नई दिल्ली। अफगानिस्तान ( Afghanistan Crisis ) पर तालिबान के कब्जे के बाद से हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। भारत ( India ) समेत तमाम देशों के लोग अफगानिस्तान छोड़ कर निकलने को बेताब हैं। भारत में लगातार अफगानिस्तान से लोग लौट रहे हैं। कुछ आ रहे हैं तो कुछ कुछ महीनों पहले ही खतरे को पहचानकर लौट चुके हैं।
हालांकि लौटकर आने वालों की जिंदगी अब आसान नहीं है। ऐसे ही भारत लौटकर आए अफगानिस्तान की स्पेशल फोर्स ( Afghanistan Special Force ) के जावन उमेद ( Umaid ) इन दिनों राजधानी दिल्ली में फ्रेंच फ्राइज बनाने का काम कर रहे हैं। वे बताते हैं अगर लौटकर गया तो वो ( तालिबानी लड़ाके ) मुझे मार देंगे।
वायुसेना के विमान ने काबुल से भरी उड़ान
अफगानिस्तान से लगातार लोग भारत आ रहे हैं। भारतीय वायुसेना के सी-17 विमान ने काबुल से 120 से अधिक भारतीय अधिकारियों के साथ उड़ान भरी है।
पांच महीने पहले अफगानिस्तान से भारत आए उमेद अफगान स्पेशल फोर्स में थे। अब वे दिल्ली के लाजपत नगर में फ्रेंच फ्राइज बनाने का काम कर रहे हैं। उमेद की माने तो लौटने के बाद जिंदगी इतनी आसान नहीं थी।
आजीविका के लिए फ्रेंच फ्राइज बनाने का काम शुरू कर दिया। रोजाना करीब 300 रुपए की कमाई हो जाती है। काम करने के लिए हिंदी सीखने की भी कोशिश की है। लेकिन हर पल आने वाले कल की चिंता रहती है।
वापस नहीं लौट सकता
अफगानिस्तान की खबरें सुनकर उमेद अपने फौज के वो मुश्किल दिन याद करते हैं, जब वे अफगानिस्तान के लिए लड़ रहे थे। वे बताते हैं इस दौरान हर जगह पर पोस्टिंग हुई, हमने चुन-चुन कर कई तालिबानियों को मारा। तालिबानियों ने लड़ाई के वीडियो बनाए हैं और उन वीडियो में दिखाई देने वाले अफगान फौजियों को अपनी हिट लिस्ट में शामिल किया है। मेरा भी नाम इस लिस्ट में है। यही वजह है कि दोबारा अफगानिस्तान गया तो मारा जाऊंगा।
उमेद फिलहाल रिफ्यूजी कार्ड पर भारत में रह रहे हैं। वे बताते हैं आने वाले कल में क्या होगा इसको लेकर हमेशा चिंता रहती है। उमेद के माता-पिता का एक एक्सिडेंट में निधन हो गया था, जब वे सिर्फ दो वर्ष के थे।
भागता नहीं तो ये करता
उमेद ने बताया अफगानिस्तान में अपनों को मरते देखना काफी दुख देने वाला था। सरकार कुछ कर नहीं पा रही थी, तालिबानी ऊपर थे। अगर भागता नहीं, तो दो ही ऑप्शन थे - या तो मर जाओ या उनके फौज से बंध जाओ।
अफगानिस्तान से भारत आए उमेद अफगान स्पेशल फोर्स में थे। अब वे दिल्ली के लाजपत नगर में फ्रेंच फ्राइज बनाने का काम कर रहे हैं। उमेद की माने तो लौटने के बाद जिंदगी इतनी आसान नहीं थी।
आजीविका के लिए फ्रेंच फ्राइज बनाने का काम शुरू कर दिया। रोजाना करीब 300 रुपए की कमाई हो जाती है। काम करने के लिए हिंदी सीखने की भी कोशिश की है। लेकिन हर पल आने वाले कल की चिंता रहती है।
वापस नहीं लौट सकता
