“आनन्द ताण्डव” और “संहार ताण्डव” जब शिव समाधि की इस अवस्था से स्वतः बाहर आते हैं तब वे आनन्द में नृत्य करते हैं। यही पहला ताण्डव है यानि “आनन्द ताण्डव”। शिव के इस “आनन्द ताण्डव” से निकलने वाली ऊर्जा से ही ब्रह्माण्ड में “लय” उत्पन्न होता है और सृष्टि का “सृजन” होता है। मगर जब शिव अपनी समाधि की इस आनन्द अवस्था से स्वतः बाहर न आकर किसी बाहरी बाधा से बाहर आते हैं तब वे विनाशकारी नृत्य करते हैं। जिसे “संहार ताण्डव” कहते हैं। शिव के इस “संहार ताण्डव” से ब्रह्माण्ड में “प्रलय” उत्पन्न होता है और सृष्टि का “विनाश” होने लगता है। अर्थात् “लय” और “प्रलय” यानि “सृजन” और “विनाश” इन दोनों के कारक आदि शिव ही हैं।
‘नटराज’ प्रतीक है भगवान शिव के ‘आनन्द ताण्डव’ का आपने नटराज की प्रतिमा तो अवश्य देखी होगी। नटराज प्रतीक है शिव के ताण्डव स्वरूप का। मगर ये ताण्डव आनन्द ताण्डव है। यानि शिव का नटराज रूप इस सृष्टि के निर्माण का प्रतीक चिन्ह है। इस ब्रह्माण्ड में होने वाली हर हलचल के पीछे शिव का आनन्द ताण्डव ही है। नटराज को कॉस्मिक डांस (Cosmic Dance) भी कहा जाता है। कॉस्मिक यानि ब्रह्माण्डीय ऊर्जा, क्योंकि उनका नृत्य, ‘सृजन और विनाश’ क्या है, ये दर्शाता है।
सात प्रकार के हैं ताण्डव संगीत रत्नाकर के अनुसार ताण्डव नृत्य सात प्रकार का है। पहला आनन्द ताण्डव, दूसरा संध्या ताण्डव, तीसरा कलिका ताण्डव, चौथा त्रिपुरा ताण्डव, पाँचवा गौरी ताण्डव, छठा संहार ताण्डव और सातवाँ उमा ताण्डव। इस सातों ताण्डव में गौरी ताण्डव और उमा ताण्डव सबसे भयानक और डरावने होते हैं। शिव का ये नृत्य श्मशान में जलती चिताओं के बीच होता है। इस विनाशकारी ताण्डव से शिव संपूर्ण ब्रह्माण्ड का विनाश करते हैं और सब जीवों को बंधन से मुक्त कर मोक्ष प्रदान करते हैं।
नटराज की मूर्ति में छिपा रहस्य आइये अब तांडव की मुद्राओं को नटराज की मूर्ति के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं। नटराज की प्रसिद्ध मूर्ति की चार भुजाएं हैं। उनके चारों ओर अग्नि का घेरा है। अपने एक पैर से शिव ने एक बौने राक्षस को दबा रखा है। दूसरा पैर नृत्य मुद्रा में ऊपर की ओर उठा हुआ है। शिव अपने दाहिने हाथ में डमरू पकड़े हैं। डमरू की ध्वनि यहाँ ‘सृजन’ का प्रतीक है। ऊपर की ओर उठे उनके दूसरे हाथ में अग्नि है। यहां अग्नि ‘विनाश’ का प्रतीक है। इसका अर्थ यह है कि शिव ही एक हाथ से ‘सृजन’ और दूसरे से ‘विनाश’ करते हैं।
शिव का तीसरा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में उठा हुआ है। उनका चौथा बायाँ हाथ उनके उठे हुए पैर की ओर इशारा करता है, इसका अर्थ यह भी है कि शिव के चरणों में ही मोक्ष है। शिव के पैर के नीचे दबा बौना दानव अज्ञान का प्रतीक है, जो कि शिव द्वारा नष्ट किया जाता है। चारो ओर उठ रही लपटें इस ब्रह्माण्ड का प्रतीक है। शिव की ये संपूर्ण आकृति ‘ॐकार’ स्वरूप दिखाई पड़ती है। विद्वानों के अनुसार यह इस बात की ओर इशारा करती है कि ‘ॐ’ दरअसल शिव में ही निहित है।