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शहीदी दिवसः किस दबाव के चलते कानपुर के लिए निकले थे भगत सिंह, जानिए

23 मार्च यानि आज शहीदी दिवस (shaheedi diwas) मनाया जाता है। वर्ष 1931 में इसी दिन आजादी की लड़ाई में भारत के तीन सपूतों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने हंसते हंसते फांसी की सजा को गले लगा लिया था। वीर क्रांतिकारियों से जुड़े तथ्यों को जनाने के लिए पढ़ें पूरी खबर।

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लखनऊ

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Snigdha Singh

Mar 23, 2022

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shaheedi diwas

आजादी की लड़ाई के इतिहास में क्रांतिकारी योद्धाओं में सबसे पहले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का नाम लिया जाता है। अब से करीब 85 साल पहले आज के ही दिन इन वीर क्रांतिकारियों फांसी के फंदे को चूम कर गले में डालकर शहीद हो गए थे। तब से आज के दिन को शहीदी दिवस के रूप में मनाते हैं।

भारत की आजादी की लड़ाई में अहम योगदान निभाने वाले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को आज ही के दिन यानी 23 मार्च 1931 को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी। इन क्रांतिकारियों के हौंसलो और जज्बों और खासकर शहीद भगत सिंह को देश में बड़ी संख्या में युवा फॉलो करता है। इन वीर क्रांतिकारियों ने महात्मा गांधी से अलग रास्ते पर चलकर अंग्रेजों से लड़ने का फैसला किया था। इन तीनों ने बहुत कम उम्र में देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। देश के नेताओं से लेकर युवाओं तक ने क्रांतिकारियों को याद कर श्रद्धांजलि दिया।

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शादी के दबाव से कानपुर के लिए निकले थे भगत सिंह

तथ्यों और इतिहास की माने तो शहीद भगत सिंह शादी नहीं करना चाहते थे। भगत सिंह के माता-पिता ने जब उन पर शादी का दबाव बनाया, तो वह घर छोड़कर कानपुर के लिए निकल पड़े। उनका कहना था कि अगर उन्होंने गुलाम भारत में शादी की, तो उनकी दुल्हन की मौत होगी।

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क्यों एक दिन पहले ही हुई फांसी

भारत के लिए अपने प्राणों को हंसकर कुर्बान करने वाले इन तीनों बहादुरों को लाहौर की सेंट्रल जेल में रखा गया था। इतिहासकारों के अनुसार इन तीनों को फांसी देने के लिए 24 मार्च 1931 का दिन तय किया गया था। लेकिन अंग्रेजों ने इसमें अचानक बदलाव किया और तय तारीख से 1 दिन पहले इन्हें फांसी दे दी। अंग्रेजों को डर था कि फांसी वाले दिन ये लोग उग्र न हो जाएं।