1933 में पाकिस्तान स्थित रावलपिंडी में जन्मे कर्नल नरेंद्र कुमार को कर्नल ‘बुल’ के तौर पर भी जाना जाता था। कर्नल बुल को 1953 में कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला। उनके तीन और भाई सेना में थे। खास बात यह है कि कर्नल ‘बुल ने 1977 में सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा करने का पाकिस्तानी मंसूबा भांप लिया और करारा जवाब भी दिया।
कर्नल नरेंद्र कुमार की रिपोर्ट पर ही सेना ने 13 अप्रैल, 1984 को ‘ऑपरेशन मेघदूत’ चलाकर सियाचिन पर कब्जा बरकरार रखा था। यह दुनिया की सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में पहली कार्रवाई थी। उनकी रिपोर्ट के बाद ही तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन मेघदूत चलाने की मंजूरी दी थी।
कर्नल बुल ने दुनिया की तमाम ऊंची चोटियों पर तिरंगा फहराकर देश का मान बढ़ाया। नंदादेवी चोटी पर चढ़ने वाले पहले भारतीय थे। चार अंगुलियां खोकर भी नहीं हारे
कर्नल बुल के हौसले का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपने शुरुआती अभियानों में ही वे अपनी चार अंगुलियां गंवा चुके थे। बावजूद जज्बा कम नहीं हुआ और उन्होंने माउंट एवरेस्ट, माउंट ब्लैंक और कंचनजंघा पर भी तिरंगा फहराया। वे 1965 में भारत की पहली एवरेस्ट विजेता टीम के उपप्रमुख थे।
कर्नल बुल को कई सम्मानों से नवाजा गया। इनमें परम विशिष्ट सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल और कीर्ति चक्र जैसे सैन्य सम्मान के साथ-साथ पद्मश्री और अर्जुन पुरस्कार प्रमुख रूप से शामिल हैं।
कर्नल नरेंद्र कुमार के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक व्यक्त किया। उन्होंने ट्वीट कर लिखा- एक अपूरणीय क्षति! कर्नल नरेंद्र ‘बुल’ कुमार (सेवानिवृत्त) ने असाधारण साहस और परिश्रम के साथ राष्ट्र की सेवा की। पहाड़ों के साथ उनका विशेष बंधन याद किया जाएगा। उनके परिवार और शुभचिंतकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।’