
Gulab Kothari
लखनऊ। Patrika KeyNote 2018 में राजस्थान पत्रिका समूह के संपादक गुलाब कोठारी ने कहा कि सच्चाई के मार्ग पर चलना बहुत कठिन होता है। यह तलवार की धार पर चलने जैसे होता है। पत्रिका एक सच है। यहां तक पहुंचने के लिए कुर्बानी देते आये हैं। पेड न्यूज में मीडिया घराने के नाम आते हैं। पत्रिका का नाम इसमें नहीं आता है। सिद्धांतों पर चलने के लिए आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकारों की आंखों में कांटे की तरह चुभ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट तक लड़ना पड़ रहा है।
टीवी ने जनता को मीडिया से दूर कर दिया
इसका हमें फिक्र नहीं है। जनता के सहयोग से यह लड़ाई लड़े और जीत कर आये। राजस्थान के बाद एमपी में भी काला कानून आया। पत्रिका ने मुहिम शुरू की तो सरकार को वापस लौटना पड़ा। जनता के सहयोग से यह लड़ाई जीते। हम जीत गये हैं, लेकिन यह स्वस्थ्य परम्परा नहीं है। मीडिया जगत में विश्वास जीतने के लिए सही को सही कहना है गलत को गलत। सरकारों में अच्छा काम होता है, गलत काम भी। अच्छे काम की तरीफ के साथ गलत के खिलाफ होना चाहिए। सत्ता में अहंकार होता है। वहां पर ठेस तुरंत पहुंचती है। यह ठेस नये समीकरण पैदा कर देती है। जिसके चलते जो संबंध स्थापित होना चाहिए वह नहीं हो पाते। मुझे याद है कि पहले के सीएम रात में 10 बजे के बाद संपादकों से प्रदेश की स्थिति पर चर्चा करते थे। यह सम्मान था। पत्रकारों को जनता का प्रतिनिधि माना जाता था। वह सलाहकार की भूमिका में होते थे। अब ऐसा नहीं है। पत्रकारों का वह सम्मान नहीं है, जो पहले था। मीडिया को उस प्रतिनिधि के रुप में नहीं देख पा रहे हैं, जिस रुप में देखना चाहिए। संविधान में तीन स्तंभ हैं। मीडिया खुद चौथा स्तंभ बन गया। मीडिया तीन स्तंभ व जनता के बीच की खड़ी है। मीडिया चौथा स्तंभ बन गया। मतलब सरकार का बन गया। अब जनता को सुनने वाला नहीं है। जनता को लगता है कि मीडिया मेरे साथ नहीं है। टीवी ने जनता को मीडिया से दूर कर दिया।
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सारी दुनिया सो जाती है, तब भी पत्रिका है जागती
विदेश में बैठे व्यक्ति को क्या पता कि लखनऊ में क्या समस्या है। पहले लोग शाम को अखबार के दफ्तर में जाकर शिकायत करते थे। अब ऐसा नहीं है। लोकतंत्र के लिए मीडिया पर भरोसा करते थे। वह कड़ी अब टूट गयी है। जनता को तय करना होगा जो मेरे लिए सेतु नहीं हैं। उसे हाथ नहीं लगाना है। जनता को महसूस करना होगा। मध्यप्रदेश में एक कानून बनाया गया कि विधायक सवाल नहीं पूछ सकते हैं। विधेयक पास कर दिया गया। यह बात किसी को समझ नहीं आयी। पत्रिका ने जब इस मुद्दे को उठाया तो सबको अपनी गलती का अहसास हुआ। पत्रिका को भारतीय संस्कृति में बहुत विश्वास है। नयी पीढ़ी तकनीक में आगे रहे। उसके भीतर का जो हिन्दुस्तानी है, आत्मा संस्कारी है, वह संस्कारी बने। यदि उसने धरती से नाता तोड़ लिया तो बड़ा नुकसान हो जायेगा। इसे विकास नहीं देश का अहित माना जायेगा। सारी दुनिया सो जाती है, तब भी पत्रिका जागती है। युवा पीढ़ी आंख बंद कर तकनीक के पीछे भाग रही है, लेकिन अपनी संस्कृति को न छोड़ें। मां को मां मानना होगा पिता को पिता। हमारे कई कॉलम ऐसे हैं, जो युवाओं को संस्कारित बनाते हैं। माता पिता भी बच्चों को नहीं देख रहे हैं। उन्हें पता नहीं चलता है कि बच्चे कहा जा रहे हैं? क्या कर रहे हैं? धर्म गुरुओं ने धर्म का प्रचार छोड़ दिया। धर्म गुरुओं की क्या स्थिति है। यह सामने आने लगी है। आप विश्वास रखें कि पत्रिका ने कल भी नैतिकता, विश्वसनीयता व सिद्धांतों पर चला है और आगे भी चलेगा।
Updated on:
07 Apr 2018 12:26 pm
Published on:
07 Apr 2018 12:16 pm
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