताया था। मंदाकिनी नदीं के किनारे बसे चित्रकूट में पूरे साल भक्तों का आना-जाना रहता है।

चित्रकूट को लेकर कई पौराणिक कहानियां है लेकिन एक कहानी ऐसी है जो लोगों को रोमांचित करती है। यहां जानकीकुंड से कुछ दूरी पर मंदाकिनी नदीं के किनारे एक शिला स्थित है। इस शिला का अपना ऐतिहासिक महत्व है। शीला पर एक बार सीता जी व भगवान राम बैंठे थे तभी इन्द्र पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धारण कर सीता माता के पैरे में चोच मारी और सीता के पैरे से खून बहने लगा। राम ने जब ये देखा तो उन्होंने कौवे पर ब्रम्हास्त्र चला दिया। जान बचाने के लिए जयंत ने सीता माता व राम के मांफी मांगी जिसके बाद राम ने उसे जीवनदान दिया। पर ब्रम्हास्त्र का मान रखने के लिए राम को जयंत की आंख भोड़नी पड़ी। माना जाता है कि इस शिला पर राम और सीता बैठकर चित्रकूट की सुंदरता को निहारते थे। ये जगह आज भी बेहत खूबसूरत व आकर्षित है।

यहां मौजूद हैं सीता के पदचिन्ह

रामघाट से दो किलोमीटर की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे जानकी कुंड स्थित है जो काफी खूबसूरत है। कहा जाता है कि वनवास के दौरान सीता यहीं पर स्नान करने के लिए आती थी। आज भी सीता के पदचिन्ह यहां पर मौजूद है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु सीता माता के पदचिन्ह देखने के लिए यहां पहुंचते हैं। जानकी कुंड के पास ही रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर स्थित है जिसकी दिव्यता देखने लायक है।

जलधारी की सुन्दरता अद्भुत

चित्रकूट पहाड़ी के शिखर पर हनुमान धारा में हनुमान जी की एक विशाल मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति के पास एक तालाब है जिसमें झील का पानी गिरता है। यहां का ये दृश्य काफी मनमोहक है। हनुमान द्वारा लंका दहन करने के बाद वापस आने पर उनके आराम के लिए भगवान श्रीराम ने यहां पर तालाब व जलधारा का निर्माण कराया था। यहा सती अनुसुइया का आश्रम भी मौजूद है, आश्रम में अत्रि मुनि, अनुसुइया, दत्तात्रेय और दुर्वासा मुनि की प्रतिमा स्थापित है।

गुफाएं करती हैं आकर्षित

चित्रकूट के घने जंगलों में कई गुफाएं हैं जो गुफाएं काफी आकर्षित हैं। चित्रकूट नगर से 18 किलोमीटर की दूरी पर गुप्त गोदावरी है जहां पर ये गुफाएं मौजूद हैं। दो में से एक गुफा के अंदर तालाब स्थित है जिसे गोदावरी नदीं कहा जाता है। दूसरी गुफा काफी लंबी और सकरी है जिससे हमेशा पानी बहता रहता है। यह मान्यता है गुफा के अंत में श्रीराम व लक्ष्मण ने अपना दरबार लगाया था।

आधुनिक हुआ चित्रकूट

ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ चित्रकूट आधुनिक भी हो गया है। यहां पर पहुंचने के लिए पर्याप्त परिवहन साधन मौजूद हैं। यहां रहने के लिए सस्ते होटल हैं। चित्रकूट का नजदीकी एयरपोर्ट खजुराहो है खजुराहो चित्रकूट से 185 किलोमीटर दूरी पर है। दूरदराज से आने वाले यात्री बनारस व लखनऊ एयरपोर्ट से भी चित्रकूट दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। चित्रकूट से आठ किलोमीटर की दूरी पर कर्वी निकटतम रेलवे स्टेशन है जबकि सतना रेलवे स्टेशन 70 किलोमीटर की दूरी पर है। चित्रकूट के लिए इलाहाबाद, झांसी, बांदा, कानपुर, महोबा, सतना, छतरपुर, लखनऊ, फैजाबाद, मैहर आदि शहरों से बस सेवा उपलब्ध है। अपने वाहन से जानें के लिए यहां पर पक्की सड़कें मौजूद हैं।

ये हैं मुख्य स्थल

हनुमान धारा, गुप्त गोदावरी, चित्रकूट जल प्रपात और दंतेवाड़ा मां काली मंदिर, रामघाट, सती अनुसुइया आश्रम, भरत मिलाप मंदिर, कामदगिरि पर्वत, जानकी कुंड, स्फटिक शिला, परम कुटी, भरतकूप, लक्ष्मण चौकी, राम सिया गांव, वाल्मीकि आश्रम, मयूरध्वज आश्रम, प्रमोद वन, विराज कुंड, शबरी फॉल, गणेश वाघ।