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भीमा कोरेगांव हिंसा: पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर कल सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला

पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं में वारावरा राव, अरुण फेरेरा, वरनोन गोंजालवेस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलाखा का नाम शामिल हैं।

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Kapil Tiwari

Sep 27, 2018

Supreme Court Big Decision

Supreme Court Big Decision

नई दिल्ली। भीमा कोरेगांव हिंसा और पीएम मोदी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किए गए पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट कल अपना फैसला सुनाएगा। इससे पहले कोर्ट ने पांचों वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए नजरबंद रखने का आदेश दिया था। आपको बता दें कि पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं में वारावरा राव, अरुण फेरेरा, वरनोन गोंजालवेस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलाखा का नाम शामिल हैं। इन सभी को पिछले महीने पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया था। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कल फैसला सुनाया जाएगा।

20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने रख लिया था फैसला सुरक्षित

इससे पहले 20 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने वामपंथी कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर रोक लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। ये याचिका इतिहासकार रोमिला थापर ने दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट में पिछले गुरुवार को इस पर तीखी बहस भी हुई थी। अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस को जांच की केस डायरी पेश करने का निर्देश दिया। साथ ही पुलिस और एक्टिविस्ट दोनों पक्षकारों को 24 सितंबर तक अपने लिखित नोट दाखिल करने के लिये कहा था।

सुनवाई में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश अडिशनल सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वो पूरी केस डायरी कोर्ट के सामने पेश करे। वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने तुषार मेहता से सवाल किया कि मीडिया के पास वह लेटर कहां से आया।

28 अगस्त को हुई थी गिरफ्तारी

बता दें कि भीमा कोरेगांव हिंसा की साजिश रचने और नक्सलवादियों से संबंध रखने के आरोप में पुणे पुलिस ने बीती 28 अगस्त को देश के अलग-अलग हिस्सों से वामपंथी विचारक गौतम नवलखा, वारवारा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनोन गोंजालवेस को गिरफ्तार किया था। इसके बाद 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इन गिरफ्तारियों पर रोक लगा दी और अगली सुनवाई तक हिरासत में लिये गए सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपने ही घर में नजरबंद रखने के लिए कहा था। साथ ही पूरे देश में इन गिरफ्तारियों को लेकर केंद्र सरकार को भी निशाने पर लिया गया था। वामपंथी दलों ने सरकार पर आवाज को दबाने के आरोप लगाए थे।


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