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‘कुंडली’ निकाली, फिर सिर में उतार दी थीं चार गोलियां; शूटर को पैसे देकर आईसीयू में भर्ती हो गए थे विधायक

डिश केबल अब बीते जमाने की बात हो गया है, लेकिन एक दौर था जब टीवी के जरिए मनोरंजन के लिए लोग इसी पर निर्भर थे। यह दौर 1990 का था। घर-घर में इसके ग्राहक हुआ करते थे, लेकिन इसका कारोबार बड़ा गंदा था। इसमें माफिया घुसे पड़े थे। गैंगवार और मर्डर इस कारोबार का हिस्सा बन गया था।

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लखनऊ

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Vijay Kumar Jha

Dec 22, 2025

Anand Pandey, shriprakash Shukla

1990 के दशक में केबल कारोबार में अपराधियों का बोलबाला था। यूपी में श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे दुर्दांत अपराधी का नाम भी इस व्यवसाय से जुड़ा था। पूर्व आईपीएस राजेश पाण्डेय ने अपनी किताब ‘वर्चस्व’ में इसका काला सच बयान किया है।

1994 में सत्यव्रत राय और आनंद पाण्डेय ने मिलकर डिश का काम शुरू किया था। दोनों ही अपराध की दुनिया के खिलाड़ी थे। सत्यव्रत गोरखपुर का था। 1993 में ये दोनों खूंखार डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला से भी मिल चुके थे। तब तक श्रीप्रकाश ने कुछ मर्डर के दम पर अपना खौफ पैदा कर लिया था। सत्यव्रत और आनंद को समझ आ गया कि श्रीप्रकाश से करीबी उनके धंधे में काम आएगी।

जब आनंद पाण्डेय और श्रीप्रकाश के बीच हुई अनबन

इन दोनों का काम अच्छा चल निकला था। साथ ही, विरोधियों से अदावत भी बढ़ गई थी। इसी अदावत में एक दिन चाय की दुकान पर आनंद पाण्डेय ने दूसरे केबल कारोबारी राजा गुप्ता को गोली मार दी। लेकिन, वार खाली गया और पाण्डेय जेल भी पहुंच गया। इधर, केबल कारोबारियों की अदावत और बढ़ती रही। इस चक्कर में दो और कत्ल हो गए। मरने वालों में से एक श्रीप्रकाश का दोस्त था। इसलिए आनंद पाण्डेय और श्रीप्रकाश के बीच भी अनबन हो गई। लेकिन कुछ केबल ठेकेदारों ने बीच में पड़ कर इस दरार को बढ़ने से रोक दिया।

अब दोनों ने तय किया कि केबल कारोबार का शहंशाह बनने के लिए अच्छे हथियार चाहिए। इस बीच दोनों ने मिल कर कई हत्याएं कीं। वे जिसे मारते, उसका हथियार भी कब्जा कर लेते। इस तरह वह जखीरा बढ़ाने लगे। श्रीप्रकाश ने आनंद के एक करीबी को मार कर उसका भी हथियार कब्जे में ले लिया। इसके बाद आनंद हिल गया। उसके मन में डर और नफरत की दीवार खड़ी हो गई।

बिहार से कत्ल का ऑफर: इनाम में एके-47 और कैश

आनंद ने अपने पुराने यार सत्यव्रत से दिल की बात कही और श्रीप्रकाश की 'दुकान बंद' करवाने का अपना इरादा भी जाहिर कर दिया। सत्यव्रत आज भी मन से आनंद के साथ था। उसने बिहार के किसी विधायक की एक पेशकश के बारे में बताया। काम कत्ल का था। बदले में पैसे और एके 47 मिलना था।

