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लखनऊ

मच सकती है तबाही:पिघलने के साथ अब खिसकने भी लगा ग्लेशियर, वैज्ञानिक शोध में हुआ बड़ा खुलासा

Himalayas in danger:जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण मध्य हिमालय का एक ग्लेशियर पिघलने के साथ ही अब आगे की ओर खिसकने लगा है। ये हालात बेहद चिंताजनक हैं। ग्लेशियर टूटने की दिशा में बड़ी तबाही मच सकती है। मध्य हिमालय में खिसकते ग्लेशियर का पहला मामला सामने आने से वैज्ञानिक चिंतित हैं।

लखनऊDec 06, 2024 / 11:30 am

Naveen Bhatt

With the melting of Himalayan glaciers, they have also started slipping

मध्य हिमालय का एक ग्लेशियर पिघलने के साथ ही अब आगे की ओर खिसकने लगा है

 
Himalayas in danger:जलवायु परिवर्तन का पूरे विश्व में व्यापक असर पड़ रहा है। हिमालय भी जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने लगा है। लंबे समय से पिघल रहे ग्लेशियरों की चिंताओं के बीच ये नया संकट है। उत्तराखंड के देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने पहली बार उत्तराखंड के मध्य हिमालय क्षेत्र में एक अनाम ग्लेशियर के आगे बढ़ने की बड़ी घटना का पता लगाया है। ग्लेशियर आगे की ओर खिसकने की घटना अभी तक अलास्का, काराकोरम और नेपाल हिमालय में ही दर्ज की गई थी। अब उत्तराखंड में ये मामला सामने आने से वैज्ञानिक हैरान हैं। वैज्ञानिक इसके पीछे ग्लोबल वार्मिंग, तापीय इफेक्ट और उस क्षेत्र की टोपोग्राफी को मुख्य वजह मान रहे हैं। वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों का यह शोध एनवायरमेंटल साइंस एंड पॉल्यूशन रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ता वैज्ञानिक डॉ.मनीष मेहता, विनीत कुमार, अजय सिंह राणा और गौतम रावत ने चमोली जिले के धौलीगंगा के नीति घाटी के अभिगामी पर्वत पीर के पास स्थित 48 वर्ग किलोमीटर बड़े अनाम ग्लेशियर के ताजा अध्ययन में ग्लेशियर के खिसकने की स्थिति का खुलासा किया है।

तीन दशकों में आगे बढ़ा ग्लेशियर

उत्तराखंड के इस ग्लेशियर का उद्गम भारत में और निकासी तिब्बत की ओर है। मतलब बाढ़ आदि का पहला खतरा तिब्बत की ओर होगा, लेकिन आसपास के इलाकों में इसी तरह के परिवर्तन से भारतीय क्षेत्र से धौलीगंगा क्षेत्र में बाढ़ का खतरा हो सकता है। वैज्ञानिकों ने रिमोट सेंसिंग के डेटा विश्लेषण में पाया है कि साल 1993 से 2022 तक ग्लेशियर टर्मिनेस में उतार चढ़ाव, सतह के वेग, सतह की ऊंचाई में बदलाव आया। पिछले तीन दशकों में ग्लेशियर आगे बढ़ा। ग्लेशियर सरकने की दर 2001- 2002 से अब तक दस मीटर प्रति वर्ष से लेकर 163 मीटर तक पाई गई है। हालांकि साल 2021-2022 के बीच यह दर घटकर 17 मीटर प्रति वर्ष रही।
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तबाही मचा सकते हैं ग्लेशियर

डॉ.मनीष मेहता के मुताबिक, ग्लेशियर बदलाव की ये स्थिति निचले इलाकों के लिए खतरनाक है, ऐसी घटनाएं चमोली के रेणी में हेंगिंग ग्लेशियर टूटने के कारण ऋषिगंगा में आई भीषण बाढ़ से भी ज्यादा तबाही ला सकती है। जिन बदलावों का सामना मध्य हिमालयी ग्लेशियर कर रहा है, वैसा असर हिमालय के अन्य ग्लेशियरों पर पड़ने से इनकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में निश्चित रूप से आबादी क्षेत्रों पर बड़ा खतरा मंडरा रहा है। यह शोध ग्लेशियर से जुड़े खतरों का आंकलन करने में मदद करेगा।

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