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पत्रिका अभियान – किसानों को बाजार उपलब्ध कराना और मूल्य देना बनी बड़ी चुनौती

किसान इस बात की मांग कर रहे हैं कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य फसल की लागत मूल्य का कम से कम डेढ़ गुना तय किया जाए।

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लखनऊ

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Laxmi Narayan

Feb 15, 2018

patrika abhiyan

लखनऊ. किसानों की आमदनी वर्ष 2022 तक दोगुनी करने के केंद्र और प्रदेश सरकार के प्रयासों के बीच सबसे बड़ी चुनौती है किसानों को उनकी फसलों का वाजिब मूल्य दिलाना और उनकी उपज को बाजार तक पहुँचाना। एक ओर जहां किसान लगातार इस बात की मांग कर रहे हैं कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य फसल की लागत मूल्य का कम से कम डेढ़ गुना तय किया जाए। वहीं दूसरी ओर सरकार की खरीद नीति पर लगातार सवाल उठते रहे हैं क्योंकि अभी भी वर्तमान खरीद प्रणाली का फायदा बिचौलिए जमकर उठा रहे हैं।

उर्द खरीद में जमकर हुई धांधली

आलू, प्याज और टमाटर व दलहन जैसी फसलें उगाने के बाद भी किसान किस तरह बदहाली की चपेट में है, उसका अंदाजा लगातार आलू, गन्ना और दलहनी फसलों को उगाने वाले किसानों के आंदोलनों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। पिछले दिनों आलू किसानों ने सड़कों पर आलू फेककर सरकार के प्रति अपने गुस्से का इजहार किया तो अभी बुंदेलखंड में दलहनी फसलों की उपज खरीद में किसानों के साथ हुए भेदभाव का मामला सामने आया। दरअसल बुंदेलखंड में उर्द की पैदावार बड़े पैमाने पर होती है। किसानों ने फसल कटाई के तत्काल बाद औने-पौने दाम में बिचौलियों और व्यापारियों को बेच दिया। बाद में सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की जिसके बाद शेष किसानों ने उर्द बेचने के लिए मंडियों में लाइन लगाई लेकिन यहाँ बिचौलिए व्यवस्था पर हावी रहे और किसानों को आंदोलन करना पड़ा। यह उदाहरण तो एक बानगी भर है। हर फसल की उपज के बाद किसानों को इसकी तरह की समस्या से जूझना पड़ता है।

बाजार की व्यवस्था करना है चुनौती

फसलों का वाजिब मूल्य दिलाने और फ़ूड प्रोसेसिंग केंद्रों के माध्यम से किसानों की आमदनी बढ़ाने के कई दावे सरकारों ने किये लेकिन किसानों को अभी तक ऐसी किसी योजना का लाभ मिलता दिख नहीं रहा है। बुंदेलखंड किसान पंचायत के अध्यक्ष गौरी शंकर विदुआ कहते हैं कि किसानों की बेहतरी के तमाम दावे सिर्फ कागजी दावे बनकर रह गए हैं।किसानों के लिए की जाने वाली घोषणाएं बिचौलियों और सरकारी अफसरों के ही फायदे का कारण बनती है। किसान बेहतर उपज के बाद भी परेशान होता और फसल ख़राब होने के बाद भी। सामाजिक कार्यकर्ता और जल जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक डॉक्टर संजय सिंह कहते हैं कि किसानों की आमदनी तब तक नहीं बढ़ सकती जब तक कि फसलों का वाजिब मूल्य और कृषि उत्पादों को बाजार तक ले जाने की पारदर्शी व्यवस्था न बन जाए।