
31 मार्च, 1997। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ। स्प्रिंगडैल स्कूल के पास की सड़क। सुबह साढ़े नौ बजे का वक्त। सड़क पर पूरी चहल-पहल थी। तभी गोलियों की आवाज ऐसे आनी शुरू हुई, जैसे दीवाली पर किसी ने आतिशबाजी की हो। सारे लोग इधर-उधर भागे। गोलियां बरसाने वाले इत्मिनान से बरसाते जा रहे थे। एक आदमी के शरीर में 126 गोलियां उतार दीं। फिर आराम से चले गए।
बाद में पुलिस के अफसर और सिपाही घंटों खोखा बीनते रहे। इस बीच पूरे उत्तर प्रदेश में जंगल की आग की तरह खबर फैल गई कि वीरेंद्र शाही की हत्या हो गई है। लेकिन, किसने की, यह किसी को पता नहीं था। जिन्होंने देखा था, वे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे। पुलिस के पास कोई सुराग नहीं था। तभी शाही के अंतिम संस्कार में एक सब-इंस्पेक्टर को किसी ने सुराग दिया। सुराग देने वाला शाही का ही कोई रिश्तेदार था। वह उस सब-इंस्पेक्टर को भी जानता था। उसने बताया कि हत्या की पीछे बिहार का गैंग है और वजह रेलवे के ठेकों का झगड़ा है। छह महीने से कोई श्रीप्रकाश शुक्ला इसे धमका रहा था और बार-बार कहता था कि होली से पहले मार डालेंगे।
यूपी में आईपीएस अफसर रहे राजेश पाण्डेय ने अपनी किताब ‘वर्चस्व’ में बताया है कि यही वह दिन था जब यूपी पुलिस ने पहली बार श्रीप्रकाश शुक्ला का नाम सुना था। पाण्डेय ने उस सब-इंस्पेक्टर से जानकारी देने वाले के बारे में जानकारी मांगी तो उन्होंने मना कर दिया। उनका कहना था- बताने वाले को वह जिंदा नहीं छोड़ेगा।
इसके बाद यूपी पुलिस श्रीप्रकाश की कुंडली जुटाने में लगी। गोरखपुर पुलिस से बहुत ज्यादा पता नहीं चल पाया। सिवाय इसके कि मामखोर गांव का 22-23 साल का लड़का है, जिसे हथियारों का बड़ा शौक है और जो ज़्यादातर बिहार में रहता है।
लेकिन, इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि यह खौफनाक लड़का पुलिस की हिट लिस्ट में आ गया। तब कल्याण सिंह यूपी के सीएम हुआ करते थे। एक दिन उन्होंने अजय राज शर्मा को बुलाया। शर्मा उस समय एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) हुआ करते थे। उनका लखनऊ से तबादला हो चुका था। वह सीतापुर में ट्रेनिंग कॉलेज में तैनात थे।
शर्मा, जो बाद में दिल्ली पुलिस के कमिश्नर बने, ने अपनी किताब BITING THE BULLET: Memoirs of a Police Officer में लिखा है कि उन्हें सीएम (कल्याण सिंह) ने लखनऊ बुलाया। सीएम बेचैन दिख रहे थे। किसी ने उनकी (सीएम) सुपारी ली थी। सीएम को उनके किसी बहुत करीबी व्यक्ति ने यह बात बताई थी। सीएम ने शर्मा को आदेश दिया कि एक यूनिट तैयार करके दीजिए जो श्रीप्रकाश और उसके गैंग का खात्मा करे।
पूरे देश में किसी एक अपराधी के लिए पुलिस की एक यूनिट बनने का यह पहला मामला था। इसके लिए छह महीने का समय दिया गया था। इसका जो सरकारी आदेश आया था उसमें हथियारों की तस्करी का भी जिक्र था, लेकिन पूरी एसटीएफ़ वास्तव में श्रीप्रकाश शुक्ला के आतंक को खत्म करने के लिए बनी थी।
उन्हीं दिनों एक और बात हुई। राजीव रत्न शाह उस समय उत्तर प्रदेश के प्रिन्सिपल सेक्रेटरी थे। वह अपनी बेटी के पास अमेरिका गए हुए थे। इसी बीच लखनऊ में एक बड़ा अपहरण और मर्डर हो गया। रस्तोगी परिवार का। यह परिवार उत्तर प्रदेश का रसूखदार और पैसे वाला परिवार था।
उत्तर प्रदेश में दवा की सप्लाई करने वाली सबसे बड़ी कंपनी के मालिक थे केके रस्तोगी। एक सुबह वह अपने बेटे के साथ टहलने के लिए बॉटैनिकल गार्डन जा रहे थे। रास्ते में श्रीप्रकाश ने उन्हें निशाना बनाया। उनकी गाड़ी में टक्कर मार कर रोकने की कोशिश की। उन्होंने विरोध किया तो गोली मार दी।
केके रस्तोगी मर गए। उनके बेटे को अगवा कर लिया गया। फिर कानपुर में उनके ससुर को फोन किया, जो शहर के बड़े जेवर कारोबारी थे। उन्हें कहा- लड़का मेरे पास है, कहीं भटकना मत। उधर रस्तोगी और राजीव रत्न शाह के पारिवारिक संबंध थे। राजीव शाह को अमेरिका में खबर दी गई। वह तुरंत न्यूयॉर्क पुलिस विभाग (एनवाईपीडी) के मुख्यालय गए। एनवाईपीडी ने अलग यूनिट बना कर कैसे माफिया को खत्म किया, इस बारे में वहां लिखे गए नोट का अध्ययन किया। उन्होंने कागज पर 15-20 पॉइंट्स लिख कर अपना नोट बनाया और वहां से लौट गए। उन्होंने अमेरिका से भी तय समय से पहले वापसी कर लिया। उस आइडिया का इस्तेमाल यहां के एसटीएफ में किया गया।
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Updated on:
09 Dec 2025 12:38 pm
Published on:
09 Dec 2025 10:22 am
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