एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने हिंद महासागर क्षेत्र और भारत-अमरीका सुरक्षा सहयोग की चुनौतियों पर बात करते हुए कहा कि हमारी नौसेना में आने वाले दशक में 200 जहाजी बेड़े होंगे। हमारी जरूरतों को पूरा करने में मौजूदा सरकार की सुधारात्मक नीतियां, मेक इन इंडिया की पहल और घरेलू उद्योग काफी मददगार साबित हो रहे हैं। लांबा ने कहा कि फिलहाल नौसेना के बेड़े में 139 जहाज और पनडुब्बियां हैं। अगले कुछ वर्षों में निर्माणाधीन 30 प्रोजेक्ट को पूरा करने पर पूरा जोर दिया जा रहा है। इसमें अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमान, विनाशक हथियार, मिसाइल पोत, मालवाहक पोत और परमाणु पनडुब्बी शामिल हैं।
स्वदेशी विमानवाहक पोत पर हो रहा तेजी से काम
नौसेना प्रमुख ने बताया कि कोच्चि में भारत की महत्वाकांक्षी परियोजना स्वदेशी विमानवाहक पोत (आईएसी-1) का निर्माण तेजी से हो रहा है। यह भारत में बना अपनी तरह का पहला विमानवाहक पोत होगा। उम्मीद है कि ट्रायल के बाद करीब तीन वर्ष में नौसेना में शामिल हो जाएगा। इसके बाद आईएसी-2 पर काम शुरू होगा, जो कि अपने आकार और क्षमता में अद्वितीय होगा।
नौसेना प्रमुख ने बताया कि कोच्चि में भारत की महत्वाकांक्षी परियोजना स्वदेशी विमानवाहक पोत (आईएसी-1) का निर्माण तेजी से हो रहा है। यह भारत में बना अपनी तरह का पहला विमानवाहक पोत होगा। उम्मीद है कि ट्रायल के बाद करीब तीन वर्ष में नौसेना में शामिल हो जाएगा। इसके बाद आईएसी-2 पर काम शुरू होगा, जो कि अपने आकार और क्षमता में अद्वितीय होगा।
अमरीका के साथ बढ़ रहा सुरक्षा सहयोग
चीफ ऑफ स्टाफ एडमिरल सुनील लांबा ने कहा कि भारत और अमरीका रणनीतिक तौर पर सुरक्षा सहयोग कर रहे हैं। इस दिशा में मालाबार युद्धाभ्यास को बढ़ावा दिया जा रहा है। तकनीकी सहयोग भी हो रहा है। डिफेंस टेक्नोलॉजी एंड ट्रेड इनीशिएटिव (डीटीटीआई) फ्रेमवर्क बनाने पर भी विचार हो रहा है। दोनों देशों ने दो साझा कार्य समूह बनाए हैं, जिसमें मेक इन इंडिया के तहत साझा उत्पादन और साझा विकास पर जोर दिया जा रहा है। इसमें से एक समूह तो विमानवाहक तकनीकी सहयोग पर काम कर रहा है तो वहीं दूसरा समूह नौसेना प्रणाली पर काम कर रहा है।
चीफ ऑफ स्टाफ एडमिरल सुनील लांबा ने कहा कि भारत और अमरीका रणनीतिक तौर पर सुरक्षा सहयोग कर रहे हैं। इस दिशा में मालाबार युद्धाभ्यास को बढ़ावा दिया जा रहा है। तकनीकी सहयोग भी हो रहा है। डिफेंस टेक्नोलॉजी एंड ट्रेड इनीशिएटिव (डीटीटीआई) फ्रेमवर्क बनाने पर भी विचार हो रहा है। दोनों देशों ने दो साझा कार्य समूह बनाए हैं, जिसमें मेक इन इंडिया के तहत साझा उत्पादन और साझा विकास पर जोर दिया जा रहा है। इसमें से एक समूह तो विमानवाहक तकनीकी सहयोग पर काम कर रहा है तो वहीं दूसरा समूह नौसेना प्रणाली पर काम कर रहा है।
ग्वादर बंदरगाह पर किया था आगाह
इससे पहले शुक्रवार को लांबा ने कहा था कि ग्वादर बंदरगाह का इस्तेमाल अगर चीन भविष्य में अपने नौसैनिक जहाजों के लिए करता है तो यह सुरक्षा के लिहाज से हमारे लिए चुनौती होगी। पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित इस वाणिज्यिक बंदरगाह को चीन विकसित कर रहा है। ऐसे में इस बात की आशंका जताई जा रही है कि चीन आगे चलकर इसका सैन्य इस्तेमाल कर सकता है।
इससे पहले शुक्रवार को लांबा ने कहा था कि ग्वादर बंदरगाह का इस्तेमाल अगर चीन भविष्य में अपने नौसैनिक जहाजों के लिए करता है तो यह सुरक्षा के लिहाज से हमारे लिए चुनौती होगी। पाकिस्तान के बलूचिस्तान स्थित इस वाणिज्यिक बंदरगाह को चीन विकसित कर रहा है। ऐसे में इस बात की आशंका जताई जा रही है कि चीन आगे चलकर इसका सैन्य इस्तेमाल कर सकता है।
सेना प्रमुख रावत ने भी दिया था बयान
इससे पहले सितंबर में भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि भारत को दोनों मोर्चों (चीन व पाकिस्तान) पर युद्ध के लिए तैनात रहना चाहिए। उन्होंने कहा था कि भारतीय सेना दोनों मोर्चों पर निपटने में सक्षम है।
इससे पहले सितंबर में भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि भारत को दोनों मोर्चों (चीन व पाकिस्तान) पर युद्ध के लिए तैनात रहना चाहिए। उन्होंने कहा था कि भारतीय सेना दोनों मोर्चों पर निपटने में सक्षम है।