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राष्ट्रपतिजी हम मरना चाहते हैं, समाज के लिए योगदान नहीं कर पा रहे हैं

मुंबई के एक बुजुर्ग दंपति ने राष्ट्रपति कोविंद को खत लिखकर उनसे इच्छामृत्यु की मांग की।

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Ekktta Sinha

Jan 09, 2018

elderly couple writes president for active euthanasia

elderly couple writes president for active euthanasia

मुंबई के चारणी रोड के पास ठाकुरद्वार में रहने वाले एक पति-पत्नी ने राष्ट्रपति कोविंद को एक खत लिखा है। इस खत के माध्यम से इस बुजुर्ग दंपति ने उनसे मरने की इजाजत मांगी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ७९ वर्ष की इरावती लवाटे और उनके ८६ वर्ष के पति नारायण अकेले रहते हैं। दोनों की कोई संतान नहीं है और देखरेख करने वाला भी कोई नहीं है। बीमारी की वजह से शारीरिक परेशानी में रहते हैं। बुढ़ापे की वजह से उनका शरीर पूरी तरह से काम नहीं कर पा रहा है। इसलिए दोनों को लगता है कि उनके जीने का कोई समाजिक मकसद नहीं रह गया। इरावती और नारायण ने राष्ट्रपति कोविंद को एक खत लिखकर एक्टिव यूथनेशिया की मांग रखी है। खत में उन्होंने लिखा है कि वह समाज के लिए अपना कोई योगदान नहीं कर सकेंगे। ऐसे में जीने का कोई फायदा नहीं। रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति के ऑफिस तक उनका खत पहुंच गया है।

शादी के तुंरत बाद इरावती बच्चा नहीं चाहती थीं
इरवती एक समय स्कूल की प्रिंसिपल रह चुकी हैं, वहीं नारायण एक ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से रिटायर हुए हैं। चूंकि दोनों की कोई संतान नहीं है इसलिए उनके मन में समाज के लिए कुछ न कर पाने का डर बैठ गया है।
इरावती के मुताबिक वे शादी के तुंरत बाद बच्चा नहीं चाहती थी। यह बात उन्होंने अपने पति को बताई और दोनों ने पहले एक साल में बच्चा न पैदा करने का निर्णय लिया। बाद में किसी वजह से उनकी औलाद नहीं हो पाई। अब दोनों का कहना है कि उनकी उम्र काफी हो गई है और वह नहीं चाहते कि कोई दूसरा उनकी जवाबदेही लें। चूंकि राष्ट्रपति को क्षमा दान का अधिकार है इसलिए उनसे विनती की है।

एक्टिव यूथनेशिया की इजाजत देश में नहीं है
आमतौर से एक्टिव यूथनेशिया में इंसान को दर्द निवारक दवा का ओवरडोज दिया जाता है। इससे इंसान की मृत्यु हो जाती है। एक्सपट्र्स के मुताबिक भारत में एक्टिस यूथनेशिया की इजाजत कानूनन नहीं है। वहीं जिन देशों में एक्टिव यूथनेशिया की इजाजत है वहां भी यह निश्चित किया जाता है कि व्यक्ति का बीमार रोग से ग्रसित होना जरूरी है। चूंकि इरावती और नारायण किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित नहीं है इसलिए उन्हें इस इच्छा मृत्यु की इजाजत नहीं मिल सकती।

अरुणा शानबाग का मामला
2011 में केईएम अस्पताल की नर्स अरुणा शानबाग के इच्छा मृत्यु का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया था। दरअसल 1973 में अस्पताल में ही बलात्कार की शिकार हुई अरुणा जीते जी मर रही थी। 24 जनवरी 2011 को घटना के 27 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने अरुणा की दोस्त पिंकी बिरमानी की ओर से यूथेनेशिया के लिए दायर याचिका पर फैसला सुनाया था। कोर्ट ने अरुणा की इच्छा मृत्यु की याचिका स्वीकारते हुए मेडिकल पैनल गठित करने का आदेश दिया था जिसे 7 मार्च 2011 को फिर कोर्ट ने बदल दिया। बाद में अरुणा की मौत निमोनिया की वजह से हुई।

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