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निकाय चुनाव: ओबीसी आरक्षण मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची यूपी सरकार, हाईकोर्ट ने किया था रद्द

उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया था।

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लखनऊ

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Anand Shukla

Dec 29, 2022

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यूपी सरकार गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुज्ञा याचिका यानी स्पेशल लीव पिटीशन दायर की है। याचिका में कहा गया है कि पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने की मंजूरी दी जाए।

दरअसल मंगलवार को हाईकोर्ट ने सरकार को ओबीसी आरक्षण की सीटों को सामान्य घोषित करते हुए चुनाव कराने का आदेश दिया है। ऐसे में राज्य निर्वाचन आयोग कहीं चुनाव की अधिसूचना जारी कर देता है तो सरकार के के सामने बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। ऐसे में रैपिड टेस्ट मामले में हुई गलती से सबक लेते हुए सरकार एसएलपी सुप्रीम कोर्ट में दायर कर दी है।

ओबीसी आरक्षण पर बोले ब्रजेश पाठक

गुरुवार सुबह डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि नगर निकाय चुनाव को लेकर यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट में ही एसएलपी दायर करेगी। उन्होंने कहा कि OBC वर्ग को आरक्षण दिलाने के लिए हमें जो भी करना होगा, हम करेंगे। उसके बिना राज्य में नगर निकाय चुनाव संभव नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने निकाय चुनाव के संबंध में ओबीसी आरक्षण के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दिया है। यूपी सरकार ने पांच सदस्यीय आयोग का गठन किया गया है जिसकी अध्यक्षता रिटायर जज राम अवतार सिंह करेंगे।

यह भी पढ़ें: निकाय चुनाव: मायावती ने ओबीसी आरक्षण बीजेपी, सपा और कांग्रेस पर निशाना साधा
इस आयोग का कार्यकाल छह महीने का होगा। हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज राम अवतार सिंह को उत्तर प्रदेश राज्य स्थानीय निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया जाता है। पूर्व आईएएस चौब सिंह वर्मा, पूर्व आईएएस महेंद्र कुमार, पूर्व अपर विधि परामर्शी संतोष कुमार विश्वकर्मा और पूर्व विधि परामर्शी बृजेश कुमार सोनी को सदस्य नियुक्त किया गया है।

पिछड़ो के अधिकारों से नहीं होगा समझौता

मंगलवार को जब हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण वाली सीटों को रद्द कर दिया था तब डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि “नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा, लेकिन पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा।”

अखिलेश यादव ने बीजेपी पर साधा निशाना

वहीं सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग का आरक्षण रद्द होने के बाद से सपा पर हमलावर है। अखिलेश यादव ने गुरुवार को प्रेस कान्फ्रेंस में भाजपा हटाओ आरक्षण बचाओ का अभियान चलाने की बात कही। उ्नहोंने कहा कि भाजपा का पिछड़े के प्रति व्यवहार हमेशा सौतेला रहा है। आज पिछड़ों का आरक्षण छीना है कल दलितों का छीना जाएगा। भाजपा षड्यंत्र करके पिछड़े दलितों को अधिकार नही दे रही है। ओबीसी को गुलाम बनाने का साजिश चल रही है। वो ओबीसी दलितों की आने वाली नस्लों को हजारों साल पीछे धकेलना चाहती है।

मायावती ने ओबीसी आरक्षण पर निशाना साधा

वहीं बसपा सुप्रीमों ने गुरुवार को लगातार तीन ट्वीट करके बीजेपी कांग्रेस और सपा पर निशाना साधा। उन्होंने पहले ट्वीट में लिखा कि कांग्रेस ने केन्द्र में अपनी सरकार के चलते पिछड़ों के आरक्षण सम्बन्धी मण्डल कमीशन की रिपोर्ट को लागू नहीं होने दिया। साथ ही SC, ST आरक्षण को भी निष्प्रभावी बना दिया। और अब, बीजेपी भी, इस मामले में कांग्रेस के पदचिन्हों पर ही चल रही है। अति चिन्तनीय।

दूसरे ट्वीट में लिखा कि “सपा सरकार ने भी खासकर अति पिछड़ों को पूरा हक नहीं दिया। SC, ST का पदोन्नति में आरक्षण खत्म कर दिया। इससे सम्बन्धित बिल को सपा ने संसद में फाड़ दिया तथा इसेे पास भी नहीं होने दिया। इन सभी वर्गों के लोग सावधान रहें।”


तीसरे ट्वीट में लिखा कि जबकि बी.एस.पी. सरकार में SC, ST साथ-साथ अति पिछड़ों व पिछड़ों को भी आरक्षण का पूरा हक दिया गया। अतः अब आरक्षण पर बड़ी-बड़ी बातें करने से सपा व अन्य पार्टियों को भी कोई लाभ मिलने वाला नहीं। ये सभी वर्ग इन दोगले चेहरों से भी सतर्क रहें।

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बीजेपी बैंकफुट पर क्यों आ गई?

अब बात आती है कि बीजेपी ओबीसी आरक्षण पर बैकफुट पर क्यों आ गई। दरअसल यूपी में पिछड़ों का 52% वोट हैं। अगर यादव को छोड़ दिया जाए तो 43% पिछड़ा वर्ग के वोट हैं। बीजेपी ने 2014 के बाद से समाजवादी पार्टी के पिछड़ा वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाई है। उसने यादव, कुर्मी, शाक्य औऱ अन्य वर्गों के ओबीसी नेताओं को अपने पाले में कर लिया है। ऐसे में अब निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को रद्द होना बीजेपी के लिए दिक्कत हो गई है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश में कुल पिछड़ा वर्ग के 150 विधायक हैं। इसमें 90 भाजपा औऱ 60 समाजवादी पार्टी से हैं।


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