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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या सरकार नागरिकों के सोशल मीडिया संदेशों को टैप कर ‘निगरानी राज’ चाहती है?

अदालत ने ऑनलाइन डेटा पर निगरानी करने के लिए सोशल मीडिया हब बनाने के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के निर्णय पर सख्त नाराजगी जाहिर की है और सरकार से पूछा कि क्या लोगों के व्हाट्सअप संदेशों को टैप कर सरकार देश में 'निगरानी राज' लाना चाहती है।

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सुप्रीम कोर्ट

क्या सरकार नागरिकों के सोशल मीडिया संदेशों को टैप कर 'निगरानी राज’ चाहती है? : SC

नई दिल्ली। देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार के एक फैसले पर सख्त नाराजगी जताई है और पूछा है कि क्या सरकार देश में 'निगरानी राज' चाहती है। दरअसल अदालत ने ऑनलाइन डेटा पर निगरानी करने के लिए सोशल मीडिया हब बनाने के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के निर्णय पर सख्त नाराजगी जाहिर की है और सरकार से पूछा कि क्या लोगों के व्हाट्सअप संदेशों को टैप कर सरकार देश में 'निगरानी राज' लाना चाहती है। आपको बता दें कि सर्वोच्च अदालत ने तृणमूल कांग्रेस के एक विधायक की जनहित याचिका पर शक्रवार को सुनवाई करते हुए सहमति जताई, जिसमें सवाल उठाया गया है कि क्या सरकार व्हाट्सएप या अन्य सोशल मीडिया मंचों पर लोगों के संदेशों को टैप करना चाहती है?

'क्या सरकार नागरिकों के व्हाट्सएप संदेशों को टैप करना चाहती है?'

आपको बता दें कि मुख्य न्यायाधीश की दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में जस्टिस ए एम खानविलकर एवं जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने तृणमूल कांग्रेस के विधायक महुआ मोइत्रा की याचिका पर केन्द्र को नोटिस जारी किया। पीठ ने केंद्र सरकार से पूछा है कि 'क्या सरकार नागरिकों के व्हाट्सएप संदेशों को टैप करना चाहती है?'

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सरकार ने मंगवाएं हैं आवेदन

आपको बता दें कि विधायक महुआ मोइत्रा की ओर से अदालत में दलील पेश कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने कहा कि सरकार ने आवेदन मंगाए हैं और एक साफ्टवेयर के लिये निविदा 20 अगस्त को खुलेगी जो व्हाट्सएप , ट्विटर , इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया मंचों की पूरी तरह निगरानी करेगा। आगे अपनी दलील मे सिंघवी ने कहा है कि सरकार सोशल मीडिया हब के जरिए सोशल मीडिया की विषयवस्तु की निगरानी करना चाहते हैं। सिंघवी की दलील सुनने के बाद अदालत ने कहा कोर्ट 20 अगस्त को टेंडर खुलने के पहले इस मामले को तीन अगस्त के लिए सूचीबद्ध कर रही है। अदालत ने आगे कहा कि इस मामले को लेकर अटॉर्नी जनरल या फिर कोई भी सरकारी अधिकारी न्यायालय की सहायता करेगा। गौरतलब है कि इससे पहले अदालत ने बीते 18 जून को इस मामले को सुनने से इनकार कर दिया था, जिसमें सोशल मीडिया कम्यूनिकेशन हब बनाने के केन्द्र सरकार के कदम पर रोक लगाने की मांग की गई थी।


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