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जानिए सबसे युवा शहीद खुदीराम बोस के बारे में 10 अहम बातेंं 

जानिए खुदीराम बोस के बारे में कुछ खास बातें...

2 min read
Aug 11, 2016
Khudiram Bose
जयपुर। भारत की आजादी के लिए शहीद होने वाले देश के पहले क्रांतिकारी खुदीराम बोस राजनीतिक गतिविधियों में स्कूल के दिनों से ही भाग लेने लगे थे। उन दिनों अंग्रेजों से छोटे-छोटे हिन्दुस्तानी स्कूली बच्चे भी नफरत किया करते थे। वे जलसे जलूसों में शामिल होते थे तथा अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खलिाफ नारे लगाते थे। बोस को गुलामी की बेडिय़ों से जकड़ी भारत माता को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि उन्होंने नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और सिर पर कफन बांधकर जंग-ए-आजादी में कूद पड़े। जानिए खुदीराम बोस के बारे में कुछ खास बातें...

1- खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के गांव हबीबपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम त्रैलोक्य नाथ था। उनके जन्म के कुछ ही दिन बाद माता-पिता का निधन हो गया। वह अपनी बहन के यहां पले-बढ़े।

2- 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन कर दिया तो इसका पूरे देश में विरोध हुआ। खुदीराम पर भी इसका असर हुआ और वह क्रांतिकारी सत्येन बोस की अगुवाई में वे भी क्रांतिकारी बन गए।

3- वह जब स्कूल में पढ़ते थे तभी से उनके दिल में क्रांति की ज्वाला भड़कने लगी थी और वह अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ खूब नारे लगाते थे। 9 वीं की पढ़ाई के बाद वह पूरी तरह क्रांतिकारी बन गए और रेवेल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन वंदेमातरम के पर्च बांटने का काम करने लगे।

4- 28 फरवरी 1906 को सोनार बांग्ला नाम का इश्तेहार बांटते वक्त पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। लेकिन वह चकमा देकर भागने में कामयाब हो गए। इसके बाद पुलिस ने एक बार फिर उन्हें पकड़ लिया। लेकिन उम्र कम होने की वजह से चेतावनी देकर छोड़़ दिया गया।

5- 6 दिसंबर 1907 बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर किए गए बम विस्फोट में भी उनका नाम सामने आया। इसके बाद एक अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने का जिम्मा सौंपा गया। इस काम में उनके साथ प्रफुल चंद्र चाकी को भी लगाया। दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर जिले पहुंचे। जहां वह किंग्सफोर्ड की हर गतिविधि पर नजर रखने लगे। एक दिन मौका देखकर उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक दिया।

6- इस घटना में अंग्रेज अधिकारी की पत्नी और बेटी मारी गई लेकिन वह बच गया। घटना के बाद खुदीराम बोस और प्रफुल चंद वहां से 25 मील भागकर एक स्टेशन पर पहुंचे। लेकिन वहीं पुलिस को दोनो पर शक हो गया।

7- उनको चारो ओर से घेर लिया गया। प्रफुल चंद ने खुद को गोली मार स्टेशन पर शहादत दे दी। थोड़ी देर बाद खुदीराम को भी गिरफ्तार कर लिया गया। उनके खिलाफ 5 दिन तक मुकदमा चला।

8- 8 जून, 1908 को उन्हें अदालत में पेश किया गया और 13 जून को उन्हें मृत्य दंड की सजा सुनाई गई।

9- 11 अगस्त 1908 को इस क्रांतिकारी को फांसी पर चढ़ा दिया।

10- आजादी के संघर्ष में यह किसी क्रांतिकारी को पहली फांसी थी।
Published on:
11 Aug 2016 07:08 pm
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