
haemophilia
हीमोफीलिया बीमारी के मरीजों को राज्य सरकार से मिलने वाली सहायता पर अघोषित रूप से रोक लग गई है। अब इन मरीजों का भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत उपचार किया जा रहा है, जिसमें सालाना 30 हजार से 3 लाख रुपए तक का ही उपचार मिल सकेगा। जबकि अब तक इन्हें बीपीएल श्रेणी के मरीजों के समकक्ष मानकर पूरी तरह से निशुल्क उपचार किया जा रहा था। ऐसे में अब हीमोफीलिया के जरूरतमंद मरीजों को खुद की जेब से सालभर में 5-6 लाख रुपए खर्च करने पड़ेंगे, जो कि कई मरीजों व परिजन के लिए मुश्किल है।
हीमोफीलिया के मरीजों में चोट या कट लगने पर खून का थक्का नहीं जमता और लगातार रक्तस्राव होता रहता है। ऐसे में रक्तस्राव को रोकने के लिए हीमोफीलिया के मरीजों को उनके शरीर के वजन के हिसाब से फेक्टर (एक तरह का इंजेक्शन) लगाया जाता है। उदाहरण के तौर पर 70 किलो के मरीज को जरूरत पडऩे पर करीब 1500 यूनिट फेक्टर लगाना पड़ता है। 250 यूनिट के एक फेक्टर की कीमत करीब चार हजार रुपए है। ऐसे में एक बार में ही एक मरीज को करीब 24 हजार रुपए कीमत के फेक्टर लगाने पड़ते हैं। रक्त को सामान्य बनाए रखने के लिए सालभर में एक मरीज को करीब 8 से 10 लाख रुपए तक के फेक्टर की जरूरत होती है।
जरूरत पडऩे पर हीमोफीलिया के एक मरीज को सालभर में करीब 8-10 लाख रुपए के फेक्टर लगते हैं। बीएसबीवाई में साल में सिर्फ 30 हजार से 3 लाख रुपए तक का ही उपचार मिल सकता है। हमने इस सम्बंध में चिकित्सा विभाग को ज्ञापन भी सौंपा था। वहां से हमें 3 लाख रुपए की लिमिट खत्म होने पर बीपीएल श्रेणी में शामिल करने का मौखिक आश्वासन मिला है।
-मदन लखानी, अध्यक्ष, हीमोफीलिया सोसायटी, चेप्टर जोधपुर
Published on:
20 Sept 2016 03:50 pm
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