
ISRO अंतरिक्ष में रचेगा इतिहास, 2020 में करेगा ऐसा प्रयोग जो अभी तक नहीं हुआ
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organization ) चंद्रयान-2 की विफलता के बाद तेजी से नए मिशन पर काम कर रहा है। इसरो अब स्पेस स्टेशन बनाने जा रहा है। इसरो के इतिहास में यह पहली बार है जब वह यह अहम काम करने जा रहा है। इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने कुछ महीने पहले बयान जारी कर यह जानकारी दी थी। हालांकि स्पेस स्टेशन बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है कि दो सैटेलाइट या उपग्रहों को आपस में जोड़ना है।
इसरो के सामने ये होगी चुनौती
दरअसल सैटेलाइट्स की गति कम करके उन्हें अंतरिक्ष में जोड़ना सबसे चुनौतीभरा काम है। अगर गति सही मात्रा में कम नहीं हुई तो ये आपस में टकराने की पूरी संभावना रहती है। लिहाजा इसरो के लिए यह कार्य बड़ा ही जटिल है। सरकार ने अभी इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए 10 करोड़ रुपए मिले हैं।
यह एक प्रायोगिक मिशन
इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने बताया कि इस मिशन का नाम स्पेडेक्स यानी स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट है। इसके लिए दो प्रायोगिक उपग्रहों को पीएसएलवी रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा। उसके बाद उसे अंतरिक्ष में जोड़ा जाएगा।
इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने बताया कि यह एक प्रायोगिक मिशन है। क्योंकि स्पेस स्टेशन का मिशन दिसंबर 2021 के गगनयान अभियान के बाद ही शुरू किया जाएगा। अंतरिक्ष में इंसानों को भेजने और डॉकिंग में महारत हासिल करने के बाद ही स्पेस स्टेशन मिशन की शुरुआत की जा सकेगी।
डॉकिंग प्रयोग से क्या होगा लाभ
इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन के मुताबिक पहले स्पेडेक्स मिशन को 2025 तक पीएसएलवी रॉकेट से लॉन्च करने की तैयारी थी। इस प्रयोग में रोबोटिक आर्म एक्सपेरीमेंट भी शामिल होगा। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) को पांच देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों ने इसे मिलकर बनाया है। इसमें अमरीका (NASA), रूस (ROSCOSMOS), जापान (JAXA), यूरोप (ESA) और कनाडा (CSA) की अंतरिक्ष एजेंसी शामिल है। ISS को बनने में 1 दशक से ज्यादा का वक्त लगा था।
ISS को बनाने में 40 बार डॉकिंग
इसमें भी डॉकिंग टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया था। ISS को बनाने में 40 बार डॉकिंग की गई थी। सिवन ने बताया कि इसरो वैज्ञानिकों को यह जानकारी जुटानी होगी कि अपने स्पेस स्टेशन में ईंधन, अंतरिक्ष यात्रियों और अन्य जरूरी वस्तुएं पहुंचा पाएंगे या नहीं।
स्पेस स्टेशन मिशन में क्या होगा खास
इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने बताया कि भारतीय स्पेस स्टेशन का वजन 20 टन होगा। भारतीय स्पेस स्टेशन में 15-20 दिन के लिए कुछ अंतरिक्षयात्रियों के ठहरने की व्यवस्था होगी। साथ ही विभिन्न प्रकार के प्रयोग करने में सुविधा होगी। वहीं माइक्रोग्रैविटी का अध्ययन किया जाएगा। अगर इसरो 5 से 7 साल में अपना स्पेस स्टेशन बना लेगा तो वह दुनिया का चौथा देश होगा, जिसका खुद का स्पेस स्टेशन होगा। इससे पहले अमरीका, रूस और चीन अपना स्पेस स्टेशन है।
Updated on:
13 Oct 2019 08:45 am
Published on:
03 Oct 2019 10:16 am
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