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लखनऊ

योगी सरकार का बड़ा फैसला, अब गैर-जमानती अपराधों में भी मिलेगी बेल, लेकिन होगी यह शर्त

– अब सेशन कोर्ट शर्तों के साथ अग्रिम जमानत दे सकेगा
– अग्रिम जमानत से जुड़े संशोधन को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है
– प्रदेश की योगी सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी
– पहले कई धाराएं पर अग्रिम जमानत नहीं मिलती थी

लखनऊJun 12, 2019 / 11:17 am

नितिन श्रीवास्तव

Yogi Adityanath government decision for anticipatory bail

योगी सरकार का बड़ा फैसला, अब गैर-जमानती अपराधों में भी मिलेगी बेल, लेकिन होगी यह शर्त

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में अब गैर जमानती अपराधों में अग्रिम जमानत मिलने का रास्ता खुल गया है। अग्रिम जमानत से जुड़े संशोधन को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है, जिसके बाद प्रदेश की योगी सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी। अब सेशन कोर्ट शर्तों के साथ अग्रिम जमानत दे सकेगा। प्रदेश सरकार ने राष्ट्रपति की अनुमति मिलने के बाद दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 में अग्रिम जमानत से संबंधित धारा 438 को फिर से लागू कर दिया है। हालांकि अग्रिम जमानत को लेकर कई शर्तें भी लगाई गईं हैं। आपको बता दें कि इससे पहले ऐसे कई धाराएं होती थी जिनपर अग्रिम जमानत नहीं मिलती थी।
Yogi Adityanath government decision for anticipatory bail
 

इन शर्तों पर मिलेगी जमानत

– अग्रिम जमानत की सुनवाई के दौरान अभियुक्त का उपस्थित रहना जरूरी नहीं होगा

– पूछताछ के लिए बुलाए जाने पर अभियुक्त को पुलिस अधिकारी या विवेचक के समक्ष उपस्थित होना पड़ेगा।
– आवेदक मामले से जुड़े गवाहों व अन्य व्यक्तियों को धमका नहीं सकेंगे न ही किसी तरह का आश्वासन दे सकेंगे।

इन मामलों में नहीं होगी जमानत

– अग्रिम जमानत की व्यवस्था एससीएसटी एक्ट समेत कई गंभीर अपराध के मामलों में लागू नहीं होगी।
– आतंकी गतिविधियों से जुड़े मामलों (अनलॉफुल एक्टिविटी एक्ट 1967), आफिशियल एक्ट, नारकोटिक्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट व मौत की सजा से जुड़े मुकदमों में भी नहीं मिल सकेगी।

Yogi Adityanath government decision for anticipatory bail
 

ये भी होगा जरूरी
– अग्रिम जमानत के लिए जो भी आवेदन आएंगे उनका आने की तारीख से 30 दिन के अंदर निस्तारण करना होगा।

– कोर्ट को अंतिम सुनवाई से सात दिन पहले लोक अभियोजक को नोटिस भेजना भी अनिवार्य होगा।
– अग्रिम जमानत से जुड़े मामलों में कोर्ट अभियोग की प्रकृति और गंभीरता, आवेदक के इतिहास, उसकी न्याय से भागने की प्रवृत्ति और आवेदक को अपमानित करने के मकसद से लगाए गए आरोप पर विचार कर उसके आधार पर फैसला ले सकती है।

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