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आदिवासियों के तीर्थ स्थान चौगान की मढ़िया में दर्शन करने पहुंच रहे श्रद्धालु

हजारों की संख्या में ज्वारे व कलशों की हुई स्थापना

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आदिवासियों के तीर्थ स्थान चौगान की मढ़िया में दर्शन करने पहुंच रहे श्रद्धालु

आदिवासियों के तीर्थ स्थान चौगान की मढ़िया में दर्शन करने पहुंच रहे श्रद्धालु

मंडला. जिला मुख्यालय मंडला से घुघरी मार्ग के बीच करीब 30 किमी दूर रामनगर के समीप स्थित चौगान में माता का दरबार आस्था का केन्द्र है। यहां दूर-दूर से हजारो श्रृद्धालु मन्नत लेकर आते है। यहां आने भक्तों के कष्ट मां हरती है। यहां वर्ष के दोनों नवरात्र में हजारो कलश, खप्पर स्थापित किए जाते है। भक्त मन्नत पूरी होने पर मां का आर्शीवाद लेने कलश स्थापित करते है। बताया गया है कि चौगान दरबार में मंडला के अलावा अन्य राज्यो से भी श्रद्धालु आते है।

चैत्र नवरात्र पर्व में माता के दरबार में भक्तो का तांता लगा हुआ है। श्रृद्घालु नौ दिनों तक यहां निवास भी करते है। इस मढ़िया की महिमा दूर-दूर तक है। मढ़िस़ा 1700 ई.सन से है। चैत्र नवरात्र में मढ़िया में भक्तो का तांता लगा रहता है। नौ दिनो तक मढ़िया में विविध धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते है। चौगान मढ़िया पत्थर की दीवार के परकोटे से सुरक्षित है, यहां मां का दरबार है। पंडा पूजन कर भक्तो को धूनी प्रसाद स्वरूप देते है। जिससे भक्तो के सारे मनोरथ पूरे होते है। साल भर में मढिय़ा में चार पर्व चैत्र नवरात्र, शारदेय नवरात्र, कार्तिक पूर्णिमा, शिवरात्रि मनाई जाती है। जानकारी अनुसार चौगान की मढिय़ा आदिवासियों का तीर्थ स्थान कहा जाता है, इस मढ़िया में ना केवल मंडला जिला बल्कि दूसरे प्रदेशों व जिलों से हर वर्ग के लोग मन्नत मांगने आते है। यहां दरबार में एक चुटकी भभूत खाने और दरबार में माथा टेकने से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। भक्तों की मन्नत पूरी होने पर यहां भक्तों द्वारा ज्योत कलश की स्थापना कराना जरूरी होता है।

वर्तमान में मढ़िया के चारों ओर हजारों की संख्या में रखी टोकनी में बोई गई जवारे लहलहा रही हैं। हरियाली ही हरियाली नजर आ रही है। ग्रामीण बताते है कि यहां जिस किसी की मन्नत पूरी होती है, उन्हें इस दरबार में एक बांस की टोकनी, मिट्टी का बड़ा दीपक और तेल बाती लेकर आना पड़ता है। नवरात्रि प्रारंभ के दूसरे दिन खास तरह की मिट्टी सभी को पुजारी के द्वारा बताए गए स्थान से लानी पड़ती है। जिसके बाद ज्वारे टोकनी में बोए जाते है और एक साथ ज्योति प्रज्जवलित कर कलशों की स्थापना की जाती है। इस स्थान में मांगी गई मन्नत पूरी होने के बाद ही कलश रखे जाते है और यहां रखने वाले कलशों की संख्या दोनों नवरात्र में करीब तीन हजार से ज्यादा रहती है।