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त्याग की पराकाष्ठा का ग्रंथ है रामायण

त्याग की पराकाष्ठा का ग्रंथ है रामायण

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त्याग की पराकाष्ठा का ग्रंथ है रामायण

मंदसौर श्री कांकरवा बालाजी में 21वां पंचकुण्डीय मारूती महायज्ञ के उपलक्ष्य में संगीतमय भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। कथा में राम जन्मकथा प्रसंग में पंडित भीमाशंकर शास्त्री ने कहा कि रामायण एक ऐसा ग्रंथ है।जहां त्याग की पराकाष्ठा तो है ही त्याग की परस्पर ऐसी स्पर्धा कहीं देखने को नहीं मिलेगी। कैकेयी ने 14 वर्ष का वनवास केवल राम को और राज्य अपने पुत्र के लिए दशरथ से वरदान में मांगा था। परन्तु सीता ने पत्नी धर्म का हवाला देकर राम के साथ वनवास जाने की जहां जिद्द पर उतारू हो गई।वहीं लघु भ्राता लक्ष्मण भी हठकर बड़े भाई की सेवा में रहने। वनवास को चले गए। इन तीनों के त्याग से बढक़र भरत का त्याग जो राज्य का उत्तराधिकारी घोषित होने के बाजवूद 14 वर्ष तक राज्य सिंहासन पर न बैठकर राम की तरह वनवासी बनकर कुटिया बनाकर अयोध्या से बाहर नन्दी ग्राम में रहे। सबसे छोटा भाई शत्रुघ्न का त्याग भरत से अधिक रहा जो भरत की कुटीया के बाहर टीले पर बैठकर भरत की आज्ञा का अनुसरण करने को तत्पर रहते थेे। सबसे बड़ा त्याग भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न की उन धर्मपत्नि देवियों का है जिन्होनें राजमहल में रहते हुए आश्रम की सन्यासियों की तरह 14 साल तक तपस्या मय जीवन बिताया। उन्होंने दहेज को घोर अभिशाप और कलंक बताते हुए युवाओं को इससे दूर रहने की अपेक्षा की। विवाह भी शास्त्रानुसार वैदिक विधी विधान से ही होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जीवन में अभिमान तो कभी किसी भी बात का नहीं होना चाहिए परन्तु भारत गौरव महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जैसे राष्ट्रवीरों की तरह हमें अपने स्वाभिमान को भी गौरव होना चाहिए। विज्ञान और अध्यात्म में यह फर्क है कि विज्ञान जानने के बाद मानता है और अध्यात्म पहले मानता है और फिर जानता है।
अमृत मंथन में अमृत और मदिरा दोनों निकले परन्तु देवताओं ने अमृत स्वीकार किया जबकि देत्यों ने मदिरा को। इसलिए जो मदिरा पान करते है उन्हें मदिरा त्याग कर अपने को देवताओं के श्रेणी में सम्मिलित कर लेना चाहिए। प्रहलाद ने राक्षस कुल में जन्म लेने के बाजवूद गर्भावस्था में मॉ कदायू का नारद मुनि के आश्रम में रहने से प्रहलाद में भक्ति के संस्कार गर्भावस्था में ही जम गए थे। जो पैदा होते ही उजागर हो गए थे।इसलिए हमारे कमरों में हमेशा भगवान के, राष्ट्रवीरों-महापुरूषों के ही चित्र लगाना चाहिए। हमें देखना भी वहीं चित्र सीरियल चाहिए जिससे हमारा और हमारी भावी पीढ़ी का जीवन उन्नत-सुखी हो। संस्कार बिगड़े नहीं और भविष्य उज्जवल और प्रेरणादायी हो। बच्चों के नाम भी भगवान अथवा राष्ट्रभक्तों के नाम पर रखना चाहिए क्योंकि नाम का भी बड़ा प्रभाव होता है। कहा है यथा नाम तथा गुण जीवन में आते है। कृष्ण जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। सजीव झांकी में वसुदेव बने पात्र ने पालने में बैठकर कृष्ण बने नन्हें वाला शिशु को मंच पर व्यास मंच पर भक्ति नृत्य करते हुए लाए।