आनंद ने कहा- हमें इन दोनों ही चीजों की सख्त जरूरत है। विधायक से बात हुई। उनके बुलावे पर आनंद, राजन तिवारी और बबलू तिवारी पटना रवाना हुए। लेकिन, आनंद को रास्ते में एक पुराना हिसाब बराबर करने का ख्याल आया। बाकी दो के मना करने पर भी वह नहीं माना और बनारस में किसी सेंगर के घर पहुंच गया। सेंगर ने उसके किसी दोस्त का पैसा ले लिया था, जिसके मरने के बाद भी पैसा लौटा नहीं रहा था। आनंद ने उससे पैसा मांगा। सेंगर ने माना किया तो उसने पिस्टल निकाल कर मेज पर रख दिया। पिस्टल देख कर सेंगर के बीवी-बच्चे सहम गए। उसने एक महीने की मोहलत मांगी। आनंद ने अपनी नाइन एमएम की पिस्टल उठाई और सेंगर की खोपड़ी में खाली कर दी। तीनों कमरे से निकल गए और बाहर से घर का दरवाजा बंद कर पटना के लिए रवाना हो गए।

पिस्टल से सिर में उतार दीं 4 गोलियां

पटना पहुंचने पर विधायक के गुर्गों ने उन्हें ठिकाने तक पहुंचाया। देर रात ठिकाने पर विधायक पहुंचे और सारी बात तय हुई। पांच लाख में मर्डर का सौदा हुआ। विधायक पूरे पैसे एडवांस लेकर पहुंचे थे। आनंद ने कहा- पैसे काम होने के बाद।

अगली सुबह से तीनों काम पर लग गए। तीन दिन तक तीनों ने रेकी (जिसे वे कुंडली निकालना कहते थे) की। इसके बाद रेलवे फाटक के पास मोड़ पर गाड़ी लगा कर तीनों खड़े हो गए। एक घंटा बाद एक टाटा सूमो आई। उसमें ड्राइवर के बगल में उनका 'टार्गेट' बैठा था। मोड़ पर गाड़ी की रफ्तार थोड़ी कम हुई। इसी बीच पॉइंट फोर फाइव की पिस्टल से आनंद ने चार गोलियां उसके सिर में उतार दीं।


ड्राइवर गाड़ी छोड़ कर भागा। राजन तिवारी ने चार-पांच गोलियां दागीं और पीछे बैठे लोगों को ढेर कर दिया। आनंद ने टाटा सूमो का दरवाजा खोला और असलहे खोजने लगा। उसने एक एके 47, दो देसी पिस्टल और एक रिवॉल्वर निकाल ली। तीन राइफलें राजन तिवारी ने भी निकाल लीं। ये हथियार अपनी गाड़ी में रख कर वे पटना की तरफ रवाना हो गए।

पुलिस को गुमराह करने के लिए की ये चालाकी

पांच-सात किलोमीटर चलने के बाद आनंद ने अपना खुराफाती दिमाग चलाया और पुलिस को गुमराह करने के मकसद से सुनसान सड़क पर एक-दो किलोमीटर की दूरी पर 315 बोर की राइफलें फिकवा दीं। वे आराम से कंकड़बाग पहुंच कर सुस्ताने लगे। शाम को विधायक पैसे लेकर पहुंच गए। तय रकम से एक लाख रुपये ज्यादा। कुल छह लाख रुपये। विधायक ने कहा- कोई और सेवा हो तो, बताइए। मैं अपने लिए हॉस्पिटल में भर्ती होने का सारा इंतजाम करवा कर आया हूं, क्योंकि कुछ ही घंटों में एफ़आईआर होगी और उसमें मेरा भी नाम होगा।

शूटर्स ने लखनऊ जाने के लिए गाड़ी की मांग की। विधायक तीन गाड़ियों के काफिले के साथ गए थे। एक गाड़ी उनके लिए छोड़ दी और दो गाड़ियों के साथ खुद अस्पताल पहुंच कर आईसीयू में बेड पर लेट गए। उधर, आनंद पटना से वापस आकर और ‘टार्गेट’ निपटाने व हथियारों का जखीरा बढ़ाने में लग गया। देखते ही देखते वह श्रीप्रकाश से अलग हो गया और अपना गैंग चलाने लगा। लेकिन,वह ज्यादा दिन बच नहीं सका।

14 दिसम्बर, 1997 को वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया। रात के अंधेरे में उसने भागने की कोशिश की। पुलिस ने गोली चलाई और अंधेरे में ही वह ढेर हो गया।

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