
वृन्दावन के इस मंदिर में विराजमान हैं 'चटोरे भगवान', जानिए प्राचीन मंदिर का रोचक इतिहास
मथुरा। मंदिरों की नगरी वृन्दावन में एक से बढ़ कर एक मंदिर हैंं। मथुरा-वृंदावन को कान्हा की नगरी कहा जाता है इसलिए यहां के हर मंदिर से भगवान कृष्ण की लीलाओं और अनंत कहानियां जुड़ी हुई हैं। ऐसा ही एक मंदिर है चटोरे भगवान मदन मोहन का मंदिर। चटोरे मदनन मोहहन का मंदिर वृंदान मेंं स्थित है। इस मंदिरा का इतिहास बड़ा रोचक है।
ये है इतिहास
वृन्दावन परिक्रमा मार्ग में मदन मोहन मंदिर स्थित है। यह मंदिर आज से 515 वर्ष पुराना है और इस मंदिर का एक अलग ही महत्व है। मदन मोहन मंदिर के सेवायत पुजारी अनादि मोहनदास ने मंदिर का इतिहास बताते हुए कहा कि इस मंदिर की नीव वह आज से 515 वर्ष पहले रखी गयी। कहा जाता है कि मदन मोहन जी का जन्म यमुना जी से हुआ था। सुबह के समय मथुरा की एक चौबे की पत्नी यमुना में स्नान करने जाया करती थीं। एक दिन चौबे की पत्नी को मदन मोहन पानी में खेलते हुए मिले उन्होंने कई आवाजें लगाईं लेकिन उनकी आवाज सुनकर कोई नहीं आया तब चौबे की ने मदन मोहन को अपनी गोद में लिया और अपने घर ले आईं। मदन मोहन ने चौबे की पत्नी से बचन लिया कि मैं तुम्हारे साथ जा तो रहा हूं लेकिन जिस दिन तुमने मुझे घर से निकलने के लिए कहा उसी दिन मैं घर से चला जाऊंगा। बड़े होकर मदन मोहन ने मथुरा के लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया। कभी किसी का माखन चुरा लेते थे तो कभी किसी का मिश्री चुरा लेते थे। मदन मोहन के इस कृत्य को देखकर मथुरा के लोग परेशान हो गए और मदन मोहन की शिकायत चौबे की पत्नी से कर दी। शिकायत के बाद वह बहुत तेज गुस्सा हुईं और मदन मोहन को डांटकर बोलींं कि तुम यहां से चले जाओ, उसी दौरान वहां से सनातन गोस्वामी गुजर रहे थे तो मदन मोहन ने सनातन गोस्वामी को रोक कर कहा कि बाबा मुझे आपके साथ चलना है। इसके बाद वह सनातन गोस्वामी के साथ चले गए।
रास्ते में सनातन गोस्वामी ने मदन मोहन से बचन लिए कि जैसा मैं खिलाऊंगा वैसा खाओगे जैसा रखूंगा वैसा रहोगे तो मदन मोहन ने वचन देते हुए कहा कि आप जैसा खिलाओगे मैं वैसा खाऊंगा और जैसा रखोगे मैं वैसा रखूंगा। इतना कहकर सनातन गोस्वामी मदन मोहन को अपने साथ वृंदावन ले गए। वृंदावन के टीले पर यह लोग रहने लगे और वृंदावन से वह आटा मांग कर लाते। उस आटे को यमुना जल में गूंथ कर उसकी बाटी बनाते और सनातन गोस्वामी पहले मदनमोहन को भोग लगाते उसके बाद खुद खाते। काफी लंबे समय तक ऐसा ही चलता रहा एक दिन मदन मोहन ने कहा कि मैं अरोनी बाटी नहीं खाऊंगा तो सनातन ने मदन मोहन से कहा कि मैंने आपसे वचन लिया था कि मैं जैसा आपको खिलाऊंगा वैसा आप खाएंगे और ध्यान रखूंगा वैसे रहेंगे। मंदिर के पुजारी ने यह भी बताया कि एक पंजाब के रहने वाले एक व्यापारी रामदास जोकि सेंधा नमक और फल का व्यापार करते थे वह दिल्ली से आगरा तक अपना व्यापार करते थे कुछ दिन बाद जब वह दिल्ली से चलकर आगरा के लिए जा रहे थे और उनके जहाज में फल और सेंधा नमक भरा हुआ था जैसे ही उनका जहाज वृंदावन पहुंचा तो उनका जहाज एक टीले