लखनऊ

Sangol History: प्रयागराज से नई दिल्ली के नई संसद में पहुंचेगा सैंगोल, जानिए क्या है सैंगोल

Sangol History: 28 मई को नए संसद भवन का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उद्घाटन करने जा रहे हैं। इसमें सैंगोल लोकसभा अध्यक्ष के बगल में रखने की चर्चा चल रही है। क्या है सैंगोल और सैंगोल का इतिहास, आइए विस्तार से जानने का प्रयास करते हैं।  

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May 25, 2023
सैंगोल

नई संसद भवन का उद्घाटन पहले ही कई सियासी कारणों से चर्चा में हैं। कई विपक्षी दलों ने एक दूसरे के सुर में सुर मिलाते हुए इसके उद्घाटन कार्यक्रम के बहिष्कार की घोषणा की है, तो कई बार इसके बजट, बनावट, जरुरत आदि कारणों पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं।

इन्ही चर्चाओं के बीच सैंगोल शब्द चर्चा में आया है, जिसे नए संसद में स्पीकर के बगल में रखा जाना है। गृह मंत्री अमित शाह के अनुसार यह सत्ता परिवर्तन का प्रतीक है, जिसे पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरु ने अंग्रेजों से लिया था। अमित शाह इसी बहाने कांग्र्रेस पर आरोप लगाते हैं कि आजादी के पास सैंगोल को भूला दिया गया, बाद में 24 साल बाद एक तमिल विद्वान ने इसके बारे में बताया जो कि नई संसद के उद्घाटन पर मौजूद रहेंगे।

क्या है सैंगोल
सैंगोल शब्द संस्कृत भाषा के शंकु से लिया गया है। इसका मतलब शंख होता है। अगर हम तमिल भाषा की बात करें तो सैंगोल तमिल भाषा के शब्द सेम्मई से लिया गया है। इसका अर्थ है कि धर्म, सच्चाई और निष्ठा। सैंगोल एक आकृति है जिसके सबसे ऊपर नंदी है और बगल में कलाकृति बनी है। यह पांच फीट लंबा है और इसे तमिलनाडू के एक प्रमुख धार्मिक मठ के पुरोहितों का आर्शीवाद प्राप्त है। यह सोने और चांदी का बना है और सबसे पहले मौर्य साम्राज्य 322-185 ईसा पूर्व इसका उपयोग सत्ता परिवर्तन में किया गया था।

सैंगोल का चोल साम्राज्य से संबंध
चोल साम्राज्य के दौरान राजाओं के राज्याभिषेक में प्रयोग किया जाता था। यह एक भाले या ध्वज दंड के रुप में कार्य करता था जिसे न्याय दंड, धर्मदंड या राजदंड भी कहा जाता था, जिसमें चोल साम्राज्य के बेहतरीन वास्तु कला के अनुसार ही नक्काशी है। सैंगोल को एक राजा दूसरे व्यक्ति को जब राजगद्दी सौंपता तो सैंगोल को भी देता। यह सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है। यह संप्रभुता का भी प्रतीक है जिसे चोल साम्राज्य के दौरान प्रयोग किया जाता था। उल्लेखनीय है कि दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वास्तुकला में चोल साम्राज्य बेजोड़ रहा है।

प्रयागराज में रखा है सैंगोल
ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक तमिल परंपरा में राज्य के महायाजक अर्थात राजगुरु नए राजा के सत्ता ग्रहण करने पर सैंगोल देता है। यह थिरुवदुथुरै अधीनम मठ का होता है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए 14 अगस्त 1947 को सैंगोल को थिरुवदुथुरै मठ के राजगुरु ने इसे लार्ड माउंटबैटन को सौंपा था। जिसे बाकायदा पूजा-पाठ के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को सौंप दिया गया।

आजादी के इस समारोह के बाद सैंगोल को प्रयागराज के संग्रहालय में रखवा दिया गया। अब जब नई संसद में इसे लगाने की चर्चा चली है तब देश के अनेक संग्रहालयों में इसकी खोज की गई तो अंत में यह प्रयागराज संग्रहालय में मिला है।

Updated on:
25 May 2023 12:34 pm
Published on:
25 May 2023 12:32 pm
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