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भूख की दर्दनाक तस्वीर, इस कूड़ेदान में दो वर्ष की मासूम क्या तलाश रही है, जा​नकर आप रो पड़ेंगे…, देखें वीडियो

दो वर्ष की मासूम का ये वीडियो हो रहा वायरल, भूखी बच्ची कूढ़े के ढ़ेर में तलाश रही थी खाने पीने का सामान...

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Poverty hunger

Poverty hunger

मैनपुरी। कहते हैं दो वक्त की रोटी कमाना बेहद मुश्किल होता है, तो ये सच्चाई है, भले ही इस सच्चाई को आप न समझें, लेकिन मैनपुरी में एक ऐसी तस्वीर सामने आई, जिसने इस सच्चाई को भलीभांति समझाया। भूख से तड़पते बच्चोंं के लिये मां क्या करती। मैनपुरी के लोहिया पार्क में कां कूड़ा बीन रही थी। तभी दो साल की मासूम को एक फटा हुआ नमकीन का पाउच मिल गया, जिसमें कुछ नमकीन के दाने थे। दो साल की मासूम के हाथ में नमकीन का पाउच देख बाकी दो बच्चे भी झगड़ने लगे। छोटे छोटे बहन भाइयों को आपस मे झगड़ते देख मां ने उस कचरेदान से उठाये अनाज के उन दानों को अपने तीनों बच्चों में आपस में बराबरी से बांटकर झगड़ा शांत करा दिया।

यहां दिखी भूख की ये तस्वीर
भूख की ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के जिला मैनपुरी में दिखी। मैनपुरी के एक शख्स आफाक अली खान ने ये तस्वीर कैद की। यहां लोहिया पार्क में शाम के समय एक महिला जिसका नाम सावित्री था, अपने तीन छोटे छोटे बच्चों के साथ उस कचरेदान से कुछ ऐसा बीनने की कोशिश कर रही थी, जिन्हें रईसों ने इस्तेमाल कर कूड़ेदान में फेंक दिया था, जिसे इकट्ठा कर शाम के खाने की व्यवस्था हो जाए। सावित्री और उसके बच्चों को कूड़े के ढ़ेर से कुछ खोजता देख कैमरे में तस्वीर कैद हुई। इस महिला से बात की गई, तो इस महिला ने कहा कि यदि बात की, तो समय अधिक हो जायेगा और कचरा खरीदने वाला भंगार दुकान बंद कर चला जायेगा। जिसके बाद आफाक अली खान को इस महिला ने बताया कि अगर देर हो गयी तो उसके बच्चों को आज भी भूखा सोना होगा। ज्यादा निवेदन करने पर सावित्री बात करने को राजी हो गई।

ये बोली सावित्री
सावित्री से जब पूछा आप कचरा क्यों बीन रहीं हैं, उसने दो टूक जबाव दिया, शाम के खाने की व्यवस्था जो करनी है। दूसरा सवाल किया पति नही हैं क्या, सावित्री ने दुखद बात को बताते हुए, सेकेंड के लिए भी अपने चेहरे से मुस्कान को दूर नहीं होने दिया और बोलीं उनका एक एक्सीडेंट में पैर टूट गया है, नहीं तो उनकी मजदूरी से दो जून की रोटी मिल जाती थी। तीसरा सवाल एक दिन में कितने रुपये का कचरा बीन लेती हैं, जबाव देने से पहले अपने कपड़ों पर लगे रुओं को खीचना शुरू कर दिया, मानो वह नहीं चाह रहीं थीं कि उनसे और सवाल किया जाये, फिर भी बड़ी ही सादगी से जबाव देते हुए बताया कि वो सुबह से दोपहर तक लगभग 50 रुपये का कचरा बीन लेती है, लेकिन उसके इस काम में तेजी तब आती है जब उसका 5 साल का बेटा प्राइमरी पाठशाला से लौट आता है, फिर उसकी एक 2 साल और एक 1 साल की बेटी मिलकर उसके रोजगार में हाथ बंटाते हैं, जिससे शाम तक 100 रुपये तक कि व्यवस्था हो जाती है औऱ एक वक्त की रोटी नसीब हो जाती है।

सुबह के खाने की नहीं है आदत
सुबह के खाने के बारे में बताते हुए उसने साफ झूठ बोला की हम लोगों को सुबह खाने की आदत नहीं है। वो झूठ जो उनके चेहरे से साफ दिख रहा था। इससे पहले चौथा सवाल किया जाता, उसकी सबसे छोटी बेटी जो लगभग 1 साल की थी रोने लगी। सावित्री तेजी से उठी और इकट्ठा किये गये कचरे से एक खुली नमकीन के पैकेट को लाकर अपनी बच्ची के हांथ में दे दिया। आखिरी सवाल पर सावित्री अपनी दिखावटी हंसी को रोकते हुए भावुक हो गयीं और सवाल का जबाव दिए बिना अपनी रोजी रोटी को कन्धे पर लटका कर अपने गन्तव्य की ओर चल दीं।