
झारखंड: खूंटी में पुलिस और पत्थलगड़ी समर्थकों के बीच झड़प, कई लोग जख्मी
रांची। पांच लड़कियों के साथ हुए गैंगरेप मामले को लेकर हाल के दिनों में चर्चा में रहे झारखंड के खूंटी जिले में पुलिस और पत्थलगड़ी समर्थकों के बीच जमकर संघर्ष हुआ। दरअसल मंगलवार को हजारों समर्थकों की मौजूदगी में खूंटी जिले के घाघरा में पत्थलगड़ी हुई। इस दौरान पुलिस और समर्थकों के बीच झड़प हो गई। पत्थलगड़ी समर्थकों को तीतर-वितर करने के लिए पुलिस ने लाठी चार्ज कर दी, जिसमें कई पत्थलगड़ी समर्थक घायल हो गए।
सांसद के सुरक्षा गार्डों को पत्थलगड़ी समर्थक ले गए अपने साथ
आपको बता दें कि स्थानीय मीडिया से मिली जानकारी के मुताबिक पत्थलगड़ शुरु होने के तीन महीने पहले बाद पुलिस और समर्थकों के बीच झड़प हुई जिसके बाद पुलिस ने लाठी चार्ज कर दी। इस दौैरान मौके पर मौजूद सांसद कड़िया मुंडा के तीन सुरक्षाकर्मियों के हथियार पत्थलगड़ी समर्थकों ने लूट लिए और उनको अगवा कर अपने साथ ले गए। बताया जा रहा है कि करीब 300 पत्थलगड़ी समर्थक एक साथ घटना स्थल पर आए थे। इस दौरान बड़ी संख्या में महिलांए भी पहुंची हुई थी। पत्थलगड़ी समर्थकों ने खूंटी के सांसद कड़िया मुंडा को चारों तरफ से घेर लिया और उनके सुरक्षा गार्डों से हथियार लूट लिए। मौके पर मौजूद कुछ लोगों ने बताया कि करीब 300 से अधिक की संख्या में महिला और पुरुष आए और सांसद को चारों तरफ से घेर लिया और उनके सुरक्षा गार्ड़ो से हथियार छिनकर उन्हें अपने साथ ले गए। हालांकि इन सब घटनाओं के बावजूद अभी तक झारखंड पुलिस सांसद के घर नहीं पहुंची है ।
क्या है पूरा मामला
आपको बता दें कि दरअसल मंगलवार को खूंटी के घाघरा में पत्थलगड़ी का कार्यक्रम था। इस दौरान वहां पर पत्थलगड़ी भी हुई। पुलिस ने पत्थलगड़ी को विफल करने के लिए घाघरा को चारों तरफ से घेर लिया। जिसके बाद से पुलिस और पत्थलगड़ी समर्थकों के बीच टकराव हो गया जिसमें कई समर्थक घायल हो गए। समर्थकों पर लाठीचार्ज के विरोध में लोगों ने स्थानीय सांसद कड़िया मुंडा के घर का घेराव किया और उनके तीन सुरक्षा गार्डों से हथियार छिन कर उन्हें अपने साथ ले गए।
क्या है पत्थलगड़ी
आपको बता दें कि पत्थरों के स्मारकों को कहा जाता है जिनकी शुरुआत समाज के हजारों वर्ष पहले की थी। यह एक पाषाणकालीन परंपरा है, जो कि आदिवासी लोगों में आज भी प्रचलित है। ऐसा कहा जाता है कि आदिवासी परंपरा में मृतकों की याद को संजोने, खगोल विज्ञान को समझने, कबीलों के अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन को दर्शाने, बसाहटों की सूचना देने, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने आदि के लिए पत्थरों के स्मारकों बनाए जाते हैं। हालांकि पुरातात्विक वैज्ञानिक इस आदिवासी परंपरा को ‘महापाषाण’, ‘शिलावर्त’ और मेगालिथ कहते हैं।
Published on:
26 Jun 2018 06:00 pm
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