
Crude oil connection of US election, know how the equation changes
नई दिल्ली। वर्ष 2020 देश और दुनिया में चुनावों की वजह से ज्यादा याद रखा जाएगा। पहला दिल्ली विधानसभा चुनाव। जिसमें आम आदमी पार्टी को एक बार फिर से प्रचंड जीत मिली। वहीं दूसरा अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव, जिसकी तैयारियों को लेकर खुद अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जुट गए हैं। अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव सिर्फ अमरीका के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के काफी अहम होता है। क्योंकि कई देशों के राजनीतिक और व्यापारिक समीकरण अमरीकी राष्ट्रपति की वजह से बनते और बिगड़ते हैं। वहीं अमरीकी चुनाव में राष्ट्रपति उम्मीदवारों का समीकरण कोई और नहीं बल्कि कच्चा तेल बनाता और बिगाड़ता है। उस उम्मीदवार पर कच्चे तेल की कीमतों का दबाव ज्यादा होता है जो दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए चुनाव लड़ रहा है। बाजार के जानकारों की राय में समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर कच्चे तेल की कीमतों का अमरीकी चुनावों से क्या कनेक्शन है? वहीं पहले बात इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी की रिपोर्ट के बारे में बताते हैं, जिन्होंने काफी हद तक रौशनी डालने की कोशिश की है।
आईईए की हालिया रिपोर्ट
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का अनुमान है कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में कच्चे तेल की वैश्विक खपत मांग पिछले साल के मुकाबले 4.35 लाख बैरल घट सकती है। रिपोर्ट के अनुसार बीते एक दशक में यह पहला मौका होगा, जब तेल की सालाना मांग में कमी दर्ज की जाएगी। इससे पहले एजेंसी ने तेल की खपत मांग में पिछले साल के मुकाबले 8 लाख बैरल रोजाना का इजाफा होने का अनुमान लगाया था। आईईए के अनुसार, 2020 में पूरे साल के दौरान तेल की मांग में वृद्धि महज 8.25 लाख बैरल रोजाना होने का अनुमान है, जोकि पिछले अनुमान से 3.65 लाख बैरल कम है। इस प्रकार 2011 के बाद तेल की सालाना मांग में यह सबसे कम वृद्धि होगी।
कच्चे तेल का अमरीकी कनेक्शन
आईईए की रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब अमरीका में चुनाव काफी नजदीक हैं। ऐसे रिपोर्ट में मांग में कमी की संभावना जताई गई है। अगर ऐसा होता है तो कच्चे तेल की कीमतों में और कमी देखने को मिल सकती है। जिसका असर अमरीकी चुनावों में भी देखने को मिल सकता है। ऊर्जा विशेषज्ञ नरेंद्र तनेजा की मानें तो अमरीका में इस साल राष्ट्रपति चुनाव है और वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चाहेंगे कि तेल कीमतें नियंत्रण में रहे, क्योंकि अमरीका में वहीं राष्ट्रपति दोबारा चुना जाता है जो तेल के दाम को नीचे रखता है। ऐसे में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चाहेंगे कि चुनावों तक इसी तरह की स्थिति बनी रहे। ताकि वो अपने चुनावी कैंपेन इस बात का फायदा ले सकें।
अमरीका अब इंपोर्टर नहीं एक्सपोर्टर
वहीं दूसरी ओर केडिया कमोडिटीज के डायरेक्टर अजय केडिया का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतों का असर अमरीकी चुनावों में पांच और छह साल पहले पड़ता था, इसका कारण था कि अमरीका पहले कच्चे तेल का आयात करता था। तब वो चाहता था कि चुनावों के चुनाव के दौरान कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट रहे। पांच साल में अमरीका स्थितियां काफी बदल गई हैं। अमरीका ने कच्चे तेल का उत्पादन शुरू किया और अपने आप को पांच सालों में कच्चे तेल का एक्सपोर्टर बना लिया। आंकड़ों की मानें तो अमरीका 13.8 मिलियन बैरल प्रति दिन का उत्पादन कर रहा है। ऐसे में अमरीका चाहेगा कि कच्चे तेल के दामों में तेजी आए ताकि वो ज्यादा से ज्यादा रेवेन्यू आ सके।
आज इतने रहे कच्चे तेल के दाम
अंतर्राष्ट्रीय बाजार इंटरकांटिनेंटल एक्सचेंज (आईसीई) पर बीते सप्ताह शुक्रवार को बेंट क्रूड का अप्रैल अनुबंध 57.33 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ, जबकि सप्ताह के आरंभ में सोमवार को ब्रेंट क्रूड का भाव 53.27 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ था। वहीं, न्यूयार्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (नायमैक्स) पर अमेरिकी लाइट क्रूड वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (डब्ल्यूटीआई) का मार्च अनुबंध शुक्रवार को 52.23 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ, जबकि सोमवार को 50 डॉलर प्रति बैरल के मनोवैज्ञानिक स्तर से नीचे गिरकर 49.94 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ था।
Updated on:
17 Feb 2020 10:29 am
Published on:
16 Feb 2020 09:43 pm
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