
नई दिल्ली।
मैं शहर में पली-बढ़ी। मैं गरीबी के बारे में जानती थी, लेकिन गरीबी क्या होती है, इसका जब अनुभव होता है तो वह आपकी सोच में बड़ा परिवर्तन ला देता है। मेरे नानाजी और दादाजी ट्रेड यूनियन मजदूर महाजन महासंघ से जुड़े हुए थे। इसलिए कामगारों के बारे में सुना था। यह कहना है रीमा नाणावटी का।
रीमा के अनुसार, जब मैंने यूपीएससी की परीक्षा पास की तो मेरी ट्रेनिंग शुरू होने में कुछ वक्त था। इस बीच मैंने सेल्फ इंप्लॉयड वीमन एसोसिएशन (सेवा) को पत्र लिखा कि मुझे आपके यहां होने वाले काम को समझना है। उनकी तरफ से कॉल लेटर मिला। मुझे सेवा की रूरल विंग से जोड़ा गया। उसके बाद मैंने यहीं अपनी सेवा जारी रखी। मुझे अकाल राहत के लिए गांवों में जाना पड़ता था।
पहली बार करीब से देखी गरीबी
एक बार मैंने देखा कि महिलाएं घास की जड़ों को खोद रही थीं। वहां बूढ़ी औरत ने बताया कि इसमें जो गांठ निकलेगी। उसे पीसकर उबाल लेगें, वही उनका खाना होगा। तब मैंने गरीबी को करीब से देखा।
कोविड में भी हारी नही
कोविड में जब रोजगार ठप हो गए तो महिलाओं ने पांच लाख से ज्यादा मास्क और पचास हजार से ज्यादा पीपीई किट बनाए। कई बार महिलाओं को उनके परिवार वाले असुरक्षा के डर से बाहर नहीं निकलने देते। मैं कहना चाहती हूं कि वे डरें नहीं, वरना विकास धीमा पड़ जाएगा।
वैकल्पिक रोजगार को बढ़ावा देना होगा
कामगारों को गरीबी से बाहर लाना है, तो वैकल्पिक रोजगार पर ध्यान देना होगा। गांव में महिलाएं टे नोलॉजी का बेहतर इस्तेमाल कर रही हैं। उनके पास हुनर है, हमने उनके हुनर का इस्तेमाल कर उन्हें एंटरप्रेन्योर बनाया। रूरल फैशन लाइन ‘हर्खी’ शुरू की, जिसमें १५ हजार महिलाएं काम करती हैं। 500 महिलाओं को हैंडप प मैकेनिक बनाया है। कई महिलाओं को सोलर इंजीनियरिंग भी सिखाई है।
Published on:
13 Dec 2020 03:02 pm
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