
MeToo
नई दिल्ली। कार्यस्थल पर यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए चलाए गए #MeToo अभियान की भारत में खूब लहर देखने को मिल रही है। पिछले कुछ दिनों के अंदर राजनीति, फिल्म, क्रिकेट और मीडिया जगत की दुनिया से कई बड़े मामले सामने आ चुके हैं। इन सभी क्षेत्रों से जुड़े बड़े-बड़े चेहरों पर महिलाओं ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। हालांकि ये अभी आरोप ही हैं, इनकी जांच होना अभी बाकि है।
मीटू अभियान को लेकर देश में छिड़ी है बहस
मीटू अभियान के बाद सालों से यौन उत्पीड़न का दंश झेल रही महिलाओं ने हिम्मत कर अपनी आपबीती को सोशल मीडिया पर शेयर करना शुरू किया। इस कैंपेन के तहत कई चौंकाने वाली हस्तियों के नाम भी सामने आए हैं। इस बीच इस कैंपेन को लेकर बहस भी छिड़ी हुई है कि क्या इस कैंपेन के जरिए महिलाएं यौन उत्पीड़न के आरोप जिन पुरुषों पर लगा रही हैं, वो सही हैं? अर्थात इस कैंपेन को लेकर छिड़ी बहस में ये भी कहा जा रहा है कि कुछ महिलाओं का ये पब्लिसिटी स्टंट भी हो सकता है। ऐसे में ये सवाल खड़ा होता है कि पुरुषों के लिए इस अभियान के बाद क्या विकल्प रह जाता है।
पुरुषों के पास रहते हैं ये विकल्प
वैसे तो मीटू अभियान के तहत अगर कोई महिला किसी पुरुष पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगा रही है तो उसमें उसे जांच का सामना करना पड़ेगा और अगर वो जांच में सही नहीं पाई जाती हैं, यानि कि महिला अपने आरोपों से संबंधित कोई सबूत नहीं पेश कर पाती है तो पुरुषों के पास भी कानूनी विकल्प हैं। किसी महिला के द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप अगर झूठे निकलते हैं तो पुरुष उस महिला पर आपराधिक तथा दीवानी मानहानि और धारा 469 के तहत झूठे दस्तावेज बनाना तथा झूठ फैलाने का मामला दायर कर सकता है।
वैसे भी सुप्रीम कोर्ट ये कह चुका है कि मीटू अभियान के तहत सिर्फ महिलाओं के आरोपों से ही किसी को दोषी नहीं माना जाएगा। आरोप लगाने वाली महिला का सिर्फ बयान ही काफी नहीं होगा। यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली महिला को ठोस सबूत पेश करने होंगे।
Published on:
11 Oct 2018 05:10 pm
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