पर अटक गया और कई घंटे बाद भी वह जहाज वहां से नहीं निकल पाया। व्यापारी रामदास ने टीले पर एक बच्चे की आवाज सुनी तो व्यापारी जहाज से उतर कर बच्चे के पास गया बच्चे के पास सनातन गोस्वामी बैठे हुए थे और बच्चा यमुना में खेल रहा था। सनातन गोस्वामी से व्यापारी रामदास ने अपने साथ हुई घटना के बारे में बताया तो सनातन गोस्वामी ने कहा कि आपकी जो समस्या है उसका निदान यमुना के तीर में खेल रहा बच्चा कर सकता है आप उनके पास जाओ और उनसे जाकर बात करो। व्यापारी रामदास मदन मोहन के पास गए और उनसे अपने साथ हुई घटना के बारे में बताया। मदन मोहन ने कहा कि तुम्हारे जहाज में क्या भरा हुआ है। उन्होंने बताया कि प्रभु मेरे जहाज में सेंधा नमक और फल भरे हुए हैं। मदन मोहन ने कहा तुम्हारा जहाज निकल तो जाएगा लेकिन उसके बदले मुझे क्या मिलेगा व्यापारी ने मदन मोहन से कहा कि मेरे जहाज में सेंधा नमक और फल भरा हुआ था जो कि पानी से खराब हो चुका है मैं आप को क्या दे सकता हूं। व्यापारी से मदन मोहन से कहा कि आप अपने जहाज के पास जाइए जहाज आपका ठीक है और कोई सामान भी नुकसान नहीं हुआ है। व्यापारी अपने जहाज के पास गया तो उसने देखा कि जहाज में सेंधा नमक और फल की जगह हीरा जवाहरात पन्ना सोना-चांदी भरा हुआ था। यह देखकर व्यापारी रामदास लौट कर वापस उस बालक के पास गए और उनसे कहा प्रभु आप जैसा आदेश करें मैं वैसा करूंगा।
ऐसे हुआ मंदिर का निर्माण
बताया जा ता है कि इसके बाद उसी व्यापारी ने भगवान मदन मोहन का मंदिर बनवाया। व्यापारी द्वारा बनवाया गया मंदिर आज भी विश्व में अपनी ख्याति बिखेर रहा है। इस मंदिर के निर्माण से पहले मदनेश्वर महादेव मंदिर, सूर्य मंदिर ,सूर्य घाट, शीतला माता मंदिर और इसके साथ चार कुटिया भी उसी व्यापारी ने बनवाई थी।
यमुना की गहराई तक गहरी है मंदिर की नींव
मदन मोहन मंदिर की एक खास बात और है कि यह मंदिर यमुना से 70 फीट ऊंचा है और 70 फीट नीचे तक यमुना में इसकी नींव है । औरंगजेब के समय से ही यह मंदिर यहां बना हुआ है औरंगजेब ने इस मंदिर को कई बार तोड़ने का प्रयास किया लेकिन इस मंदिर को तोड़ नहीं पाया। वह हर बार पराजित होकर यहां से गया।
इसलिए चटोरे मदन मोहन पड़ा नाम
मदन मोहन मंदिर को चटोरे मदन मोहन मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर को चटोरे के नाम से इसलिए जाना जाता है क्योंकि मदन मोहन हर दिन नए नए व्यंजन खाने के लिए लालायित रहते थे और हर दिन सनातन गोस्वामी से कुछ नया बनाने के लिए कहते थे, इसी कारण उनका नाम चटोरे मदन मोहन पड़ गया। बताया जाता है कि बालक मदन मोहन ने ने अपना अभिषेक करने के लिए बोला, जैसे ही बालक का अभिषेक हुआ तो वह पत्थर में बदल गया।
भगवान कृष्ण के थे अवतार
माना जाता है कि मदन मोहन भगवान श्रीकृष्ण के ही अवतार थे। मंदिर की खास बात और है कि मंदिरों में मंगला आरती हर दिन होती है लेकिन मदन मोहन मंदिर में मंगला आरती केवल कार्तिक के महीने में होती है जो कि अक्टूबर और नवंबर के बीच में आता है ।
Published on:
21 May 2018 08:00 am
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