मैसूर। दुनिया का एक मात्र संस्कृत दैनिक सुधर्मा अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। एक महीने बाद यह अखबार अपनी स्थापना के 46 साल पूरे करने वाला है लेकिन हालत यह है कि वह शायद ही एक महीने और चल पाए। राजनीति योग, वेद और संस्कृति सहित विभिन्न खबरें देने वाले इस अखबार का सर्कुलेशन महज चार हजार है।
संस्कृत के विद्वान कलाले नांदुर वरदराज आयंगर ने संस्कत भाषा के प्रचार प्रसार के लिए 14 जुलाई, 1970 को सुधर्मा की शुरूआत की थी। लेकिन उनके पुत्र और अखबार के वर्तमान संपादक केवी संपत का कहना है कि आज अखबार की छपाई जारी रखना बेहद संघर्षपूर्ण है। हमने मदद के लिए पीएम और एचआरडी मिनिस्टर से भी गुहार लगाई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। यह अखबार कर्नाटक के मैसूर से प्रकाशित होता है। 400 रुपये देकर एक वर्ष तक अखबार की प्रति हासिल की जा सकती है। विदेश में रहने वाले भी 50 अमेरिकी डॉलर का भुगतान कर एक वर्ष तक अखबार हासिल कर सकते हैं। न में अमेरिका और जापान में रहने वाले कई लोग इसकी प्रतियां मंगाते हैं।
संपत कुमार का कहना है कि दिनोंदिन अखबार का सर्कुलेशन घट रहा है। कहीं से कोई सहायता या समर्थन हासिल नहीं हो रहा है। जिस भाषा को दुनिया भर में साइंटिफिक और फोनेटिकली साउंड लैंग्वेज के रूप में मान्यता मिल रही है। उसकी ऐतिहासिक भूमिका को नहीं समझ पाना बेहद दुःखद है। हालांकि अखबार के प्रिट वर्जन के सर्कुलेशन में कमी आई है लेकिन इसके ई-पाठकों की संख्या में इजाफा हुआ है।
फिलहाल सुधर्मा के ई-पेपर के तकरीबन एक लाख से ज्यादा पाठक हैं, जिनमें ज्यादातर विदेशी हैं। विदेशियों में से भी अधिकांश इजराइल, जर्मनी और इंग्लैंड के हैं। अखबार का सब्सक्राइब करने वाली ज्यादातर संस्थाएं शैक्षिक और धार्मिक हैं। हालांकि, देश में 13 संस्कृत विश्वविद्यालय हैं और कर्नाटक में 18 संस्कृत महाविद्यालय हैं, लेकिन अखबार की आर्थिक मदद करने वाला कोई नहीं है।