
लखनऊ. हिंदी के जाने माने वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह का सोमवार को नई दिल्ली में निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और एम्स में भर्ती थे। जहां उन्होंने सोमवार रात पौने नौ बजे अंतिम सांस ली। वह 85 साल के थे। केदारनाथ सिंह का जन्म 1934 में यूपी के बलिया जिले के चकिया गांव में हुआ था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1956 में हिंदी में एमए और 1964 में पीएचडी की थी। गोरखपुर में उन्होंने कुछ दिन हिंदी पढ़ाई और जवाहर लाल विश्वविद्यालय से हिंदी भाषा विभाग के अध्यक्ष रहे और यहीं से रिटायर हुए।
जाने माने वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह का निधन हो गया। उनकी कविता के लोग कायल थे, उनके निधन से लेखकों में शोक की लहर छा गई। उनके ही एक गीत के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
झरने लगे नीम के पत्ते बढऩे लगी उदासी मन की,
उडऩे लगी बुझे खेतों से
झुर-झुर सरसों की रंगीनी,
धूसर धूप हुई मन पर ज्यों —
सुधियों की चादर अनबीनी,
दिन के इस सुनसान पहर में रुक-सी गई प्रगति जीवन की ।
साँस रोक कर खड़े हो गए
लुटे-लुटे-से शीशम उन्मन,
चिलबिल की नंगी बाँहों में —
भरने लगा एक खोयापन,
बड़ी हो गई कटु कानों को 'चुर-मुर' ध्वनि बाँसों के वन की ।
थक कर ठहर गई दुपहरिया,
रुक कर सहम गई चौबाई,
आँखों के इस वीराने में —
और चमकने लगी रुखाई,
प्रान, आ गए दर्दीले दिन, बीत गईं रातें ठिठुरन की ।
केदारनाथ सिंह के प्रमुख लेख और कविताओं में मेरे समय के शब्द, कल्पना और छायावाद, हिंदी कविता बिंब विधान और कब्रिस्तान में पंचायत शामिल हैं।
उनके कविता संग्रह में- अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, टॉलस्टॉय और साइकिल, अकाल में सारस, यहां से देखो, बाघ, उत्तर कबीर और अन्य कविताएं, सृष्टि पर पहरा शामिल हैं।
ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएं, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका) और शब्द (अनियतकालिक पत्रिका) का उन्होंने संपादन भी किया।
Published on:
19 Mar 2018 10:27 pm
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