अफगानिस्तान की खबरें सुनकर उमेद अपने फौज के वो मुश्किल दिन याद करते हैं, जब वे अफगानिस्तान के लिए लड़ रहे थे। वे बताते हैं इस दौरान हर जगह पर पोस्टिंग हुई, हमने चुन-चुन कर कई तालिबानियों को मारा। तालिबानियों ने लड़ाई के वीडियो बनाए हैं और उन वीडियो में दिखाई देने वाले अफगान फौजियों को अपनी हिट लिस्ट में शामिल किया है। मेरा भी नाम इस लिस्ट में है। यही वजह है कि दोबारा अफगानिस्तान गया तो मारा जाऊंगा।
उमेद फिलहाल रिफ्यूजी कार्ड पर भारत में रह रहे हैं। वे बताते हैं आने वाले कल में क्या होगा इसको लेकर हमेशा चिंता रहती है। उमेद के माता-पिता का एक एक्सिडेंट में निधन हो गया था, जब वे सिर्फ दो वर्ष के थे।
भागता नहीं तो ये करता
उमेद ने बताया अफगानिस्तान में अपनों को मरते देखना काफी दुख देने वाला था। सरकार कुछ कर नहीं पा रही थी, तालिबानी ऊपर थे। अगर भागता नहीं, तो दो ही ऑप्शन थे - या तो मर जाओ या उनके फौज से बंध जाओ।
भारत अच्छा देश
उमेद कहते हैं भारत अच्छा देश है, लेकिन एक अफगानी के लिए यहां भी मुश्किलें कम नहीं हैं। काम मिलना मुश्किल है, पुलिस, एमसीडी सबका चक्कर। दूसरा मुल्क है, नियम भी दूसरे हैं। घर का किराया है समेत कई परेशानियां हैं।
18 साल में फौज जॉइन की। दस साल की जिंदगी भागदौड़, लड़ाई में लगा दी। अंकल है मगर बनती नहीं। वो तालिबान की फौज में और मैं सरकार के साथ। वह कहते हैं, अफगानिस्तान में पैदा हुआ हूं, अपना मुल्क बहुत याद आता है मगर मजबूर हूं।
हर घंटे बीवी-बच्चों की चिंता
अफगानिस्तान से चार दिन पहले लौटे एक और अफगानी बताते हैं कि किसी तरह वहां से निकलकर आ पाया हूं।मेरे साथी भी कहीं ना कहीं भाग गए हैं। लेकिन परिवार अब भी काबुल में ही फंसा हुआ है। वीजा की प्रक्रिया अटकी हुई है। यही वजह है कि हर पर बीवी-बच्चों की चिंता सताती है। कहीं तालिबानी मेरे घर पहुंच गए तो क्या होगा?
उमेद कहते हैं भारत अच्छा देश है, लेकिन एक अफगानी के लिए यहां भी मुश्किलें कम नहीं हैं। काम मिलना मुश्किल है, पुलिस, एमसीडी सबका चक्कर। दूसरा मुल्क है, नियम भी दूसरे हैं। घर का किराया है समेत कई परेशानियां हैं।
18 साल में फौज जॉइन की। दस साल की जिंदगी भागदौड़, लड़ाई में लगा दी। अंकल है मगर बनती नहीं। वो तालिबान की फौज में और मैं सरकार के साथ।
वह कहते हैं, अफगानिस्तान में पैदा हुआ हूं, अपना मुल्क बहुत याद आता है मगर मजबूर हूं।
हर घंटे बीवी-बच्चों की चिंता
अफगानिस्तान से चार दिन पहले लौटे एक और अफगानी बताते हैं कि किसी तरह वहां से निकलकर आ पाया हूं।मेरे साथी भी कहीं ना कहीं भाग गए हैं। लेकिन परिवार अब भी काबुल में ही फंसा हुआ है। वीजा की प्रक्रिया अटकी हुई है। यही वजह है कि हर पर बीवी-बच्चों की चिंता सताती है। कहीं तालिबानी मेरे घर पहुंच गए तो क्या होगा?
Published on:
17 Aug 2021 09:58 am