
मेरठ। अजीत सिंह के पुत्र और युवा रालोद नेता जयंत चौधरी कैराना विजय के बाद तेजी से राजनीति के क्षैतिज पर उभरे हैं। 2014 लोकसभा चुनाव की बात करें तो चौधरी अजीत सिंह का गढ़ माने जाने वाले कैराना में मोदी लहर की सुनामी में रालोद का प्रत्याशी 50 हजार वोट पाने को तरस गया। उस चुनाव में पार्टी का खाता भी नहीं खुला। उसके बाद 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की लहर के कारण अजीत सिंह की पार्टी रालोद को पूरे सूबे में महज एक प्रतिशत वोट मिला और महज एक विधानसभा सीट पर कामयाबी मिली। वह एमएलए भी बाद में पाला बदलकर बीजेपी में चला गया।
अब कैराना लोकसभा उपचुनाव में रालोद प्रत्याशी तबस्सुम हसन की जीत से रालोद को संजीवनी मिली है। इसके पीछे अगर किसी की मेहनत कही जा सकती है तो वह हैं रालोद के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी। जिन्होंने पश्चिमी उप्र में गठबंधन की नई राह खोली है। उप्र के युवा नेताओं में अखिलेश यादव के बाद अगर किसी का नाम आ रहा है तो वह हैं जयंत चौधरी। 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन की क्या दिशा और दशा होगी अब बहुत हद तक यह अखिलेश और जयंत चौधरी जैसे युवा नेताओं के ऊपर निर्भर करता है।
पश्चिमी उप्र में भाजपा के विजयी रथ पर लगाम कसने वाले जयंत चौधरी ही हैं। इससे विपक्षी दलों को बीजेपी को रोकने का रास्ता दिखने लगा है। आने वाले समय में अगर वे प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के दावेदार होते हैं या गठबंधन रूपी केंद्र सरकार में किसी महत्वपूर्ण भूमिका में हो सकते हैं। इस बात से नकारा नहीं जा सकता। अपने दादा चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत को बढ़ाना जयंत चौधरी अपने पिता से बढ़िया जानते हैं।
भारी नुकसान की भरपाई कर आगे बढ़े युवा जयंत
जयंत चौधरी के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो वे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से इसके बावजूद पूरे तौर पर सक्रिय हैं कि उनके दल को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भारी नुकसान उठाना पड़ा है। लखनऊ में भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ उनका आंदोलन रहा हो या फिर गठबंधन की बात के दौरान रालोद की जोरदार तरीके से उनकी पैरवी। सभी में उनकी राजनीतिक परिपक्वता नजर आई। इस राजनीतिक माहौल में जयंत चौधरी की राजनीतिक लाइन आगे क्या होगी यह राजनीति के जानकार भली प्रकार से जान गए होंगे।
जयंत ने अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को उसी प्रकार फिर से वापस पाने के लिए न केवल कड़ा संघर्ष किया है बल्कि अपने सजातीय वर्ग को भी रालोद के पक्ष में एकजुट करने में सफल रहे हैं। ऐसा कैराना लोकसभा उपचुनाव में गठबंधन प्रत्याशी की जीत के बाद दिखने लगा है। राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि जयंत चौधरी के राजनीतिक एजेंडे में उन्हें यह भी ध्यान रखना होगा कि युवा पीढ़ी की राजनीतिक धारणाएं बदल रही हैं और जैसा माहौल बना हुआ है, उसमें उन्हें एक संतुलन स्थापित करना होगा, अर्थात उन्हें अपनी पुरानी पड़ चुकी राजनीतिक रणनीतियों पर फिर से विचार करना होगा। जिसके लिए वे अभी से तैयारी कर रहे हैं।
जयंत चौधरी से पत्रिका की हुई बातचीत में उन्होंने कहा कि उनका पहला काम रालोद की खोई हुई जमीन वापस लाना है। उन्हें किसी पद का लालच नहीं है। गठबंधन में जीत के बाद कौन प्रधानमंत्री होगा। इस पर उन्होंने कहा कि इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। उनका मकसद अभी भाजपा विरोधी दलों को एक करना है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी उप्र में वे करीब 10 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। आगे आने वाले समय में गठबंधन की बैठक में यह तय होगा।
Updated on:
21 Jun 2018 06:25 pm
Published on:
20 Jun 2018 08:25 pm
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