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Piyush Goyal  का दावा – 250 ट्रेनों को नहीं मिले यात्री,  Maharashtra 100 ट्रेनों का नहीं उठा पाया लाभ

  3,740 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में से लगभग 40% ट्रेंने विलंब से पहुंची। पीयूष गोयल बोले - पहले 19 दिनों तक ट्रेनें समय से पहले गंतव्य तक पहुंची। राज्य सरकारों को जितनी ट्रेनें चाहिए हम उन्हें प्रदान करने का काम जारी रखेंगे।

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Railway Minister Piyush Goel

महाराष्ट्र सरकार 100 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का लाभ नहीं उठा पाई।

नई दिल्ली। रेल मंत्री पीयूष गोयल ( Railway Minister Piyush Goyal ) ने कहा है कि लॉकडाउन ( Lockdown ) के बीच घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों के लिए राज्य सरकारें जितनी ट्रेनों की मांग करेगी हम उसे मुहैया कराने का काम जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि 31 मई तक रेलवे ने 4040 ट्रेनें चलाईं। इनमें से 250 से अधिक ट्रेनों को यात्री नहीं मिले।

अकेले महाराष्ट्र सरकार ( Maharashtra Governments ) ऐसे 100 ट्रेनों का लाभ नहीं उठा पाई। महाराष्ट्र सरकार इन ट्रेनों के लिए समय से यात्री मुहैया नहीं करा पाई। ऐसा इसलिए हुआ कि राज्यों ने यात्रियों से ट्रेनों में सफर को लेकर सही सूचनाएं प्रवासी मजदूरों ( Migrants Laborers ) को नहीं दीं। इसके बावजूद हमने राज्य सरकार से कोई शिकायत नहीं की।

मीडिया से बातचीत में रेल मंत्री गोयल ने कहा कि हमने किसी भी राज्य को एक भी ट्रेन देने से इनकार नहीं किया। राज्य सरकारों को जितनी ट्रेने चाहिए हम उन्हें प्रदान करने का काम जारी रखेंगे।

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एक बार तो महाराष्ट्र सरकार के कुप्रबंधन की वजह से बांद्रा रेलवे स्टेशन पर 20,000 यात्री पहुंच गए। फिर भी हमने यात्रियों ने चिंता नहीं करने और सभी को घर भेजने का भरोसा दिया था।

गोयल ने कहा कि 1 मई से शुरू होने के बाद लगातार 19 दिनों तक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों ( Shramik Special Trains ) को मय से पहले अपने गंतव्य तक पहुंचाने का काम किया गया।

जबकि मीडिया रिपोट़र्स के मुताबिक 1 मई से चलने वाली 3,740 श्रमिक ट्रेनों में से लगभग 40 प्रतिशत ट्रेनें विलंब से चलीं। ये ट्रेनें औसतन 8 घंटे विलंब से गंतव्य तक पहुंचीं।

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रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनें शुरू करने का निर्णय तब लिया गया जब यह देखा गया कि लॉकडाउन की वजह से फंसे हुए प्रवासी शिविरों में नहीं रहना चाहते। राज्य सरकारें प्रवासी मजदूरों को भरोसा दिलाने में सफल नहीं रहीं।

इसके अलावा रेल मंत्री ने बताया कि अधिकांश ट्रेनें यूपी, बिहार और पूर्व भारतीय राज्यों में जा रही थीं। दूसरी तरफ खाद्यान्न, कोयला और उर्वरक जैसी आवश्यक वस्तुओं को ले जाने वाली मालवाहक गाड़ियों की संख्या सबसे अधिक उधर ही जा रही थीं जिसकी वजह से ट्रैफिक की समस्या भी उठ खड़ी हुई थी।

हम दोनों के बीच तालमेल बिठाकर चला रहे थे। इस बीच यात्रियों के ट्रेनों को ज्यादा स्टेशनों पर रोकने की मांग शुरू कर दी। जब इन मार्गो पर भीड़ काफी ज्यादा हो गईं तो रेलवे ने 4040 ट्रेनों में से केवल 71 ट्रेनों को ही डायवर्ट किया।

उन्होंने यह भी कहा कि रेलवे ने श्रमिक स्पेशल में 1.19 करोड़ भोजन परोसा है जबकि राज्यों ने 54 लाख भोजन परोसा है। केंद्र ने ट्रेनों के संचालन का खर्च 85 फीसदी उठाया। राज्य सरकारों से केवल 15 फीसदी ही खर्च लिया गया।

हमारे सामने एक बड़ी समस्या यह थी कि अगर हम पूरी तरह से मुफ्त में ट्रेंने ( Free Trains ) चलाने का फैसला लेते तो हर कोई उन गाड़ियों में सवार होने के लिए आता। उसके बाद जो स्थिति उत्पन्न होती क्या कोई उसे संभाल पाता। इसके बावजूद हमने एक भी यात्री से पैसे नहीं लिए।


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