दीपावली के आते ही शहर में उल्लुओं की खरीद-फरोख्त तेज हो गई है। अंधविश्वास के चलते धनवान बनने की चाहत में काफी लोग दीपावली की रात उल्लुओं की बलि चढ़ाते हैं। पक्षी विक्रेताओं की माने तो उल्लूओं को बेचने का कारोबार काफी पुराना है। दिवाली से पहले दुकानदार ग्राहकों से पहले ही रकम ले लेते है, जबकि उल्लू की डिलिवरी बाद में की जाती है। अंधविश्वास के चलते बेजुबान पक्षियों को अपनी जान गंवानी पड़ती है। पंडित गोपाल शर्मा ने बताया कि जो लोग तंत्र मंत्र पूजा में विश्वास रखते हैं, ऐसे लोग दिवाली पर उल्लू की बलि देने के लिए कोई भी कीमत देने को तैयार रहते हैं। उन्होंने बताया कि यह एक अंधविश्वास है। तांत्रिक की माने तो हर जगह उल्लू की बलि नहीं दी जा सकती है। श्मशान और नदी किनारे अक्सर बलि देते है। बलि देने से पहले उल्लू पर सिंदूर भी लगाया जाता है।
दीपावाली पर उल्लुओं की खरीद-फरोख्त तेज हो गई है। अंधविश्वास के चलते किसी भी कीमत पर लोग उल्लुओं को खरीदने के लिए तैयार हो जाते है। बताया गया है कि एक उल्लू 20 हजार रुपये से ज्यादा की रकम में बिकता है। दीपावली पर इसकी कीमत लाखों में पहुंच जाती है। बताया जाता है कि कीमत 5 लाख तक बिकता है।
ऐसे में वन विभाग ने भी उल्लू के शिकारियों और विक्रेताओं को पकड़ने के लिए निगरानी शुरू कर दी है। वन विभाग के अधिकारी अंधविश्वास के चलते हर साल दी जाने वाली बेजुबान पक्षियों की बलि को रोकने के लिए सजग हो गए है। वन विभाग की टीम ने सोतीगंज में चिड़िमारों के ठिकानों तक जा पहुंची। वन विभाग प्रवर्तन दल के क्षेत्रीय अधिकारी नरेश कुमार और सुनील कुमार के नेतृत्व में वन विभाग की टीम ने पक्षी पकड़ने वालों के ठिकानों पर लगातार छापेमारी कर रही है। वन विभाग के अधिकारियों की माने तो शिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवार्इ की जाएगी।