scriptCoronavirus: लॉकडाउन बढ़ाने पर फिर खड़ा हो जाएगा प्रवासी मजदूरों का संकट | Big challenge ahead if Lockdown will be extended, Labourers migration will be tough | Patrika News

Coronavirus: लॉकडाउन बढ़ाने पर फिर खड़ा हो जाएगा प्रवासी मजदूरों का संकट

locationनई दिल्लीPublished: Apr 09, 2020 11:57:42 pm

फिर से लॉकडाउन बढ़ाए जाने की संभावना पर विशेषज्ञों ने जताई चिंता।
शहर में फंसे, राहत कैंप और गांव पहुंचे मजदूरों के सामने नौकरी का संकट।
दस्तावेज की कमी, संसाधनों का आभाव समेत कई परेशानियां हैं सामने।

lockdown extension challenge

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धीरज कुमार/नई दिल्ली। 21 दिन के कोरोना वायरस लॉकडाउन की अवधि बढ़ाने की चर्चाओं के बीच शहरों में फंसे, राहत कैंपों में बंद और किसी तरह से अपने घर पहुंचे मजदूरों की परेशानियों का पहाड़ फिर खड़ा हो सकता है। खाने की समस्या अभी भी मजदूरों को परेशान कर रही है। जो शहरों में रुक गए उनमें से बड़ी संख्या के पास राशन कार्ड नहीं है। नौकरी और आय का साधन खोने की वजह से उनकी समस्याएं और बढ़ गई हैं।
मजदूरों के लिए काम कर रहे विशेषज्ञों ने लॉकडाउन का समय बढ़ाने की स्थिति में इनके लिए चिंता जाहिर की है। इनका कहना है राहत कैंपों की संख्या पर्याप्त नहीं है। कई गैर सरकारों संगठनों के संसाधन भी खत्म होने की स्थिति में हैं।
सेंटर फोर पॉलिसी रिसर्च की वरिष्ठ शोधकर्ता मुक्ता नायक का कहना है कि पीडीएस की सुविधा उन्हीं को मिलती है जो एक जगह पर रहता है। जबकि यह मजदूर एक स्थान से निकल कर दूसरे स्थान पर रहते हैं। बहुत दिनों से पीडीएस पोर्टेबलिटी की मांग रखी गई यानी पूरे देश में एक ही राशन कार्ड से कहीं भी राशन लेने की सुविधा हो लेकिन अभी तक यह प्रस्तावित योजना शुरू नहीं हो पाई है। इसी तरह आवास, जन धन खाता समेत तमाम सरकारी योजनाओं के लिए आवश्यक दस्तावेज पहचान आदि की जरूरत है जो इन प्रवासी मजदूरों के पास नहीं हैं।
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सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की अध्यक्ष यामिनी अय्यर का कहना है कि वित्त मंत्री द्वारा घोषित पैकेज इन मजदूरों के लिए काम का नहीं है। इसमें मौजूदा सामाजिक योजनाओं का दायरा बढ़ाया गया है, जबकि यह मजदूर इसमें शामिल नहीं हैं, क्योंकि इनके पास पास अपनी पहचान के दस्तावेज, जनधन खाता जैसी तमाम चीजें नहीं हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रवासी मजदूरों को राहत देने में सरकार के आंकड़ों में केरल ने सबसे ज्यादा अच्छा काम किया, जबकि बाकी राज्यों का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा। यही नहीं प्रवासी मजूदरों को एनजीओ के भरोसे छोड़ दिया गया।
राहत कैंप की संख्या नहीं पर्याप्त कुछ तो एनजीओ के भरोसे

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 26,476 राहत कैंपों में कई कैंप तो एनजीओ द्वारा संचालित है। केरल में सबसे ज्यादा 15,541 कैंप हैं, जिसमें 3 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर रह रहे हैं। दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र के 4,536 कैंप में 4 लाख 47 लाख लोग रह रहे हैं, जिसमें सरकार के सिर्फ 1135 कैंप ही हैं। इनमें 73 हजार लोग रह रहे हैं।
राजस्थान में सरकार के 327 कैंप हैं और 26 एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे हैं। यहां सरकार के कैंपों में 17,290 और एनजीओ के कैंप में 4278 लोग रह रहे हैं। छत्तीसगढ़ में सरकार के 357 और एनजीओ के 31 राहत कैंप चलाए जा रहे हैं। सरकार के कैंपों में 8306 और एनजीओ के कैंपों में 514 लोग रह रहे हैं।
देश की राजधानी दिल्ली जहां पिछले हफ्ते हजारों प्रवासी मजदूर सडक़ों पर आ गए थे, वहां 102 कैंपों में 4,788 रह रहे हैं जबकि उत्तर प्रदेश में 2230 कैंप हैं। वहां एक लाख से कुछ ज्यादा रह रहे हैं। बिहार में 148 कैंप है जहां 14,354 लोग हैं।
राजनीतिक दलों ने केंद्र की ओर से राज्यों को प्रवासी मजदूरों और राहत कैंपों के लिए जारी 17 हजार करोड़ रुपए के आवंटन पर भी सवाल उठाए है।

माकपा महासाचिव ने सीताराम येचुरी ने कहा कि देश में सबसे ज्यादा राहत कैंप केरल ने बनाए है। इसके बाजवूद केंद्र सरकार की धनराशि में केरल को बहुत कम राशि मिली है।
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