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गणतंत्र दिवस पर विदेश में गूंजेगा ‘वंदे मातरम’, लखनऊ से पंकज प्रसून कैम्ब्रिज विवि में करेंगे भारत की ओर से प्रतिनिधित्व

अदब का शहर कहा जाने वाला लखनऊ अपनी नायाब तहजीब और खास नजाकत के लिए भी जाना जाता है। इस शहर के कई युवा फनकारों ने अपने हुनर से देश-विदेश में परचम लहराया है

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गणतंत्र दिवस पर विदेश में गूंजेगा 'वंदे मातरम', लखनऊ से पंकज प्रसून कैम्ब्रिज विवि में करेंगे भारत की ओर से प्रतिनिधित्व

गणतंत्र दिवस पर विदेश में गूंजेगा 'वंदे मातरम', लखनऊ से पंकज प्रसून कैम्ब्रिज विवि में करेंगे भारत की ओर से प्रतिनिधित्व

लखनऊ. अदब का शहर कहा जाने वाला लखनऊ अपनी नायाब तहजीब और खास नजाकत के लिए भी जाना जाता है। इस शहर के कई युवा फनकारों ने अपने हुनर से देश-विदेश में परचम लहराया है। ऐसे ही एक युवा कवि हैं पंकज प्रसून। पंकज प्रसून को गणतंत्र दिवस के मौके पर साउथ एशियन स्टडी डिपार्टमेंट और कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी इंडिया सोसायटी की ओर से आमंत्रण मिला है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणतंत्र दिवस पर वर्चुअल माध्यम से कवि सम्मेलन में शामिल होने वाले पंकज प्रसून भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करेंगे। वह इस दिन 'वंदे मातरम' नामक कविता का बखान करेंगे। तमाम लोगों के बीच पंकज प्रसून का चयन उनके व्यंग्य और विज्ञान मिश्रित कविताओं के आधार पर किया गया है। कार्यक्रम को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के तमाम सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म पर दिखाया जाएगा। भारतीय समय के अनुसार, कार्यक्रम का संचालन रात 10.30 बजे से होगा। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी इंडिया सोसायटी की स्थापना देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने की थी। कार्यक्रम का संचालन कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ऐशवर्ज कुमार करेंगे। इस कार्यक्रम में पोलैंड की कवियित्री एलिक्जा इजराइल से लडमिला केबोतेरेब और ऑक्सफोर्ड विश्व विद्यालय के प्रोफसर डॉ पद्मेश गुप्ता भाग लेंगे।

इस तरह शुरू हुआ 'शुक्ल' से 'प्रसून' का सफर

कैम्ब्रिज में हिंदी कविता से समां बांधने जा रहे पंकज प्रसून का जन्म रायबरेली के बैसवारे इलाके में हुआ था। पंकज के कवि बनने का सफर बहुत ही रोमांचक है। पंकज बताते हैं कि जब वह कक्षा नौ में थे तब उनके पिता कमलेश शुक्ल को उनके डायरी में कविताएं लिखनी की जानकारी हुई थी। जून 1997 में पंकज ने सहजौरा गांव में कवि सम्मेलन में भाग लिया था। पंकज की कविताएं उनके पिता को इतनी पसंद आईं कि उन्होंने उनका नाम 'प्रसून' कर दिया। प्रसून का अर्थ ही पुष्प से है। किसी सुगंध की तरह उनकी कविताओं की महक इस कदर लोगों के मन में बस गई कि सभी ने उन्हें पंकज प्रसून बुलाना शुरू कर दिया।

वंदे मातरम हिंदुओं की राम-राम में, अल्लाह के बंदे की अजान में

पत्रिका से बातचीत में पंकज प्रसून ने बताया कि उनकी कविता वंदे मातरम हिंदी के अलावा अंग्रेजी में भी होगी। उनकी कविता का इंग्लिश ट्रांसलेशन किया जाएगा। कविता कुछ इस तरह है- 'वंदे मातरम न ही हिंदु का न मुसलमान का, वंदे मातरम हिंदुओं की पहचान में-अल्लाह की अजान में।' यह कविता भारत की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाने के साथ-साथ भारतीय कल्चर को भी दर्शाएगी।

कई रिकॉर्ड हैं नाम पर

पंकज प्रसून ने 33 साल की उम्र में ही उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से दो बार पुरस्कार प्राप्त किए। उनके पहले व्यंग्य संग्रह 'जनहित में जारी' के लिए उन्हें वर्ष 2014 का 'रांगेय राघव पुरस्कार' मिला था। वर्ष 2018 में उनकी किताब परमाणु की छांव के लिए उन्हें 'केएन भाल अवार्ड' तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक के हाथों प्राप्त हुआ था। उनकी अब तक सात किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। पंकज प्रसून का नाम एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड एवं इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज है। उन्होंने परमाणु ऊर्जा पर कविता की पहली किताब लिखी थी। प्रसून को व्यंग्यविभूषण, केपी सक्सेना व्यंग्य सम्मान, साहित्य गौरव अवॉर्ड, आउटस्टैंडिंग यूथ अवार्ड सहित अब तक कुल 40 एवार्ड प्राप्त हुआ है।

पंकज प्रसून को लखनऊ विश्वविद्यालय के100 साल पूरे होने पर पिछले दिनों विशिष्ट 'शताब्दी वर्ष सम्मान 'से नवाजा गया था। लखनऊ विश्वविद्यालय ने उन्हें उन 50 पूर्व छात्रों में रखा था जो देश विदेश में विश्वविद्यालय का नाम रोशन कर रहे हैं। पंकज प्रसून ने व्यंग के साथ-साथ विज्ञान कविताओं की भी अलख जगा रखी है। उन्होंने देश का सबसे पहला विज्ञान कवि सम्मेलन लखनऊ में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान एवं निस्केयर दिल्ली के सहयोग से आयोजित कराया था। बता दें कि एक प्रख्यात कवि होने के साथ-साथ पंकज प्रसून केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान में तकनीकी अधिकारी भी हैं और दवाओं पर अनुसंधान करते हैं।

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