
जाट-मुस्लिम गठजोड़ के परिणाम से वेस्ट यूपी में बिगड़ सकता है मायावती का गणित
मेरठ। कैराना आैर नूरपुर में उपचुनाव में मिली गठबंधन को जीत से आने वाले दिनों में पार्टियों के समीकरण बिगड़ सकते हैं। एक तरफ बसपा मुस्लिम-दलित की राजनीति से अपनी राह आसान कर रही है। वहीं अब रालोद और सपा ने मुस्लिम-जाट वोट बैंक को वेस्ट यूपी में एक करने में सफलता पाई है। वेस्ट यूपी के अधिकतर जिले ऐसे हैं जहां जाट और गुर्जर निर्णायक हैं। वेस्ट यूपी में 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में अखिलेश लहर को बीएसपी की ओर से कड़ी टक्कर मिली थी। 2012 के आंकड़ों को देखें तो सपा को 24, बीएसपी को 23, बीजेपी को 13, आरएलडी को 9 और कांग्रेस को 5 सीटें मिली थीं।
ध्रुवीकरण बीजेपी के हक में
अगस्त 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे के बाद वेस्ट यूपी दो वर्गों में बंट गया था। इस हिस्से में लोकसभा चुनावों के दौरान ध्रुवीकरण का प्रभाव साफ नजर आया। हिन्दू बाहुल्य इलाका होने के चलते बीजेपी को थोड़ी राहत की उम्मीद दिखी, लेकिन इसी बीच मायावती ने दलित-मुस्लिम गठजोड़ साधने की कोशिश की। इस क्षेत्र में दलित और मुस्लिम समीकरण सबका सियासी गणित बिगाड़ता रहा है। इन दोनों की एकता ने सपा, भाजपा, कांग्रेस यहां तक की जातीय आधार पर खड़ी छोटी-बड़ी पार्टियों का गुणा भाग उल्टा-पुल्टा कर दिया है, लेकिन 2014 से 2018 तक यह समीकरण छिन्न-भिन्न हो गए और इसका लाभ भाजपा को मिला। लेकिन अब फिर से मुस्लिम-जाट को राजनीति दलों ने एक पाले में लाकर खड़ा कर दिया है। जिससे मायावती का दलित-मुस्लिम गड़बड़ा गया है। मायावती को इस बात की भी चिंता है कि अगर वे इस गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ती हैं तो उन्हें उतनी सीटें नहीं मिलेगी, जितनी वह चाहती हैं।
247 सीटों पर जीत का रखते है दम
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव अगर दलित और मुस्लिम सिर्फ अपने एक उम्मीदवार को वोट दें तो 247 सीटों पर जीत हासिल कर सकते हैं। दलित के 21 फीसदी वोट और मुसलमानों के 19 फीसदी वोट से एकतरफा जीत हासिल करते हुए दोनों 247 सीटों पर कब्जा कर सकते हैं।
मुसलमानों की विधानसभावार संख्या
विधानसभावार मुसलमानों का वोट देखें तो 18 विधानसभा सीटों पर मुस्लिमों की जनसंख्या एक लाख से ज्यादा है। वहीं 23 सीटों पर मुसलमानों का वोट 75 हजार से ज्यादा। 48 सीटों पर मुसलमानों का वोट करीब 50 हजार से ज्यादा है। यानी इन सीटों पर मुसलमान सिर्फ एक मुस्लिम उम्मीदवार को वोट दे तो वह आसानी से चुनाव जीत सकता है।
158 सीटों पर दलितों का पलड़ा भारी
दलितों के लिहाज से देखें तो 158 सीटों पर इनका पलड़ा भारी है। 158 सीटों पर दलितों का वोट 50 हजार से ज्यादा है। यानी इन 158 विधानसभा सीटों पर दलित सिर्फ एक उम्मीदवार को वोट दें तो वह आसानी से जीत हासिल कर सकता है। अगर इन सीटों पर मुसलमानों का साथ उसे मिल जाए तो जीत सुनिश्चित है।
गठबंधन पर मायावती की चुप्पी के मायने
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने पिछले दिनों अपने संगठन में फेरबदल करते हुए अतिपिछड़ों को ऊंचे ओहदे पर बैठाया। जिसके साफ संकेत थे कि वे पिछड़ी जाति को भी बसपा के पाले में लाने की तैयारी में हैं। वहीं आगामी चुनावी का खाका तैयार करने को बैठे सपा-रालोद और कांग्रेस के विपरीत मायावती इसमें तनिक भी जल्दबाजी नहीं करना चाहती। उन्हें पता है कि अगर वे इस गठबंधन के साथ गई तो उनका दलित-मुस्लिम समीकरण खत्म हो जाएगा। जिसका नुकसान उन्हें सीटों को गंवाकर उठाना पड़ेगा।
Published on:
01 Jun 2018 07:03 pm
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