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मिशन ‘गगनयान’: मानवरहित अंतरिक्ष मिशन इस वर्ष के अंत तक, रोबोट ‘व्योममित्रा’ अंतरिक्ष में पहले जाएगी

Highlights. - करीब एक साल की देरी से चल रही है यह योजना - पिछले साल दिसम्बर में होना था मिशन का प्रक्षेपण - कोरोना की वजह से इस वर्ष के मध्य तक बनी योजना, मगर इसे भी टालना पड़ा  

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Ashutosh Pathak

Feb 14, 2021

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नई दिल्ली।

महत्वाकांक्षी मानव मिशन ‘गगनयान’ के पहले चरण के तहत मानवरहित अंतरिक्ष मिशन का प्रक्षेपण अब इस साल के अंत तक होने की संभावना है। योजना करीब साल भर की देरी से चल रही है। मिशन का प्रक्षेपण पिछले वर्ष दिसंबर में होना था और इसके साथ मानव रोबोट ‘व्योममित्रा’ भेजने की योजना थी।

कोरोना के चलते देरी के कारण इसे 2021 के मध्य में भेजने की योजना थी लेकिन अब इस वर्ष के अंत तक लॉन्चिंग की उम्मीद है। इसके अलावा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब दूसरा मानव रहित मिशन 2022 में लॉन्च करेगा। पूर्व योजना के मुताबिक ‘व्योममित्रा’ के साथ पहला मानव रहित मिशन दिसंबर 2020 और दूसरा जून 2021 में लॉन्च किया जाना था। मानव मिशन दिसंबर 2021 में लॉन्च करने की योजना थी जबकि समय सीमा वर्ष 2022 रखी गई थी। लेकिन, अब इसमें विलंब संभव है।

100 प्रतिशत विश्वसनीयता का प्रयास

उच्च थ्रस्ट प्रदान करने वाला ठोस प्रणोदक बूस्टर एस-200 जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट का पहला चरण होता है। इसका व्यास 3.2 मीटर, ऊंचाई 8.5 मीटर और वजन 5.5 टन है। इसरो ने कहा है कि बूस्टर का मोटर केस तैयार होना मानव रहित मिशन के प्रक्षेपण की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम है।

मानव रेटिंग बनाने की प्रक्रिया में तेजी

इसरो अध्यक्ष के. शिवन ने कहा कि गगनयान मिशन के लिए सभी प्रणालियों को ‘मानव रेटिंग’ में ढालने की प्रक्रिया प्रगति पर है और उम्मीद है कि यह अगले वर्ष के पूर्वाद्ध में पूरी कर ली जाएगी। गगनयान मिशन का प्रक्षेपण इसरो के अत्याधुनिक और सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 से किया जाएगा। इसके लिए जीएसएलवी मार्क-3 को मानव रेटिंग बनाने की प्रक्रिया तेजी से चल रही है।

हार्डवेयर को मानव रेटिंग में लाना जरूरी

शिवन के अनुसार अगला कदम मिशन के लिए आवश्यक सभी प्रणालियों और हार्डवेयर को मानव रेटिंग बनाना है। मानव रेटिंग प्रक्षेपण यान उसे माना जाता है जिसकी विश्वसनीयता 0.99 है। अर्थात, विश्वसनीयता के पैमाने पर गणितीय रूप से 100 में से 1 पर ही संदेह की गुंजाइश हो। वहीं, क्रू एस्केप प्रणाली के लिए इसरो 0.998 से भी अधिक विश्वसनीयता हासिल करना चाहता है। विश्वसनीयता 100 फीसदी, संदेह की गुंजाइश तनिक भी नहीं।