
This IAS officer says mental case to another IAS and minister
नई दिल्ली। प्रशासनिक नियुक्तियों की प्रक्रिया में मोदी सरकार ने एक ऐतिहासिक बदलाव कर दिया है। अब से बड़े अधिकारी बनने के लिए संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सर्विस परीक्षा पास करना जरूरी नहीं होगा। निजी कंपनियों में काम करने वाले लोग भी लैटरल एंट्री के जरिए ब्यूरोक्रेसी में प्रवेश कर सकेंगे। मोदी सरकार ने इस व्यवस्था को लेकर औपचारिक अधिसूचना जारी कर दी है। रविवार को इन पदों पर नियुक्ति के लिए डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) के लिए दिशानिर्देशों के साथ अधिसूचना जारी कर दी गई है। इसके लिए आवेदन की अंतिम तारीख 30 जुलाई है। इस कदम को प्रशासनिक अधिकारियों की कमी पूरी करने का भी जरिया समझा जा रहा है।
...अधिसूचना के मुताबिक ऐसी रहेगी व्यवस्था
- इनकी नियुक्ति मंत्रालयों में संयुक्त सचिव के पद पर होगी।
- इनका कार्यकाल तीन साल का होगा।
- अधिकारी का प्रदर्शन अच्छा हुआ तो कार्यकाल पांच साल तक विस्तारित किया जा सकेगा।
- न्यूनतम उम्र 40 साल होगी, जबकि अधिकतम सीमा फिलहाल तय नहीं है।
- वेतन और अन्य सुविधाएं वही मिलेंगी जो केंद्र सरकार की ओर से जॉइंट सेक्रेटरी पद के लिए निर्धारित है।
- इन्हें काम भी सर्विस रूल के हिसाब से ही करना होगा।
...ऐसे होगा जॉइंट सेक्रेटरी का चयन
संयुक्त सचिव का पद बेहद अहम होता है। तमाम बड़ी नीतियों को अंतिम रूप देने इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस पद पर नियुक्ति के लिए कैबिनेट सचिव के नेतृत्व वाली समिति इंटरव्यू लेगी। इस पद पर नियुक्ति के लिए सामान्य स्नातक, किसी सरकारी कंपनी या विश्वविद्यालय के अलावा किसी प्राइवेट कंपनी में 15 साल का अनुभव रखने वालों को मौका मिल सकेगा।
...इन मंत्रालयों-विभागों में होंगी नियुक्तियां
अधिसूचना के मुताबिक विशेषज्ञ संयुक्त सचिवों की नियुक्तियां फिलहाल 10 मंत्रालयों और विभागों में होंगी। इनमें वित्त सेवा, आर्थिक मामले, कृषि, सड़क परिवहन, शिपिंग, पर्यावरण, नवीकरणीय ऊर्जा, नागरिक उड्डयन और वाणिज्य संबंधी विभाग शामिल हैं। विभागों का बंटवारा आवेदक की विशेषज्ञता के आधार पर होगा।
सालों से लंबित प्रस्ताव पर ऐसे चला मंथन
- 2005 में प्रशासनिक सुधार पर आई पहली रिपोर्ट में अधिकारियों की नियुक्ति में लैटरल एंट्री देने का पहला प्रस्ताव था, हालांकि तब इसे खारिज कर दिया गया था।
- 2010 में दूसरी प्रशासनिक सुधार रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की गई थी लेकिन बात नहीं बनी।
- 2014 में मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही गंभीरता से इसकी पहल की।
- 2016 में इसके लिए फिर एक समिति बनाई, जिसने अपनी रिपोर्ट में प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की अनुशंसा की।
- 2018 में इसे अंतिम रूप दिया गया और अधिसूचना जारी की गई।
- पहले प्रस्ताव के अनुसार सचिव स्तर के पद पर भी नियुक्ति की अनुशंसा की गई थी, लेकिन वरिष्ठ नौकरशाहों के विरोध के चलते फिलहाल इसे संयुक्त सचिव स्तर तक सीमित रखा गया।
Published on:
10 Jun 2018 04:19 pm
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