ब्लैक फंगस के मरीज को लगने वाला इंजेक्शन Liposomal amphotericine B बाजार में नहीं मिल रहा है। रेमडेसिविर की तरह ही बीमार व्यक्ति के परिजन इस दवा के लिए जगह-जगह भटक रहे हैं। माना जा रहा है कि इस इंजेक्शन की भी कालाबाजरी शुरू हो गई है। देश के लगभग सभी बड़े शहरों में इस इंजेक्शन की भारी कमी देखने को मिल रही है।
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भारत में बेकाबू कोरोना को लेकर डब्ल्यूएचओ चिंतित, कहा-दुनिया के लिए घातक है महामारी का दूसरा साल कई राज्यों में पैर पसार रहा ब्लैक फंगसब्लैक फंगस या म्यूकोरमाइकोसिस देश के कई राज्यों में अपने पैर पसार चुका है। सबसे ज्यादा असर महाराष्ट्र में देखने को मिल रहा है। यही वजह है कि बाजार में अब इसके इंजेक्शन की किल्लत बढ़ रही है।
बाजार में कम होने की वजह प्रोडक्शन की कमी भी
इस इंजेक्शन का प्रोडक्शन करने वाले लैब की माने तो अभी तक ब्लैक फंगस जैसी बीमारी के लिए इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन की डिमांड ज्यादा नहीं थी, इसलिए मैन्युफैक्चरिंग कम की जा रही थी, लेकिन अचानक इसकी डिमांड इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि बाजार से यह इंजेक्शन गायब हो रहा है।
इंजेक्शन के प्रोडक्शन में कई तरह की परेशानियां भी हैं। इसके रॉ मैटेरियल उपलब्ध होने में परेशानी है. इस वजह से अब बढ़ी हुई डिमांड के आधार पर इसका प्रोडक्शन नहीं हो रहा है।
यह भी पढ़ेँः कोरोना संक्रमण में बाद महाराष्ट्र में ब्लैक फंगल का बढ़ा खतरा, दो हजार मरीज हुए संक्रमित कालाबाजारी की आशंकासिपला कंपनी के लिए रेमेडिसिविर जैसी दवा बनाने वाली Kamla life sciences लैब के मुताबिक माने तो ब्लैक फंगस के लिए इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन का कुछ प्रोडक्शन उन्होंने किया था, लेकिन रॉ मैटेरियल उपलब्ध नहीं हो पा रहा है जिसकी वजह से इसका प्रोडक्शन नहीं हो पा रहा।
बाजार में इसकी डिमांड बढ़ने के साथ माना जा रहा है कि इसकी कालाजबारी भी शुरू हो गई है। कुछ शहरों में लोगों को ये इंजेक्शन ब्लैक में खरीदना पड़ रहा है। अब तक ये दवा बाजार में 5 से 8 हजार रुपए में अलग-अलग कंपनियों को मिल रही थीं। लेकिन डिमांड बढ़ने के साथ ही इसकी कीमतें दो से चार गुना तक बढ़ गई हैं।