यहां के एक मजदूर को अपने दो छोटे बच्चों को बहंगी पर बिठाकर कंधों पर लटकाकर 160 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार- ओडिशा के मयूरभंज जिले के मोराडा ब्लॉक के बलादिया गांव रूपया तुदू नाम का एक आदिवासी अपने परिवार के साथ कुछ महीने पहले 160 किलोमीटर दूर जाजपुर जिले के पनीकोइली में ईंट भट्ठे पर काम करने के लिए जाता है। जब वे वापस लौटता है, तो तुदू के कंधों पर परिवार के फिक्र का ही बोझ नहीं था, बल्कि बहंगी में बैठे दो बच्चों के बोझ तले भी उसके कंधे दबे हुए थे।
लॉकडाउन के कारण भट्ठे पर काम बंद कर दिया गया। भट्ठा मालिक ने उसे काम से हटा दिया और पैसे भी नहीं दिए। उसके पास गांव वापस जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। गांव जाने के लिए कोई साधन नहीं था। पैसे ना होने के कारण वह पैदल ही गांव की तरफ चल पड़ा।
छह साल की बेटी पुष्पांजलि पत्नी के साथ पैदल चल सकती थी। तुदू के सामने समस्या ये थी कि वे अपने चार और ढाई साल के दो बेटों को कैसे लेजाएगा। इसके बाद उसने दो टोकरियों को बांस के डंडे से रस्सियों से लटकाया और इनमें बेटों को बिठा लिया। फिर उन्हें कंधे पर लटकाकर 160 किलोमीटर का सफर तय किया और शनिवार को अपने घर पहुंचे।
तुदु के अनुसार- ‘मेरे पास पैसे खत्म हो चुके थे। इसलिए मैंने पैदल ही अपने गांव जाने का निर्णय लिया।’ तुदु ने बताया कि गांव पहुंचने के लिए उसे सात दिनों तक पैदल चलना पड़ा। यह काम मुश्किल था लेकिन इसके अलावा कोई चारा नहीं था।
गांव पहुंचने के बाद सरकार क नियमों के अनुसार तुदु और उनके परिवार को गांव में क्वारंटाइन में रखा गया। लेकिन वहां पर उसके खाने का प्रबंध नहीं किया गया था। ओडिशा सरकार के क्वारंटाइन प्रोटोकॉल के अनुसार उन्हें केंद्र में 21 दिन और अगले सात दिन घर में बिताने होंगे। शनिवार को मयूरभंज जिले के बीजद अध्यक्ष देबाशीष मोहंती ने तुदु के परिवार और वहां रहने वाले अन्य श्रमिकों के लिए भोजन की व्यवस्था की।