
लखनऊ. राजधानी में सोमवार की सुबह से ही सियासी पारा गरम था। दो खेमों में बंटे सपाइयों की नजर मुलायम सिंह यादव पर ही टिकी थीं। लखनऊ में वह प्रेसवार्ता करने वाले थे। शिवपाल यादव समर्थक काफी उत्साहित थे। माना जा रहा था कि हर बार के उलट इस बार मुलायम सिंह यादव कोई बड़ा सियासी धमाका कर ही देंगे। आज वह अपने छोटे भाई शिवपाल के हित की बात करेंगे। हाल ही में शिवपाल यादव भी संकेत दे चुके थे कि समाजवादी पार्टी में नेताजी का अपमान हो रहा है, इसलिए जल्द ही कोई बड़ा फैसला लेंगे। मुलायम ने भी लोहिया ट्रस्ट की बैठक में रामगोपाल यादव पर कार्यवाही का चाबुक चलाकर संकेत दिए थे कि बस, अब बहुत हो चुका।
सोमवार को प्रेसवार्ता को पुराने समाजवादियों के साथ मुलायम आए, लेकिन उनके हनुमान कहे जाने वाले शिवपाल यादव नदारद थे। यह बात पत्रकारों के साथ राजनीतिक जानकारों को भी खटक रही थी। मुलायम ने सफाई भी दी कि जरूरी काम के चलते शिवपाल प्रेसवार्ता में नहीं आ सके। प्रेसवार्ता में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव से नाराजगी जताई तो उन्हें आशीर्वाद भी दिया, लेकिन शिवपाल यादव उनके साथ नहीं थे। शायद उन्हें पता चल गया था कि इस बार भी बेटे की तरफदारी करेंगे, उन्हें कुछ नहीं मिलेगा। समाजवादी पार्टी में मची कलह के दौरान ऐसा पहली बार नहीं है कि जब लगा हो बस अब मुलायम सिंह यादव नई पार्टी की घोषणा करने वाले हैं, लेकिन मुलायम ने हर बार शिवपाल यादव और उनके समर्थकों को मायूस ही किया है। आइए जानते हैं कि कब-कब लगा कि यादव परिवार में एक नई पार्टियां बन जाएंगी।
1- जब शिवपाल को मंत्रालय नहीं वापस किए गए
समाजवादी पार्टी में भीतरी विवाद चाहे जब से चल रहा हो, लेकिन सार्वजनिक तौर पर पारिवारिक विवाद की शुरुआत तब हुई जब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने मंत्री चाचा के महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए। शिवपाल यादव के घर समर्थकों की भीड़ जमा होने लगी। मामला गरमा गया था। अखिलेश ने नेता जी मुलायम सिंह यादव के हस्तक्षेप के बाद शिवपाल यादव को कुछ मंत्रालय वापस किए, लेकिन मुख्य पीडब्लूडी अपने पास ही रखा। इसके बाद ये चर्चा शुरू हो गई कि शिवपाल इस अपमान को नहीं सहेंगे और अलग पार्टी बना लेंगे। तब भी मुलायम सिंह यादव मौन रहे। साथ ही यह भी कहा कि मंत्रिमंडल का फैसला मुख्यमंत्री ही करेंगे।
2- दोबारा शिवपाल से छीन लिए सारे मंत्रलाय
23 अक्टूबर को जब समाजवादी पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव को सपा से बाहर का रास्ता दिखा दिया। तब अखिलेश यादव भी चुप नहीं बैठे। उन्होंने चाचा शिवपाल यादव और उनके तीन नजदीकी कैबिनेट मंत्रियों को मंत्रिमंडल से निकाल दिया। अब लगने लगा कि अगले फैसले में अखिलेश रामगोपाल के साथ मिलकर नई पार्टी का बनाने का ऐलान कर देंगे।
3- जब मुलायम ने अखिलेश को ही निकाल दिया पार्टी से
30 दिसंबर को फिर से मुलायम सिंह ने खुद अपने पुत्र अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल यादव पर पार्टी विरोधी गतिविधियां करने का आरोप लगते हुए छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गईं कि अखिलेश यादव नई पार्टी बनाने जा रहे हैं, जिसका चुनाव चिन्ह मोटर साइकिल होगा।
4- मुलायम को हटाकर खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बने अखिलेश
साल 2017 के पहले दिन अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटाकर खुद सपा प्रमुख बन गए। चर्चाएं होने लगीं कि अब मुलायम और शिवपाल के पास कोई चारा नहीं है। इसलिए अब नई पार्टी बनाकर अखिलेश का जवाब देंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
5- साइकिल चिन्ह मिला अखिलेश को
16 जनवरी 2017 को समाजवादी पार्टी का ये झगड़ा चुनाव चिन्ह के लिए चुनाव आयोग पहुंचा। आखिरकार समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने पुत्र अखिलेश यादव से हार गए। चुनाव आयोग ने साइकिल चुनाव चिन्ह अखिलेश यादव को देने की घोषणा कर दी। इसके बाद ये माना जा रहा था कि मुलायम सिंह यादव लोकदल के सुनील यादव के साथ लोकदल में जा रहे हैं। लेकिन इस बार भी मुलायम ने अप्रत्यक्ष रूप से अखिलेश यादव की ही समर्थन किया।
Published on:
25 Sept 2017 07:08 pm
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