
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती
साल 1993 में यूपी में चुनाव हुआ। सपा- बसपा ने आपसी गठबंधन से सरकार बनाई। मुलायम सिंह यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। शुरुआत के डेढ़ साल तो सरकार सही से चली, लेकिन उसके बाद बसपा ने अपना समर्थन वापस लेने का मन बना लिया।
दरअसल, समर्थन वापस लेने की बात उठी 1995 में हुए ग्राम पंचायत चुनाव से। उस समय राज्य के 50 जिलों में ग्राम पंचायत चुनाव हुए, जिसमें से 30 पर सपा की जीत हुई। वहीँ, बसपा के हाथ केवल 1 सीट लगी। इस चुनाव से ये तो साफ हो गया कि इस गठबंधन से केवल सपा को फायदा हो रहा है, बसपा को नहीं।
लखनऊ मीराबाई गेस्ट हाउस में क्या हुआ
2 जून 1995 को मायावती अपने विधायकों और सांसदों के साथ गेस्ट हाउस में मींटिंग कर रही थीं। उस समय मायावती गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 रहती थीं। ये मीटिंग मुख्य तौर पर सपा से समर्थन वापस लेने के लिए हो रही थी। इस बात का अंदाजा लगते ही मुलायम सिंह यादव ने अपने कार्यकर्ताओं को भेज दिया। उनसे कहा कि किसी भी तरह से बसपा विधायकों को अपने पाले में ले आओ।
‘चमार पागल हो गए है’ के लगे नारे
मायावती पर लिखी किताब ‘बहनजी’ में अजय बोस लिखते है कि, करीब 4 बजे के आसपास सपा के 200 से अधिक कार्यकर्त्ता गेस्ट हाउस में पहुंचे। साथ ही जातिसूचक नारे लगाना शुरू कर दिए। वहां पर मौजूद बसपा के विधायकों को लाठी- डंडे से पीटा गया। मायावती ने अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया था। उपद्रवी कह रहे थे की “घसीटकर बाहर निकालो’’।
पुलिस कार्रवाई के समय लखनऊ SSP सिगरेट फूंक रहे थे
अजय बोस अपनी किताब में लिखते हैं कि करीब 2 घंटे बाद पुलिस गेस्ट हाउस में पहुंचती है। मामले को शांत कराने की कोशिश करती है। उस वक्त लखनऊ के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस ओपी सिंह थे। वह कार्रवाई करने की बजाय सिगरेट पीते हुए नज़र आए।
वो आखिरी दिन था जब मायावती को साड़ी में देखा गया
2 जून से पहले मायावती को कई बार साड़ी में देखा जाता था, लेकिन उस घटना के बाद से मायावती ने साज- श्रृंगार के साथ-साथ साड़ी पहनना भी छोड़ दिया। लेकिन इस बात का जिक्र न तो कभी मायावती ने अपने भाषण में किया और न ही उन्होंने अपनी आत्मकथा 'मेरा संघर्षमय जीवन एवं बहुजन समाज मूवमेंट का सफ़रनामा' में लिखा है।
पहली दलित महिला बनी मुख्यमंत्री
3 जून 1995 को मायावती भाजपा गठबंधन से यूपी की मुख्यमंत्री बनी। उस दिन यूपी को पहली दलित महिला मुख्यमंत्री मिली। मायावती का कार्यकाल हमेशा दलितों और महिलाओं के लिए काम को लेकर जाना जाता है। गेस्ट हाउस कांड के बाद से सपा और बसपा कभी एक साथ एक मंच पर नजर नहीं आए। लेकिन 2019 के चुनाव में एक बार फिर सपा- बसपा ने गठबंधन किया, लेकिन ये साथ ज्यादा दिनों तक नहीं चला और गठबंधन फिर से टूट गया।
Published on:
23 Mar 2023 12:12 pm
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