कभी कपाउंडर था संजीव
संजीव 90 के दशक में मुजफ्फरनगर में एक दवाखाना संचालक के यहां कंपाउंडर की नौकरी करता था। ये दवाखाना चलाने वाला खुद झोलाछाप डॉक्टर था। पैसा कमाने की ललक में उसने एक दिन अपने मालिक को ही अगवा कर लिया और बड़ी फिरौती की मांग की। इसके बाद 1992 में उसने कोलकाता के एक कारोबारी के बेटे का अपहरण कर 2 करोड़ की फिरौती मांगी। जिसने रातोंरात उसे अपराध की दुनिया में मशहूर कर दिया। इसके बाद फरवरी 1997 को उसका नाम भाजपा नेता ब्रम्हदत्त द्विवेदी की हत्या में सामने आया। जिसके बाद उसका खौफ पूरे पश्चिम यूपी में हो गया।
संजीव 90 के दशक में मुजफ्फरनगर में एक दवाखाना संचालक के यहां कंपाउंडर की नौकरी करता था। ये दवाखाना चलाने वाला खुद झोलाछाप डॉक्टर था। पैसा कमाने की ललक में उसने एक दिन अपने मालिक को ही अगवा कर लिया और बड़ी फिरौती की मांग की। इसके बाद 1992 में उसने कोलकाता के एक कारोबारी के बेटे का अपहरण कर 2 करोड़ की फिरौती मांगी। जिसने रातोंरात उसे अपराध की दुनिया में मशहूर कर दिया। इसके बाद फरवरी 1997 को उसका नाम भाजपा नेता ब्रम्हदत्त द्विवेदी की हत्या में सामने आया। जिसके बाद उसका खौफ पूरे पश्चिम यूपी में हो गया।
संजीव जीवा का नाम इसके बाद मुन्ना बजरंगी गैंग के साथ जुड़ा और फिर वह मुख्तार अंसारी का करीबी हो गया। संजीव जीवा का नाम कृष्णानंद राय हत्याकांड में भी आया। संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा पर दो दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज थे। इनमें से 17 मामलों में संजीव बरी हो चुका था।